मिस्टर प्राइम मिनिस्टर आपके बेमिसाल 6 साल ने जनता को दिए सिर्फ भूख, प्यास और आंसू

मिस्टर प्राइम मिनिस्टर आपके बेमिसाल 6 साल ने जनता को दिए सिर्फ भूख, प्यास और आंसू

अब तक के इतिहास में सबसे बड़ी महामारी कोरोना वायरस का सामना हम कर रहे हैं। पूरे विश्व में इससे अब तक लाखों मौतें हो चुकी हैं। जब यह भारत पहुंचा तब इसके बचाव के नाम पर लॉकडाउन बिना किसी व्यवस्था के लागू कर दिया गया। वो भी रात के 12 बजे से। सरकार ने सिर्फ अपने ऐलान के बीच में चार घंटे का समय दिया। वह भी रात को, जब कोई कुछ नहीं कर सकता था। सरकार ने उन बेसहारों के बारे में नहीं सोचा जो सड़कों पर अपना जीवनयापन करते हैं। न मजदूर वर्ग के बारे में और न ही उन लोगों के बारे में जो अपने इलाज के लिए पहले से हॉस्पिटल में एडमिड हैं या उसके उसके बाहर घड़े थे। सब-के-सब एक बार में बिखेर दिया गया।

चलो ये भी मान लिया कि उस वक़्त सरकार के पास सोचने-समझने की शक्ति नहीं थी। लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में लगातार सड़क पर मजदूरों की स्थिति से सरकार क्या अब भी अवगत नहीं है; जो उस तरफ से अपनी आंखें मीच ली है। हद तो तब हो गई जब पूरा देश संक्रमण से जूझ रहा है, हादसों में मजदूरों की जानें जा रही हैं तब आप अपनी सरकार के 6 साल पूरा होने का जश्न मना रहे हैं। बीते 6 सालों को ‘बेमिसाल’ बता रहे हैं। भाजपा की ओर से अपने ट्वीटर पर वीडियो पोस्ट किया जा रहा है। कैप्शन भी कमाल के ‘मोदी सरकार के छह साल…बेमिसाल।’

आपकी जनता मर रही है। कुल 31 मजदूर तो सिर्फ एक दिन में सड़क हादसे में मारे जाते हैं। आप जश्न मना रहे हैं। वह भी बेमिसाल वाला जश्न। मैं पूछना चाहती हूं कि इन 6 सालों में अब तक आपने किया ही क्या है जिसे आप बड़े ही गर्व से बेमिसाल बता रहे हैं। हमारे नज़र से आपके बेमिसाल 6 सालों में 6 ऐसे काम भी नहीं है जिसे वाहवाही बटोरी जा सके। जिसके नाम पर तालियां पीटी जा सके। हां, आपका ध्यान खास तीन बातों पर जरूर टिकी दिखी- तीन तलाक, राम मंदिर, हिन्दू-मुस्लिम एजेंड़ा। आपके सारे वादें खोखली निकलीं। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए नोटबन्दी लाया गया। दलील दी गई, भ्रष्टाचारियों का पर्दाफाश होगा। कहा हैं वे भ्रष्टाचारी, अब तक जनता के सामने उन्हें क्यों नहीं लाया गया?

जनता ने अपनी जिंदगी की बागडोर आपको सौपीं थी। आप कहते थाली बजाओ, बजाते हैं। आप कहते हैं दीया जलाओ वे जलाते हैं। आपकी हर एक बात पत्थर की लकीर की तरह मानते हैं। आपको महात्मा गांधी के बराबर आपके समर्थकों ने खड़ा करने की कोशिश की। फिर आपने लाखों लोगों को सड़कों पर क्यों छोड़ दिया? क्या महात्मा गांधी ऐसा करते? बेबस, लाचार, भूख से तड़पते बच्चे, बूढ़े, औरतें, अपाहिज, बीमारी से जूझ रहे लोगों की आवाजें आपके कानों तक क्यों नहीं पहुंच रहीं? क्या आप बहरे हैं या केवल बोलने के आदी हैं, सुनने की नहीं?

6 साल का बच्चा पैर में दर्द होने के बाद भी हमें चलता दिख रहा है। 15 साल का लड़का झोला लिए पापा-पापा कहता रोता दिख रहा है। बीच रास्ते में बच्चा जन्म देने वाली मां अपने 2 घण्टे पहले जन्म लिए बच्चे को गोद में लिए उठकर चलती दिख रही है। 8 महीने की गर्भवती हाथ जोड़कर पुलिस से विनती करते दिख रही है कि मैं 8 महीने की गर्भवती हूँ, 500 किलोमीटर चल कर आ रही हूं, मुझे जाने दो सर! पुरुष रोते बिलखते दिख रहे हैं। खाने के लिए आपस में ही छीना-झपटी करते दिख जा रहे हैं। लाश के पास रोता मासूम बच्चा आपको क्यों नहीं दिखता?

