रोमा बंजारों की आबादी को काबू करने के लिए यूरोपीय देश चेक रिपब्लिक में गुपचुप सैकड़ों महिलाओं की नसबंदी कर दी गई। सभी पीड़ित परिवार सरकार से मुआवजा चाहता है और लंबे वक्त से कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। तकरीबन चार दशक बाद ये लड़ाई अब कामयाब होती दिख रही है।
चेक रिपब्लिक की संसद में इन महिलाओं को मुआवजा देने के एक विधेयक पर बहस हो रही है। जिसके तहत हर महिला को तीन लाख चेक कोरुना यानी लगभग 14,100 डॉलर देने की बात कही गई है।
कम्युनिस्ट शासन
रोमा बंजारों की ये नसबंदियां 1970 और 1980 के दशक में हुई थी। तब यह देश चेक रिपब्लिक चेकोस्लोवाकिया का हिस्सा था और देश में कम्युनिस्ट शासन था। हालांकि, कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि नसंबदी की घटनाएं वहीं नहीं रूकीं। उनका कहना है कि इस सदी में भी ऐसा हुआ है।
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2009 में चेक सरकार ने रोमा बंजारों की नसबंदियों पर ‘अफसोस’ जताया था पर मुआवजे की पेशकश नहीं की। 15 साल से एलेना गोरोवा मुआवजे के लिए चल रही मुहिम का हिस्सा हैं। जब एलेना 21 साल की थीं, तक उनकी नसबंदी कर दी गई थी। एलेना बताती हैं कि कुछ महिलाओं से कहा गया था कि नसबंदी कराने के लिए उन्हें पैसे मिलेंगे जबकि कुछ महिलाओं को धमकी भी दी गई कि अगर उनके और बच्चे हुए तो उनके मौजूदा बच्चे छीन लिए जाएंगे।

सबसे गरीब समुदाय
चेक सांसदों से यूरोप की मानवाधिकार संस्था ने कहा है कि बिल को पास कर दिया जाए क्योंकि यह इंसाफ करने का आखिरी मौका है। पहले ही कुछ पीड़ित महिलाओं की तो मौत भी हो चुकी है। एलेना की नसंबदी भी बहुत-सी महिलाओं की तरह ऑपरेशन से बच्चे पैदा करने के दौरान की गई थी। कई महिलाओं से नसंबदी के समय कहा गया कि यह सिर्फ कुछ समय के लिए है। उसके बाद फिर से वे बच्चे पैदा कर सकती हैं।
यूरोपीय मानवाधिकार परिषद की आयुक्त दुनिया मिजातोविच ने पिछले साल चेक संसद को एक पत्र लिखा था जिसमें में कहा गया था, “इस अवसर को गंवाना नहीं चाहिए। हालांकि, पीड़ितों को शारीरिक और मानसिक तौर पर जो नुकसान हुआ है, उसे पलटा नहीं जा सकता…..। मुआवजे की व्यवस्था कर इन महिलाओं को कुछ न्याय दिया जा सकता है जो उन्हें बहुत समय से नहीं मिला।”
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रोमा बंजारा यूरोप में रहने वाला सबसे गरीब समुदाय है। लगभग 2.4 लाख रोमा बंजारा समुदाय के लोग चेक रिपब्लिक में रहते हैं। चेक सरकार के मुताबिक, रोमा लोगों की देश की आबादी में हिस्सेदारी दो फीसद है। बहुत से रोमा समुदाय के लोग गरीबी में रहते हैं। उनकी तरफ से अपने साथ शिक्षा, रोजगार और निवास संबंधी भेदभाव के आरोप लगाए जाते रहे हैं।

महिलाओं की नसबंदी
कितनी महिलाओं को नसंबदी का शिकार बनाया इसका सटीक आंकड़ा तो मौजूद नहीं हैं, लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि सैकड़ों रोमा महिलाएं मुआवजे की हकदार हैं। साल 2007 में ऐसा आखिरी मामला प्रकाश में आया था। एलेना कहती हैं, “इसका हम सब पर बहुत ही बुरा असर पड़ा है।” 1990 में उनके दूसरे बेटे की पैदाइश के समय उनकी नसबंदी की गई थी।
उन्होंने बताया, “जब डॉक्टर ने मुझे बताया…तो मैं तो सदमे में आ गई। मैं रोने लगी। मैं चाहती थी कि मेरी एक छोटी-सी बेटी भी हो, मेरे पति की भी यही इच्छा थी।” एलेना अपने जैसी करीब 200 महिलाओं के संपर्क में हैं। वह बताती हैं कि कुछ महिलाओं की शादी नसबंदी के बाद टूट गई जबकि अन्य महिलाओं को जीवनभर के लिए बीमारियां मिल गईं।
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यूरोपीय मानवाधिकार परिषद की आयुक्त मिजातोविच कहती हैं, “एक सरकारी जांच में पता चला कि चेकोस्लोवाकिया में रोमा महिलाओं की नसबंदी की नीति थी।” यह देश 1993 में दो हिस्सों में बंट गया- चेक रिपब्लिक और स्लोवाकिया। मिजातोविच का कहना है कि चेक रिपब्लिक में अब मुआवजे के जिस बिल को तैयार किया गया है, उसे सभी पार्टियों का समर्थन प्राप्त है। इससे स्लोवाकिया में ऐसी कोशिशों को बल मिलेगा।
ऐसा नहीं है कि जबरन नसबंदी का इस तरह मामला सिर्फ चेक रिपब्लिक में ही हुआ। ऐसे मामले हंगरी, स्विटजरलैंड, स्वीडन और नॉर्वे में भी सामने आए थे। मिजातोविच बताती हैं कि ऐसी नीतियों का मकसद समाज के सबसे निचले तबके के लोगों को प्रताड़ित करना था।
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