तबस्सुम जहाँ की लघुकथा: विभाग का फैसला

तबस्सुम जहाँ की लघुकथा: विभाग का फैसला

[लेखिका तबस्सुम जहाँ दिल्ली स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया से उच्च शिक्षा प्राप्त की हैं। फिर वहीं से एम.फिल और पीएच-डी. की डिग्री प्राप्त कीं। स्त्री और सामाजिक मुद्दों को लेकर काफी मुखर रही हैं। कई पत्रिकाओं और अखबारों में इनकी कहानियां तथा लघुकथा प्रकाशित हो चुकी है।]

मिसेज वर्मा एक बड़े कॉलेज में विभागाध्यक्ष हैं।

उनके कार्यकाल में उनका विभाग बहुत अपडेट रहा है। जब से कोरोना के कारण लॉकडाउन हुआ है, तब से उनके मन में एक अजीब उथल-पुथल मची है। वे चाहती हैं कि कोरोना जनित कठिन परिस्थितियों में उनका विभाग भी समाज में कुछ योगदान करे। ख़ासकर अपने विद्यार्थियों के हित में। पर कैसे? वह समझ नहीं पाती हैं।

इस विषय पर विचार-विमर्श के लिए विभाग के सदस्यों के साथ एक ऑनलाइन प्रोग्राम रखा गया। सभी सदस्य नियत समय ऑनलाइन उपस्थित हुए। मिसेज वर्मा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा- “महोदय हम सभी अध्यापक हैं। इन विषम परिस्थितियों में हमारा दायित्व बनता है कि अपने समाज के लिए हम कुछ करें। कृपया समाज और अपने विद्यार्थियों की भलाई के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दें।”

सभी ने अपने-अपने सुझाव विभागाध्यक्ष के सामने रखे। प्रोफेसर तिवारी ने कहा- “लॉकडाउन के खाली समय को भरने के लिए विद्यार्थियों को रचनात्मकता के लिए प्रेरित करना चाहिए। मैं फेसबुक लाइव द्वारा अपनी पुस्तक ‘खाली समय में साहित्य का उपयोग’ का पाठ करूँगा।”

प्रोफेसर मिश्रा बोले- “उनमें करुणा का पाठ पढ़ाने हेतु मैं अपने नाटक ‘बकरी क्यों उदास’ के एक अंश का लाइव पाठ करूंगा।”

“मैं अपनी कविता ‘गरीबों की हाहाकर’ विषय पर चर्चा करुंगी।” प्रोफेसर नीलिमा ने कहा।

प्रोफेसर छब्बे लाल ने फरमाया- “विद्यार्थियों में आलोचना की दृष्टि विकसित करनी होगी। इसके लिए फेसबुक लाइव पर ‘आलोचना ही आलोचना’ विषय पर खास चर्चा आवश्यक है।”

प्रोफेसर बरकतुल्लाह का सुझाव था कि विद्यार्थियों से कोरोना और स्वास्थ्य विषय पर 1500 शब्दों में लेख मांगा जाए और बेहतरीन लेख को विभाग की ओर से पुरस्कृत किया जाए। उत्तम 20 आलेखों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाए। आप कहें तो मैं इस पुस्तक का संपादन करने को तैयार हूँ।

डॉ. सहगल जो सभी अध्यापकों में सबसे युवा थे। अपनी बारी आने पर बोले- “देखिए मैं सभी विद्वानों के सुझाव से असहमत हूँ।”

मिसेज वर्मा सहित सभी सदस्य चौंक गए। जूनियर होकर इतनी हिमाकत। अभी चार दिन हुए नहीं जॉइन किए। पानी में रहकर मगर से बैर। आख़िरकार प्रोफेसर नीलिमा ने टोका, “ठीक है डॉ. सहगल आप बताइए कि हमें क्या करना चाहिए।”

डॉ. सहगल ने उनकी बजाए मिसेज वर्मा की ओर मुखातिब होकर कहा- “देखिए मैम! रचनात्मकता तब बचेगी या विकसित होगी, जब उसको आत्मसात करने वाला जीवित बचेगा। आज जबकि लोग भूख और बेरोजगारी से मर रहे हैं। आत्महत्या कर रहे हैं। हमें इस बात की चिंता होनी चाहिए कि हमारा कोई विद्यार्थी भूख से तो नहीं जूझ रहा। होना तो यह चाहिए कि हमारे निर्देशन में जितने शोधार्थी हैं, वह भी जो शोध कर चुके हैं। उन सभी को फोन करके उनसे मालूम करें कि कहीं उनको राशन पानी की दिक्कत तो नहीं है। बाकी विभाग के दूसरे विद्यार्थियों के लिए एक हेल्पलाइन नम्बर जारी किया जाए ताकि लॉकडाउन में जिसे भी आर्थिक सहायता की ज़रूरत हो, उसे मदद पहुंचाई जा सके। विभाग के सभी प्रोफेसर और सदस्य अपनी सैलरी के कुछ अंश का इसमें योगदान करें।