न जाने ऐसे कितने दर्द हैं जो अखबारों के हेडलाइन बने और न जाने कितने ही दर्द दब कर रह गए। ये सब कुछ भी आपको नहीं पता। नहीं ही पता होगा तभी तो अपने बेमिसाल 6 साल का जश्न मना रहे हैं। टेलिविजन वालों की माने तो अब तक सड़कों पर भूख-प्यास-दुर्घटना में 376 लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि, लॉकडाउन के दौरान इलाज के अभाव में गंभीर बीमारियों से मरे लोगों का, जिनका आकड़ा किसी के पास नहीं, इसमें शामिल नहीं है।

आप लोगों में आत्मनिर्भरता भरना चाह रहे हैं। लेकिन जो हजारों लोग सड़कों पर हैं वो आत्मनिर्भरता के कारण ही तो अपने घर की ओर निकल पड़े हैं। शायद उन्हें पता था कि हमारे प्रधानमंत्री हमें आत्मनिर्भर बनने को कहेंगे। इसलिए वे अपनी यात्रा अपने बल और अपने पैरों से कर रहे हैं। हज़ार-दो हजार किलोमीटर पैदल निकल जाना मज़ाक है क्या? जिसके बारे में आप सुध नहीं ले रहे और मजदूरों के मजबूरी को बलिदान का नाम दे रहे हैं। आपके पूरे भाषण में मजदूर शब्द आया ही नहीं। शायद सुप्रीम कोर्ट ने जैसे कहा कि लोग सड़कों पर पैदल चल रहे हैं तो उसमें हम क्या कर सकते हैं। यही आपका भी कहना होगा।

रेल की पटरियों में सोए उन मजदूरों की मौत से भी आपका दिल क्यों नहीं पसीजा। ऐसे तो आप हर भाषण में रोते हैं। फिर इन मजदूरों की मौत पर मातम क्यों नहीं। उन पटरियों में बिखरे रोटियों ने भी आपकी नींद नहीं उड़ा पाई तो किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि आपको नींद से उठा सके। पर आपकी सारी पोलें खुलती रही। ये बात अलग है कि जिस किसी ने भी आपके खिलाफ आवाज उठाई वो बदनाम हुआ। लेकिन चंद सवाल है आपसे; जिसका जवाब मैं ही दे देती हूं।

आप देश को ‘Make in India’ बनाना चाहते हैं। लगा ये तो बहुत ही अच्छी खबर है। रोजगार बढ़ेगा, आमदनी बढ़ेगा। अपने देश के लोगों को अपने हुनर दिखाने का मौका मिलेगा। पर यहां भी झोल। आइए इस सच से भी रूबरू करा दें-

साल 2016 में हफिंगटन पोस्ट नाम की एक अंग्रेजी वेबसाइट ने ‘मेक इन इंडिया’ के लोगों को लेकर एक रिपोर्ट की थी। रिपोर्ट के अनुसार, मध्यप्रदेश के एक एक्टिविस्ट चन्द्र शेखर गौर ने एक RTI डाली थी। RTI में सवाल पूछा था कि Make In India का Logo किसने बनाया है? तो जबाव आया कि स्पेशल Logo के लिए तो कोई टेंडर नहीं दिया गया था। लेकिन Make In India के कैंपेन और डिजाइनिंग के लिए जरूर एक कम्पनी हायर की थी कम्पनी का नाम था- ‘Wieden+Kennedy India Limited’। इसी कम्पनी ने Make In India का Logo तैयार किया था।

असल सच्चाई ये है कि इस कम्पनी की इंडिया में जो सहायक कम्पनी है (सीधे में कहूँ तो समझिए भारत में इसकी एक ब्रांच है) जिसकी ऑफिस दिल्ली के साकेत में है। सेंट्रल कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्ट्री ने इसी फर्म को 11 करोड़ रुपये में तीन साल के लिए हायर किया था। ताकि मेक इन इंडिया की ब्रांडिंग और डिजाइनिंग की जा सके।

