महात्मा गाँधी के रास्तों पर चलकर ही आदर्श भारत और शराबबंदी का मार्ग प्रशस्त

महात्मा गाँधी के रास्तों पर चलकर ही आदर्श भारत और शराबबंदी का मार्ग प्रशस्त

विश्व में अनेक महापुरुष अवतरित हुए हैं जिनकी शिक्षा ने संसार के प्रत्येक जनमानस को प्रभावित किया है। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। भारतीय सामाजिक परिदृश्य में महात्मा गाँधी के विचारों ने आमजन के मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ी है। गाँधी भारतीय परिवेश में हमेशा प्रासंगिक रहे हैं। उनके विचारों से प्रेरणा लेकर हजारों जन-सुधार कार्यक्रम का श्रीगणेश हुआ। किसी भी देश के सतत विकास के लिए वहाँ के नागरिकों का बहु-आयामी विकास होना सबसे महत्वपूर्ण है।

समाज-सुधार पर गाँधीजी ने कई कार्यों को अपने जीवन में उतारने की शीक्षा दी है। आत्मशुद्धि और वैचारिक उत्कृष्ठता को महात्मा गाँधी ने सबसे ज्यादा वरियता दी। उनका मानना था कि भारतीय समाज में परिवर्तन लाने के लिए आत्मा और मन की शुद्धी सबसे आवश्यक है। इस कड़ी में समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुड़ी आदतों को छोड़ना सबसे महत्वपूर्ण था। महात्मा गाँधी ने अपनी पुस्तक ‘सत्य से अपने प्रयोग’ में नशा मुक्त आदर्श समाज की कल्पना की थी। उन्होंने किसी भी स्वतंत्र समाज में आजाद व्यक्ति की परिकल्पना में नशा निषेध पर सबसे ज्यादा बल दिया है। वे किसी भी प्रकार की नशावर पदार्थों के सेवन के प्रबल विरोधी थे।

गाँधीजी का मानना था कि अंग्रेजों का देश से जाना जितना जरूरी है उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण देश में पूर्ण शराबबंदी है। गाँधी जी कहते थे कि यदि मुझे 48 घंटे की भी हुकूमत दे दी जाए तो मैं एक साथ बिना मुआवजा दिए शराब की सारी दुकाने बंद करा दूंगा। इसकी मुख्य वजह शराब के सेवन से उत्पन्न होने वाली सामाजिक, आर्थिक और नैतिक परिस्थितियाँ हैं। उनका मानना था कि शराब सिर्फ मनुष्य का स्वास्थ्य ही नहीं उसकी आत्मा का भी धीरे-धीरे नाश कर देती है। वह पशु में परिवर्तित हो जाता है। उसके अन्दर नैतिक मूल्यों का भी ह्रास होने लगता है।

दुर्भाग्यवश स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष बाद भी आजतक कोई भी राजकिय या केन्द्रीय सरकार ने गाँधी की इस परिकल्पना को मूर्तरूप देने में असमर्थ रही है। उनकी इस स्वपन को स्वतंत्रता प्राप्ति को तत्पश्चात गूजरात की तत्कालीन सरकार और वर्तमान समय में बिहार की नीतीश सरकार के अलावा नागालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम, सिक्किम और लक्ष्यद्वीप में पूर्ण रूप से शराबबंदी को लागू किया है। इन राज्यों में पूर्ण शराबबंदी है। हालांकि, इन राज्यों में शराब की उपलब्धता एक अलग विषय है। इससे भी अधिक शराब के क्रय-विक्रय पर पाबंदी लगाना क्यों जरूरी है इसके गणित को समझना बहुत आवश्यक है।

शराब का समाज पर प्रभाव

भारतीय समाज में मदिरापान करने वालों को हमेशा से बुरा माना गया है। हालाँकि, उन्नीसवीं शताबदी के उत्तरार्द्ध तक भारत में शराब पीने वालों की संख्या कम थी। देशभर में करोड़ों ऐसे लोग थे जो शराब पीना तो दूर वह क्या होती है इसका भी उन्हें ज्ञान नहीं था लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ती के बाद हमारे समाज में बदलाव होने लगा। आर्थिक उदारीकरण के बढ़ते दायरे से हमारे रहन-सहन और समाज के स्वरूप में लगातार व्यापक परिवर्तन हुआ। खुले बाजार की नीति से आने वाले धन और पश्चात्य संस्कृति में व्याप्त आधुनिकतावाद की नकल करने की होड़ में मदिरापान ने धीरे-धीरे भारतीय समाज के निचली पायदान तक अपना पाँव पसारा है।

