गुलाम नबी आजाद की जगह मल्लिकार्जुन खड़गे होंगे राज्यसभा में विपक्ष के नेता

गुलाम नबी आजाद की जगह मल्लिकार्जुन खड़गे होंगे राज्यसभा में विपक्ष के नेता

कांग्रेस ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल खत्म होने के बाद अब पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्ष का नेता नामित किया है। इस बात की जानकारी संगठन के महासचिव वेणुगोपाल ने दी।

वेणुगोपाल ने कहा कि राज्‍यसभा के सभापति वैंकेया नायडू को कांग्रेस ने इस बारे में जानकारी दी है कि आजाद का कार्यकाल खत्म होने बाद अब खड़गे पार्टी की तरफ से नामित किए गए हैं। यानी राज्‍यसभा में खड़गे विपक्ष के नेता होंगे।

आजाद का कार्यकाल 15 फरवरी को खत्म हो रहा है। कहा जा रहा है कि राज्य सभा में विपक्ष के उप-नेता आनंद शर्मा भी चाहते थे कि उन्‍हें विपक्ष का नेता बनाया जाए। लेकिन हाल ही में सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी विवाद उनका नाम शामिल होने के चलते पार्टी नेतृत्व उन्हें ये जिम्मेदारी देने पर ज्यादा उत्साहित नहीं दिख रहा था।

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साथ ही मल्लिकार्जुन खड़गे को राहुल गांधी का भी बेहद करीबी माना जाता है। उन्हें 2019 में लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद पार्टी ने राज्यसभा में मौका दिया था। विपक्ष पद की रेस में चार नाम सामने आए थे जिसमें खड़गे के अलावा आनंद शर्मा, पी. चिदंबरम और दिग्विजय सिंह का नाम शामिल था। जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे की स्थिति सबसे मजबूत थी।

उल्लेखनीय है कि 15 फरवरी के बाद राज्यसभा में जम्मू और कश्मीर का कोई प्रतिनिधि नहीं होगा। फिलहाल यहां से चार राज्यसभा की सीटें हैं, पर केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से वहां चुनाव नहीं हुए हैं। ऐसे में वहां से राज्यसभा में फिलहाल कोई सदस्य नहीं होंगा।

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के दो सांसद नजीर अहमद लावे (10 फरवरी) और मीर मोहम्मद फैयाज (15 फरवरी) का कार्यकाल भी खत्म हो जाएगा। 15 फरवरी को गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल और 10 फरवरी को भारतीय जनता पार्टी के शमशेर सिंह मन्हास का कार्यकाल पूरा हो जाएगा।

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माना जा रहा है कि दोबारा गुलाम नबी आजाद को विपक्ष के नेता बन सकते हैं। लेकिन इसके लिए उन्हें दो महीने के बाद होने वाले केरल से जीत कर आना होगा। अप्रैल में केरल की तीन राज्यसभा सीटें खाली हो रही हैं जिनमें से एक कांग्रेस के पास है।

माना जा रहा है कि आजाद केरल से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, इस बाद की संभावना कम लग रही है कि क्योंकि केरल के लोग अपने प्रतिनिधि के रूप में किसी एक बाहरी व्यक्ति का चुनाव करेंगे इसकी उम्मीद कम है।

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