मीरा मेघमाला की तीन कविताएँ: तड़प, तकिया और कैसे मर जाएं झट से!

मीरा मेघमाला की तीन कविताएँ: तड़प, तकिया और कैसे मर जाएं झट से!

मीरा मेघमाला मैसूर यूनिवर्सिटी से इतिहास में एम.ए.। इनकी कन्नड़, कोंकणी और हिन्दी में कविता, कहानी और लेख कई पत्र-पत्रिकाओं और वेब पोर्टल में प्रकाशित। इन्होंने कन्नड़ साहित्य क्षेत्र में ‘कादम्बिनी रावी’ नाम से 2014 से लिखना शुरू किया। इनके ‘हलगे मत्तु मेदुबेरळु’, ‘काव्य कुसुम’, ‘कल्लेदेय मेले कूत हक्कि’ कविता संकलन प्रकाशित। फिलहाल, कर्नाटक में महिला और बाल विकास डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं।

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मीरा मेघमाला की तीन कविताएँ: तड़प, तकिया और कैसे मर जाएं झट से!

कैसे मर जाएं झट से!

ऐसे में गर मरने को कहा जाए
तो कैसे मर जाएं झट से!

अंतिम दर्शन के लिए
आए लोग हंसेंगे,
झाडू-पोचा नहीं लगाया है
बर्तन, कपड़े नहीं धोए हैं
साफ नहीं कर पाई घर का शौचालय
पेड़-पौधों को भी पानी नहीं दिया है
कुत्ता और बिल्ली भूखे बैठे हैं
कल के नाश्ते के लिए
अब तक नहीं सोचा है।
तो कैसे मर जाए झट से!

बेटे और पति को
घर में आते ही
घर की मालकिन को
ढूंढ़ने की आदत पहले भी नहीं थी।
घुस जाएंगे रसोई में
खाना अब तक बना नहीं।
भूखे आदमियों का गुस्सा
आप ने देखा नहीं!
तो कैसे मर जाए झट से!

बेटी की प्रसूति नहीं हुई है
पाल-पोस कर बड़ा नहीं किया है
नाती-पोतों को।
बेटे की परीक्षा अभी नहीं हुई है
पति की रूटीन चेकअप की तारीख
अभी दूर ही है।
तो कैसे मर जाएं झट से!

एक गृहिणी की आवश्यकता
अब तक खत्म नहीं हुई है
काम वाली का मिलना भी
आजकल मुश्किल-सा ही है।
यह भी मैं जानती तक नहीं
कि बूढ़े पति
दोबारा शादी करेंगे या नहीं।
और
ऐसे में गर मरने को कहा जाए
तो कैसे मर जाएं झट से!

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मीरा मेघमाला की तीन कविताएँ: तड़प, तकिया और कैसे मर जाएं झट से!

तड़प

शिकार होने वाली बेचारी को
इससे पहले कहाँ पता था कि
जिसे वो इन्सान समझती थी
वह एक जानवर है!

उस वक्त वो
सूखे पत्तों के ढेर में छिप कर
सूखा पत्ता बन बैठा था।
घास के पीछे बैठ कर
हरियाली-सा दिख रहा था।
धीरे से सरकते सरकते हवा में
एक अजीब-सी आवाज़ बन गया था।

और
अचानक बिजली बनकर
उसने एक ही छलांग लगाई
शिकार का आधा शरीर खाते ही
उसकी भूख भी मिट गई!

नोच-नोचकर, काट-फाड़कर
खाने वाले बेदर्द जानवर में
जान लेने की दया भी अगर होती
तो कितना अच्छा होता!

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मीरा मेघमाला की तीन कविताएँ: तड़प, तकिया और कैसे मर जाएं झट से!

तकिया

मैं बार-बार सिर्फ तकिये का
कवर बदल लेती हूँ
बाक़ी सारे आँसू
तकिया छुपा लेता है।

सारे बच्चे अपनी
माँओं के सीने में
चिपक कर सो गए
मैंने तकिये में
मुँह छुपा लिया।

जब तक जागे थे तब तक
एक तकिये के लिए
लड़ते-झगड़ते रहे वह दो बच्चे
अब सो गए हैं
तकिये के बिना!

यह तकिया भी
न जाने कितने रहस्य
छुपा लेता है अपने आप में
पहले वह लड़की
तकिये में प्रेम पत्र छुपाती थी
अब अलमारियों की चाबियाँ।

हल्के से चाँपने से भी
सिकुड़कर मुरझाने वाले
हम-तुम जैसा नहीं है यह तकिया
विरहन के हाथों मलने पर भी
सीना फूला कर
खिल उठता है यह बहरूपिया।

यूँ आँखें बंद करके
इतनी कोमलता पर
कभी यकीन न करना
एक वक्त ऐसा भी आएगा
इतना नरम-नाजुक तकिया भी
उतना कठोर बन सकेगा
कि दम घुटा कर जान ले लेगा!

-मीरा मेघमाला

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