बर्फबारी से सड़क बंद, मुस्लिम पड़ोसी कंधे पर लाए 10 KM दूर कश्मीरी पंडित का शव

बर्फबारी से सड़क बंद, मुस्लिम पड़ोसी कंधे पर लाए 10 KM दूर कश्मीरी पंडित का शव

जम्मू-कश्मीर में शनिवार को इंसानियत की मिसाल देखने को मिली, जब मुस्लिम समुदाय के लोग एक कश्मीरी पंडित का शव 10 किलोमीटर कंधे पर उठाकर ले गए और उनका दाह संस्कार किया। भास्कर नाथ का इलाज एसकेआईएमएस अस्पताल चल रहा था जहां किडनी फेल्यर के चलते उनका निधन हो गया था।

न्यूज एजेंसी कश्मीर न्यूज ट्रस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 23 जनवरी को शोपियां जिले के इमाम साहिब इलाके के परगोची गांव के रहने वाले कश्मीरी पंडित भास्कर नाथ का शनिवार की सुबह श्रीनगर के स्किम्स में निधन हो गया। एंबुलेंस से उनका शव शोपियां लाया गया, लेकिन भारी बर्फबारी के चलते एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच पाई।

लेकिन जब मुस्लिम पड़ोसियों को एंबुलेंस के फंसे होने की जानकारी मिली, वे घर से निकले और पैदल ही एंबुलेंस की तरफ चल पड़े। इसके बाद उन्होंने भास्करनाथ के शव के शव उठाया और अपने गांव लाए। इतना ही नहीं, मुस्लिम समुदाय के लोग भास्कर नाथ के अंतिम संस्कार में भी शिरक्त की।

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फयाज अहमद नाम के एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया, “एंबुलेंस ड्राइवर ने परिवार के एक सदस्य को फोन कर बताया, जिसके बाद स्थानीय मुस्लिम लोगों को जानकारी दी गई। खराब मौसम के बीच स्थानीय मुसलमान पैदल गए और शव को अपने कंधों पर लाद कर लाए। बर्फबारी के कारण, सड़क बंद थी इसलिए हम शव को अपने कंधों पर पारगोची गांव ले आए।”

शोपियां में बर्फबारी के बीच कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार करते हुए (फोटो क्रेडिट- कश्मीर लाइफ)

उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों ने बर्फबारी के बीच ही भास्कर नाथ का दाह संस्कार का सारा इंतजाम किया। सभी मिलकर पंडित का हिंदू रीति रिवाज के साथ दाह संस्कार किया। दाह संस्कार के दौरान भारी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने वहां पहुंचकर शोक जताया।

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भास्कर नाथ के एक रिश्तेदार ने न्यूज एजेंसी को बताया, “हम अभिभूत हैं और अपने स्थानीय मुस्लिम भाइयों के लिए अपने प्यार और स्नेह को व्यक्त नहीं कर सकते।” वहीं भास्कर के रिश्तेदार शमी लाल ने बताया, “मुस्लिम भी इसी समाज का हिस्सा रहे हैं। 1989 में पंडितों को घाटी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इसके बाद भी कुछ पंडित परिवारों ने घाटी नहीं छोड़ी और मुस्लिमों के साथ सगे भाई की तरह रहते आए हैं।” 

उन्होंने आगे कहा, “कभी महसूस नहीं हुआ कि वे यहां अल्पसंख्यक हैं। सभी भाईचारे और सौहार्द के साथ रहते आए हैं।” वहीं, गांव के रशीद अहमद नाम के शख्स ने बताया कि हम लोग एक दूसरे के शादी ब्याह और अंतिम संस्कार में शामिल होते हैं। हर सुख-दुख में शामिल होते हैं। यह वैसा ही है जैसा कि एक पड़ोसी को करना चाहिए।

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