मिस्टर प्राइम मिनिस्टर, आप विदेशी कंपनियों को ललचाने के लिए दुनिया घूमते रहे अब कहते हैं ‘स्वदेसी’ अपनाओ

मिस्टर प्राइम मिनिस्टर, आप विदेशी कंपनियों को ललचाने के लिए दुनिया घूमते रहे अब कहते हैं ‘स्वदेसी’ अपनाओ

मिस्टर प्राइम मिनिस्टर,

बहुत दु:खी मन से आपको चिट्ठी लिख रहा हूं। हालांकि, जबसे आपने देश को डिजिटल बनाया है लोगों ने चिट्ठी-पत्री लिखना छोड़ दिया है। मैंने भी किसी को वर्षों से नहीं लिखी हैं चिट्ठी। क्या कहूं! अपनी पढ़ाई, फिर रोजी-रोटी के फेर में इस कदर उलझा कि अपने परिवार से फ़ोन पर बात करना भी यदा-कदा ही संभव हो पाया।

लेकिन अब आपसे बात किए बैगर काम नहीं चल सकता। हालांकि आप इतने बड़े आदमी हैं कि आपको फ़ोन कर डिस्टर्ब भी नहीं कर सकता!

जिस दिन से आपने सड़कों पर गाड़ियां और पटरियों पर ट्रेन न चलने का फरमान सुनाया था, उसी दिन से उन सख्त रास्तों में मासूम जिन्दगियों की सिसकियां और पदचापें झनझनाने लगी थी। एक दिन मनहूस खबर आई कि देश के 16 बेशकीमती नागरिक (माफ कीजिएगा मिस्टर प्राइम मिनिस्टर, ट्रेन से कटने वाले सभी लोग पहले आपके देश के नागरिक थे, बाद में मजदूर) ट्रेन की पटरी के नीचे कट गए हैं। यकीन मानिए, रेल की पटरी पर बिखरी पड़ी लाशों और उनकी अधपकी रोटियों का दृश्य देखकर दिल ज्वालामुखी की तरह दहक उठा। रोंगटे सूखे बांस के तरह तन गए। न चाहते हुए भी आंखों में लाल रेशमी दरारें खींच आई।

मुझे आशा है कि मेरी तरह अनगिनत लोगों की ऐसी दशा एक-सी हो रही होगी। पर क्या करें! अभी के हालात के आगे हम सब बेबस है साहेब। लेकिन आप तो सत्ता के सिरमौर हैं। राजा हैं। जब जी में आता है ‘मन की बात’ कह देते हैं। हम सब आपके जादुई अल्फाज़ सुनकर खुद के दर्द को अपने सीने में ही दफना देते हैं। हम आखिर किससे कहे अपनी मन की बात? आप से कहे तो सुन पायेगे न आप?

मैं उतना बड़ा आदमी नहीं हूँ कि आपसे यह पूछने कि हिमाकत करूँ कि आप आम खाने जैसा महान कार्य कैसे करते हैं? उतना बड़ा लेखक भी नहीं कि आपसे आपकी फ़कीरी के रहस्य जान लूँ? संयोग से उतना बड़ा पत्रकार भी नहीं कि आपसे यह पूछने कि जुर्रुत कर सकूँ कि आप लगातार अठ्ठारह-अठ्ठारह घण्टे काम कैसे कर लेते है?

मैं तो आपके देश का बहुत मामूली नागरिक ठहरा। इसलिए मेरा आपसे मामूली-सा सवाल है, यदि आप मुनासिब समझे तो जबाव दे दीजिए।

वे 16 नागरिक जो ट्रेन से कटकर बेमौत मारे गए, उनका दोष क्या था? भूख से बिलबिला रहे लाखों मजबूर लोगों का कसूर क्या था कि काली सड़कें देखते-देखते उनके खून से लाल हो गई? जिन हजारों मेहनतकश लोगों की हालत अचानक भिखारियों-सी हो गई, उसने आपका क्या बिगड़ा था?

उन लोगों ने आपको क्या नहीं दिया? पूरी दुनिया जानती है कि उन्हीं लोगों ने आपको अपने सिर आंखों में बिठाया। आपके हर अंदाज से वही लोग आपके दीवाने हुए थे। उन्हीं के चलते आप इस देश में हीरो की तरह पूजे जाने लगे। देश के इतिहास में गाँधीजी के बाद उन्हीं लोगों ने आपसे इतनी मोहब्बत की थी।

आपने जब जो हुकुम दिया। उन लोगों ने बैगर किसी न-नुकुर के स्वीकार किया। भारी यातना के वक्त में अपने कहा, ताली बजाओ। उन लोगों ने ताली बजाई। अपने कहा, दीया जलाओ। उन लोगों ने दीये जलाए। आपसे कोई शिकायत नहीं की। बेजुबां लोग आपके राज में बेदर्दी से पैतालीस-पचास दिन काटे लिए। जब उन्हें लगा कि घर न गए तो भूखे मर जाएगे। सो, सैकड़ों किलोमीटर दूर पैदल अपने घर की दिशा की ओर रवाना हो गए। लाखों लोगों ने पुलिस की बर्बरता, भूख और बोझ से दबे होने के बावजूद जीने की उम्मीद नहीं छोड़ी।

