पहले भूमि अधिग्रहण बिल, फिर कृषि कानून और अब श्रम कानून टालने के मूड में सरकार

पहले भूमि अधिग्रहण बिल, फिर कृषि कानून और अब श्रम कानून टालने के मूड में सरकार

पहले भूमि अधिग्रहण बिल, फिर कृषि कानून पर मोदी सरकार पीछे हट गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान कर दिया। लेकिन, अब सरकार दोनों कानूनों की तरह ही श्रम कानून को भी टालने के मूड में है।

दरअसल, ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार अपनी लोकप्रियता को खतरे में नहीं डालना चाहती है। ऐसे में सरकार के खिलाफ हो रहे विरोध-प्रदर्शन को हवा देने से रोकने के लिए कृषि कानून के बाद श्रम कानून को लेकर भी मोदी सरकार बड़ी सावधानी से कदम रख रही है।

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श्रम मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार ने नए श्रम कानून टालने को लेकर चार बार समय सीमा बढ़ाई है। हालांकि, पहले तीन बार टालने के वक्त इसकी अगली तारीख भी बताई जाती रही। लेकिन चौथी बार टालने के दौरान अगली तारीख की घोषणा नहीं की गई है।

पहले भूमि अधिग्रहण बिल, फिर कृषि कानून और अब श्रम कानून टालने के मूड में सरकार

ऐसे में अब श्रम कानून कबतक लागू होगा उसकी कोई स्पष्ट तारीख सामने नहीं आई है। इसको देखते हुए संकेत मिल रहे हैं कि सरकार कृषि कानून की तरह श्रम कानून को भी टालने के मूड में है।

ब्लूमबर्ग ने मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले लिखा है कि अगले साल के शुरुआत में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार चुनाव बाद ही कानूनों को लागू करने पर विचार करेगी। जैसा कि मालूम है कि साल 2019 और 2020 में सरकार ने श्रम कानून को लेकर विधेयक पारित किए गए थे। पर विधेयक के खिलाफ 10 ट्रेड यूनियन विरोध में हैं।

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यूनियन ने उन नियमों पर आपत्ति जताई है जिसमें कर्मचारी की नियुक्ति और बर्खास्तगी के नियम कंपनी के लिए आसान हैं। विरोध के स्वर उठने और चुनावी माहौल को देखते हुए सरकार अभी श्रम कानून को लागू करने के मूड में नजर नहीं आ रही है।

उल्लेखनीय है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के चलते भाजपा को आक्रामक विरोध देखने को मिल रहा है। ऐसे में कृषि कानूनों की वापसी के एलान से पहले माना जा रहा था कि पार्टी को चुनावी राज्यों में तगड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।


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