सुबह-सुबह जब हम अखबार खोलते हैं तो वह हीट और रन की दर्जनों खबरों से भरी मिलती हैं। कभी-कभी वह महिलाओं पर उनके पति या परिवार के किसी सदस्य द्वारा प्रताड़ित करने की बहुत सारी खबरों का संग्रह बना होता है। महिला उत्पीड़न, सड़क दुर्घटना और बलात्कार जैसी घृणित घटनाओं में हमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शराब की मुख्य भूमिका नजर आती है। आर्थिक रूप से समृद्ध अभिजात्य वर्ग शराब का सेवन आम-तौर पर अपनी धन-संपत्ति व समृद्धि का दिखावा करने के लिए करते हैं। वे महंगी ब्रांड वाली शराब को केवल अपनी भौतिकवादी लक्ष्यों खासकर भोग-विलास और मौज-मस्ती की पूर्ति के लिए करते हैं। उनकी इस मानसिकता के कारण आए दिन सड़क पर दूर्घटनाएँ होती रहती हैं। जिसकी किमत न केवल उनकी अपितु फुटपाथ पर सो रहे बेघर और निर्धन लोगों को अपने प्राण देकर चुकानी पड़ती है।

धनाढ्य वर्गों के इस बेतूके शौक और दिखावे का असर समाज के दूसरे वर्गों पर बहुत ज्यादा पड़ रहा है। मध्यम वर्ग की युवा पीढ़ी में तेजी से बदल रहे सामाजिक ताना-बाना और कम समय में कामयाब होने की महत्वकांक्षा ने उनके मन-मस्तिष्क पर अतिरिक्त दबाव बना दिया है। समाज से अलग-थलग हो जाने के कारण आज की युवा पीढ़ी की मनोदशा पर अहम हावी है। अतिरिक्त काम का बोझ, संचार की सुगमता के कारण समाज में उनकी सिमटती भूमिका ने उन्हें एक कमरे तक ही सीमित कर दिया है। नतीजतन, वह अवसाद और दबाव में जीवन व्यतीत करने को विवश होते जा रहे हैं। इस अवसाद और अकेलापन को दूर करने के लिए वह धीरे-धीरे शराब अथवा दूसरे मादक पदार्थों की ज़द में आ रहे हैं।

वहीं, दूसरी ओर निम्न मध्यम वर्ग और गरीब तबका शराब की बूरी आदत में पड़ कर अपनी गाढ़ी कमाई को परिवार की महत्वपूर्ण जरुरतों को पुरा नहीं करने की बजाय अपने नशे की लत को पुरा करने में व्यर्थ करते हैं। जिस कारण आर्थिक-तंगी की समस्या उत्पन्न होती है। परिवार की आधारभूत जरूरतों की पूर्ति नहीं होने की वजह से पारिवारिक कलह का जन्म होता है। नतीजतन, देशभर में घरेलू हिंसा और कभी-कभी परिवारिक कलह के कारण हत्या जैसी संगीन अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। शराब जन्य रोगों और अपराध की रोकथाम के केन्द्र और राज्य सरकारों को शराब से आने वाले राजस्व से ज्यादा व्यय करना पर रहा है।

शराब और आँकड़े

विम्हांस नामक एक संस्था के आँकड़ों को माने तो शराब से आने वाली राजस्व की तुलना में सरकार को 24% अधिक धन शराब और उससे होने वाली यकृत रोगों की रोकथाम करने में सरकारों को खर्च करना पड़ता है। इसके अलावा, हमारे समाज में शराब के कारण बहुत से अपराध होते हैं। इनमें सबसे ज्यादा हिंसा हमारे देश की आधी आबादी को भुगतना पड़ता है। महिलाओं पर अत्याचार और घरेलू हिंसा का मुख्य कारण शराब ही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार की 85% घटनाओं का कारण शराब ही है।

बिहार जैसे पिछड़े और गरीब राज्य में शराबबंदी के बाद से कई सकारात्मक बदलाव देखे गए हैं। शराबबंदी के बाद से महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और घरेलू हिंसा में अप्रत्याशित 45% की कमी आई है। वहाँ के लोगों का खुद पर व्यय में बढ़ोत्तरी हुई है। राज्य सरकार को जिस 4000 करोड़ राजस्व की दूहाई देकर विपक्ष घेर रही थी शराबबंदी के बाद राज्य सरकार ने शराब जन्य रोगों पर होने वाले व्यय को बचाकर तथा राज्य की जनता द्वारा दूसरे वस्तुओं पर खर्च करने से 25% से ज्यादा राजस्व लाभ हुआ।

पूर्ण शराबबंदी से राजस्व में त्वरित नुकसान तो होता है लेकिन इससे कालान्तर ज्यादा फायदा होता है। सचमुच शराबबंदी किसी भी राज्य के लिए एक साहसिक फैसला है यदि कोई राज्य सरकार शराबबंदी का कड़ा फैसला लेती है तो इसके व्यापार से जुड़े विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक और कारोबारी वर्ग सरकार के इस फैसला के खिलाफ अभियान चलाने लगते हैं और उक्त सरकार के फैसले को ही गलत ठहराने लगते हैं। जबकि समाज के सभी वर्ग चाहे वह सामाजिक, राजनैतिक या व्यापारिक वर्ग ही क्यों न हो को सरकार के इस साहसिक निर्णय का हर प्रकार से समर्थन करना चाहिए ताकि हमारा देश महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलकर दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सके।

-नैयर आजम (लेखक पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र में रिसर्च छात्र हैं। विचार उनके निजी हैं।)


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