सच पूछिए तो उनका मरना तय था। यहां रहते तो भुखमरी से तड़प-तड़प कर मरते। घर जाते वक्त नींद की हालत में एक झटके में मारे गए।

आपको याद ही होगा कि कोरोना के बज्रपात से ठीक पहले दिल्ली के दंगे में सैकड़ों बेकसूर लोग बेवजह अपनी जान गवां दी थी। मेरा मन इस बात को मानने के लिए राजी नहीं होता कि आपको उस नरसंहार की पूर्व सूचना न हो। उस समय आपकी जो मजबूरी रही थी, कम से कम मैं समझ ही सकता हूँ। दुनिया से सबसे वीर पुरुष की आवाभगत में आपने खुद को झोक रखा था। ठीक दूसरी तरफ एक राज्य की सरकार को गिरा कर अपनी बनाने की मजबूरी भी थी। उस समय उन्हीं लोगों ने यह कह कर आपका साथ निभाया था कि मिस्टर प्राइम मिनिस्टर ने थोड़े न कहा था कि दंगा-फसाद करके कट-मर जाओ।

वास्तव में, आने वाला कल इस कोरोनाकाल को ‘अफवाह काल’ के रूप में याद करेगा। मुझे मालूम है आप इतिहास की परवाह बिल्कुल नहीं करते। आपके सिपहसालार भविष्य की ओर नजरें गड़ाये हैं। दूसरी तरफ एक हिन्दू राष्ट्र बनाने का सपना जिसे कुछ दशक पहले आपके मार्गदर्शक मंडल के लोगों ने देखा था, उसे पूरा करने की जिद में आप धृतराष्ट्र में तब्दील हो चुके हैं।

आप किसे आत्मनिर्भर बनाने की बात करते हैं। सचमुच आप बहुत अच्छा मजाक भी कर लेते हैं। बीस लाख करोड़ की बात जब वे मजदूर सुनेंगे जो महीनों भूखे-प्यासे नंगे पाव पैदल चलकर अपने घर पहुँचे हैं, सम्भव है वे आपके इतने बड़े रकम की बात सुनकर मदहोश हो जाए। वे लोग जो अपने बच्चे के लिए दूध की तालाश में घर से निकले थे और पुलिस की मार से बेहोश हो गए उन्हें आपकी बात से ऊर्जा मिले।

आपके मुँह से स्वदेसी की बात सुनकर एक बाबा तो बच्चों की तरह चहकने लगे। उनका चहकना लाजिमी है। लेकिन मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि 2014 से 2019 तक की पूरी अवधि आप विदेशी कंपनियों को ललचाने के लिए पूरी दुनिया घूमते रहे और आज आप ‘स्वदेसी’ पर जोर दे रहे हैं? हम जानते हैं कि आप सरकार हैं, इसका मतलब यह तो नहीं कि देश के पैसे को पानी की तरह बहा दें। आपने जिस उद्देश्य से विदेशी दौर किया था वह तो अब बेकाम का हो गया न? जितनी राशि आपने विदेश के दौरे में खर्च किया है, क्या उतना रुपया सूद समेत आपकी पार्टी देश की जनता को वापस करेगी?

जो मजदूरों आपकी तरफ उम्मीद भरी नजरों से ताक रहे थे अच्छा ही हुआ कि आपने उनके पक्ष में एक शब्द भी नहीं कहा। मजदूर और मजदूर चेतना के लोग बहुत जल्दी अपना दर्द भूल जाते हैं। यदि आप उनके लिए कुछ बोल देते तो फिर वे लोग झूम उठते और आपके झांसे में आकर लोटने लग जाते। देखे नहीं, नोटबन्दी वाली घटना को उनलोगों ने कैसे अपनी स्मृति से हमेशा के लिए मिटा दिया।

आपकी स्मृति तो पक्की है। आज की तस्वीरों को अपनी आंखों में कैद कर लीजिए। आप सचमुच कोई अवतारी पुरुष हुए, तब भी प्रकृति न्याय करेगी। राम की चौदह वर्ष की यातना और गांधारी का कृष्ण को दिया गया भयानक श्राप कोई भूल भी सकता है क्या?

सवाल ढ़ेर सारे बचे रह गए हैं अब भी। फिर कभी मौका हाथ लगा तो पूछूंगा। फिलहाल जानते हैं मैंने आपसे कुछ सवाल किस डर से पूछ लिया है? हां, डर से ही पूछा है। सिर्फ इस डर से कि जिस दिन आपके जाने की घंटी बज जाएगी, तब आप झोला उठाएंगे और फुर्र हो जाएंगे। फिर हमारे बच्चे हमसे जवाब मांगेगे। और जब हम उनसे कहेंगे कि हम तो अपनी रोजी-रोटी के फिराक में मिस्टर प्राइम मिनिस्टर से यह सवाल करना ही भूल गए थे तो वे हमसे घृणा करेंगे और सुन्दर से फ्रेम में चिपकी हमारी फोटो पर माला लगाने के बजाय अपनी थूक की पिचकारी से उसमें जमे धूल को हटकर सुकून का अनुभव करेंगे।

आपके देश का

एक मामूली नागरिक

-पंकज शर्मा  (विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन। कई वर्षों तक ‘युद्धरत आम आदमी’ पत्रिका के संपादन से जुड़े रहे। फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में अध्यापन।)

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