अब बताइए Make In India की ब्रांडिंग भी विदेशी कम्पनी की मदद से की जा रही है। इससे अधिक हंसी वाली बात क्या हो सकती है। खासकर तब जब पूरी-की-पूरी कौम स्वदेशी, देशी, विदेशी वाले व्हाट्सएप मैसेज फॉरवर्ड करने में लगी हुई है। लोग चाइनीज झालर, फुलझड़ी, पटाखों का विरोध करते पाएं जाते हैं। जबकि सारे सेल फोनस जिस पर वे ये मैसेजेज फैलाते हैं, विदेशी कंपनी हैं। बड़ी-बड़ी बातें छोड़ दीजिए चाय बनाने वाला प्रधानमंत्री बन गया यही सब कहते हैं न। बहुत चाव से चाय भी लोग पीते हैं। लेकिन इसकी उत्पत्ति भी विदेश में ही हुई थी वो भी चीन में।

प्रधानमंत्री के ‘लोकल के लिए वोकल’ वाली बात भी फुस्स हो जाती है। क्योंकि खुद नरेंद्र मोदी ने अपनी इमेज को वोकल बनाने के लिए भी लोकल का इस्तेमाल नहीं किया। ये कितना हास्यास्पद है कि प्रधानमंत्री ने अपनी इमेज की ब्रांडिंग करने के लिए भी एक विदेशी पीआर एजेंसी हायर की। यहां तक कि अरोग्य सेतु ऐप जो लाया गया है उससे भी सिर्फ विदेशी कंपनी को फायदा हो रहा है। अब अगर सारे फायदे विदेशी कंपनी को ही आप दिलवाते रहेंगे तो यहां के लोगों को ‘आत्मनिर्भर’ बनना ही पड़ेगा।

आप जब भी आते हैं डुगडुगी बजाते हुए आते हैं और राहत पैकेज का ऐलान करके चले जाते हैं। लेकिन उनमें से कितनों को उस पैकेज से राहत मिल पा रहा है किसी को कुछ नहीं पता। आपने ऐलान किया कि हर महीने मजदूरों के खातों में 500 रुपये डाले जाएंगे। डाले भी गए। पर उस 500 रुपये के लिए जो लोगों को पापड़ बेलने पड़ें क्या उससे अवगत नहीं हैं आप? जिनके पास आधार कार्ड नहीं उन्हें कोई फायदा नहीं। जिनके पैसे आएं उन्हें बैंक से ये कहकर पुलिस पकड़ कर ले गई कि सोशल डिस्टेन्स मेंटेंन नहीं कर रहे थे। 10 औरतों पर दस हजार जुर्माना पड़ गया। 500 कितना भारी पड़ा होगा उन्हें। कभी-कभी लगता है कि आप हर काम बिना प्लानिंग के करते हैं। और जब वह फेल हो जाए तो उसे भरने के लिए एक और बिना प्लानिंग वाला प्लानिंग करते। वह फेल हो जाए तो एक और प्यानिंग…..। यह तब तक चलता है जब तक देश की गरीब जनता उसके बोझ तले धस नहीं जाती।

आप पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं। लॉकडाउन लगाना जरूरी था पर आपने बिना सोचे समझे उसे लागू किया जिस प्रकार आपने मजे-मजे में नोटबंदी किया था। आप मजदूरों को समय दे सकते थे कि जिन्हें जहां जाना है चले जाएं। या फिर उनके लिए कोई दूसरा इंतेजाम करते। लेकिन नहीं। लोगों से अपील करते रहे हैं कि ज्यादा-से-ज्यादा लोग पीएम फंड में दान करें। पर उस दान किए गए पैसे का क्या हुआ। कोई अब तक हिसाब नहीं। उसका कोई आंकड़ा नहीं। करोड़ों, अरबों रुपये लोगों ने दान किए। कई लोगों ने तो अपने जीवनभर की बचते आपके नाम कर दी ताकि देश बचा रहे। फिर भी मजदूरों से पैसे लिए गए। उससे तो अच्छा ये होता कि आप ये कहते हैं कि जिसकी जितनी क्षमता है उस हिसाब से खुद से लोगों की मदद करे। तब आप भी देखते बिना किसी के मौत के लोग अपने घरों में सुरक्षित होते। और आपको हजारों लोगों की दुआएं भी मिलती। लेकिन अब चारों ओर चीखें हैं, आंसू हैं, भूख है। शायद ये आपके बेमिसाल 6 साल हैं, जिनका जश्न आप मना रहे हैं।

-जागृति सौरभ (प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा झारखंड से। एम ए हिंदी से। पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित। फिलहाल स्वतंत्र पत्रकारिता)

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