ऐसा लगा मानो अभी उनकी बात पूरी नहीं हुई थी। वह कुछ और बात भी कहना चाह रहे थे। पास में रखे पानी के एक बोतल का दक्कन खोला और कई घुट पानी गटक गए। फिर रुमाल से अपना मुँह पोछते हुए कहा- “मैम! मुझे पूरा यकीन है कि कहीं न कहीं हमारे विद्यार्थी और शोधार्थी भूख और बेरोजगारी की मार झेल रहे होंगे। आखिर हम उनके गुरु हैं। माता-पिता के बाद दूसरा स्थान गुरु का आता है। हम उन्हें ऐसे कैसे छोड़ सकते हैं।”

अपना वाक्य पूरा होने पर डॉ. सहगल ने चारों ओर अपनी नजर फेरी। सभी सदस्यों का शरीर ऐसा सुन्न पड़ गया था मानो काटो तो खून नहीं। एक गहन सन्नाटा उनके लैपटॉप पर पसर गया था। शून्य-सा खाली उनकी मुख मुद्रा की तरह गोल पर रिक्त।

मिसेज वर्मा ने सभी की तन्द्रा भंग करते हुए बोलीं- “सभी सदस्यों के सुझाव पर गौर करते हुए यह मीटिंग बर्खास्त की जाती है। सुझावों पर कार्य दो दिन बाद से आरंभ होगा। आप सभी सदस्यों का धन्यवाद!”

दो दिन बाद योजनाबद्ध तरीके से कार्य हुआ। दिशा-निर्देश सभी को व्हाट्सएप से सूचित किए गए। संदेश में लिखा चमक रहा था- लॉकडाउन निर्मित परिस्थितियों से निपटने व विद्यार्थियों के कल्याण हेतु विभाग के सभी सदस्य अपना योगदान करेंगे।

सोमवार शाम 6 बजे प्रोफेसर तिवारी फेसबुक लाइव पर अपनी पुस्तक ‘खाली समय में साहित्य का उपयोग’ विषय पर चर्चा करेंगे।

मंगलवार, शाम 6 बजे प्रोफेसर मिश्रा अपने प्रसिद्ध नाटक ‘ बकरी क्यों उदास’ का पाठ करेंगे।

बुधवार को प्रोफेसर नीलिमा अपनी कविता ‘ग़रीबों की हाहाकर’ लाइव सुनाएंगी। जिसे कविता समझ न आए वह उनसे इस विषय पर चर्चा भी कर सकता है।

सभी विद्यार्थियों से अनुरोध है कि कोरोना और स्वास्थ्य विषय ओर 1500 शब्दों में अपना आलेख हमे मेल करें। आलेख कृतिदेव में होना चाहिए। सबसे अच्छे आलेख को विभाग की ओर से पुरस्कृत किया जाएगा।

डॉ. सहगल ने व्हाट्सएप मैसज को जैसे पढ़ा वैसे ही उन्होंने महसूस किया कि उनके भीतर से कुछ टूट रहा हो। उनकी पत्नी ने कंधे पर हाथ रख उन्हें ढांढस बंधाया। और बहुत उत्साहित होते हुए बोली- “ये लो जी लिस्ट बन गई है सभी बच्चों की। डॉ. सहगल ने एक नज़र लिस्ट पर डाली और बोले- “कुछ पास के हैं। उन्हें हम घर जाकर राशन किट खुद दे आते हैं। जो दूर हैं उनके अकाउंट में पैसे डाल देते हैं। कोई भी विभाग का बच्चा भूख से नहीं मरना चाहिए। आखिर हम भी तो उनके गुरु हैं हमारा भी कुछ कर्तव्य है उनके प्रति। बरकतुल्लाह साहब के पूर्व शोधार्थी अमन ने बताया है कि दो दिन से उसका परिवार भूखा है। पहले उनके लिए खाना और दूध के पैकेट पहुंचाने हैं। चलो जल्दी करो। एक शोधार्थी और हैं उस एरिया में मिश्रा जी का।”

डॉ. सहगल और उनकी पत्नी ने ई-रिक्शा में समान रखा और गंतव्य पर निकल पड़े। शाम के 6 बज चुके थे। उधर फेसबुक लाइव पर तिवारी जी ‘खाली समय में साहित्य का उपयोग’ विषय पर चर्चा करने हेतु उपस्थित हो गए थे। वह दांत निपोरते हुए बोले- “दोस्तो, लॉकडाउन में साहित्य का उपयोग कैसे करें, मैं इस विषय पर चर्चा करूँगा। इसके लिए आवश्यक है बला-बला-बला…।”

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