राफेल डील को लेकर एक और खुलासा, बिचौलिये को दिया गया करोड़ों का गिफ्ट

राफेल डील को लेकर एक और खुलासा, बिचौलिये को दिया गया करोड़ों का गिफ्ट

एक बार फिर राफेल विमान सौदा सवालों के घेरे में आ गया है। राफेल डील में भारतीय बिचौलिये को करीब 8.5 करोड़ की गिफ्ट दिए जाने की बात सामने आई है। राफेल विमान डील को लेकर फ्रांस के एक पब्लिकेशन ने सवाल उठाए हैं। पब्लिकेशन ने डील में भ्रष्टाचार होने की आशंका जताई है। राफेल पेपर्स नाम से फ्रांस की न्यूज वेबसाइट मीडियापार्ट ने एक आर्टिकल प्रकाशित की है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दसॉ को भारत में एक बिचौलिये को एक मिलियन यूरो ‘बतौर गिफ्ट’ देने पड़े थे।

राफेल सौदे पर मीडियापार्ट ने रविवार को तीन-पार्ट की पहली श्रृंखला प्रकाशित की। मीडियापार्ट का कहना है, “इस विवादास्पद सौदे (36 राफेल फाइटर) के साथ, दसॉ ने एक बिचौलिये को एक मिलियन यूरो का भुगतान करने के लिए भी सहमति व्यक्त की, जो अब एक और रक्षा सौदे से जुड़े मामले में भारत में जांच का सामना कर रहा है।”

वेबसाइट रिपोर्ट के अनुसार, राफेल लड़ाकू विमान सौदे में गड़बड़ी का सबसे पहले जानकारी फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी एएफए (AFA)को 2016 में मिली थी। यह जानकारी एजेंसी को सौदे पर दस्तखत के बाद मिली थी। वेबसाइट के मुताबिक, “कंपनी के 2017 के खातों की जांच का दौरान ‘क्लाइंट को गिफ्ट’ के नाम पर हुए 508925 यूरो के खर्च का पता लगा। यह समान मद में दूसरे मामलों में दर्ज खर्च राशि के मुकाबले कहीं ज्यादा था।”

राफेल डील को लेकर एक और खुलासा, बिचौलिये को दिया गया करोड़ों का गिफ्ट

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मीडियापार्ट ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि जब इस खर्च पर दसॉ से स्पष्टीकरण मांगी गई तो अपनी सफाई में कंपनी ने एएफए को 30 मार्च 2017 का बिल मुहैया कराया जो भारत की डिफिसिस सॉल्यूशंस (DefSys Solutions) की तरफ से दिया गया था जो दसॉ की भारत में सब-कॉन्ट्रैक्टर कंपनी है।

यह बिल राफेल लड़ाकू विमान के 50 मॉडल बनाने के लिए दिए ऑर्डर का आधे काम के लिए था। हर एक मॉडल की कीमत करीब 20 हजार यूरो से अधिक थी। दसॉ से एएफए ने इस खर्च के बारे में पूछा था कि आखिर कंपनी ने भारतीय कंपनी को इतनी कीमत पर ऑर्डर क्यों दिया, क्यों इस खर्च को ‘ग्राहक को उपहार (बतौर गिफ्ट)’ क्यों लिखा गया। साथ ही एजेंसी यह भी पूछे कि क्या एक छोटी कार के आकार के यह मॉडल कभी बनाए या कहीं लगाए भी गए?

मीडियापार्ट के रिपोर्ट के मुताबिक, “दसॉ ग्रुप एएफए को एक भी दस्तावेज उपलब्ध कराने में असमर्थ रहा, जिसमें दिखाया गया था कि ये मॉडल मौजूद थे और डिलिवर किए गए थे लेकिन इसकी एक भी तस्वीर नहीं थी। इससे संदेह पैदा हुआ कि खरीद ‘फर्जी’ थी और इसका उद्देश्य ‘छिपे हुए वित्तीय लेनदेन’ को कवर करना था।”

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राफेल डील को लेकर एक और खुलासा, बिचौलिये को दिया गया करोड़ों का गिफ्ट

अपनी रिपोट में मीडियापार्ट ने बताया है कि डिफिसिस विमान के मॉडल बनाने में माहिर नहीं हैं। भारत में डिफिसिस राफेल सौदे में डसॉल्ट के उप-ठेकेदारों में से एक है। डिफिसिस की वेबसाइट के मुताबिक, डिफिसिस इंटीग्रेटेड इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल पेलोड, थर्मल इम्प्लॉइज, फ्लाइट एंड फायरिंग सिमुलेटर, इलेक्ट्रो-मैकेनिकल सिस्टम, ऑन-बोर्ड इलेक्ट्रॉनिक सब-सिस्टम, ऑटोमेटेड टेस्ट इक्विपमेंट्स (ATEs) डिजाइन और निर्माण करने में माहिर हैं।

दरअसल, इस रिपोर्ट में जिस भारतीय कंपनी का नाम लिया गया है, उसका पहले भी विवादों से नाता रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी का मालिक पहले अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले के केस में जेल जा चुका है। डिफिसिस का स्वामित्व रखने वाले परिवार से जुड़े सुषेण गुप्ता रक्षा सौदों में बिचौलिए और दसॉ के एजेंट रहे हैं। 2019 में सुषेण गुप्ता को अगस्ता-वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर खरीद घोटाले की जांच के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गिरफ्तार किया था।

उल्लेखनीय है कि साल 2016 में केंद्र की मोदी सरकार ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का सौदा किया था। जिसमें से एक दर्जन विमान भारत को मिल भी गए हैं और 2022 तक सभी विमान मिल जाने की संभावना है। जब ये रक्षा सौदा हुआ था उस वक्त भी इसको लेकर काफी विवाद हुआ था। बीते लोकसभा चुनाव तक राफेल लड़ाकू विमान भ्रष्टाचार का मुख्य मुद्दा था।


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