जम्मू के मुसलमानों का नरसंहार कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हुई हिंसा से कहीं अधिक था

जम्मू के मुसलमानों का नरसंहार कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हुई हिंसा से कहीं अधिक था

भारत के वरिष्ठ पत्रकार करण थापर का एक लेख नहीं छापे जाने को लेकर विवाद शुरू हो गया है। दरअसल, द एशियन एज अखबार पर आरोप है कि करण थापर के लेख को उन्होंने सिर्फ इसलिए नहीं छापा क्योंकि उन्होंने अपने आलेख में विभाजन के दौरान जम्मू के मुस्लिमों के खिलाफ हुए व्यापक हिंसा का उल्लेख किया था।

द वायर वेबसाइट के मुताबिक करण थापर ने बताया कि यह लेख उन्होंने 20 अगस्त 2021 को उनके कॉलम ‘एज आई सी इट ‘ (As I See It) में प्रकाशित किया जाना था, पर अखबार के प्रबंध संपादक कौशिक मित्तर ने बताया कि अखबार के मालिकों ने लेख को ‘रोकने’ का निर्देश दिया है।

थापर ने बताया कि मित्तर ने उनसे स्पष्ट रूप से कहा कि अखबार मालिकों को लेख के आखिरी तीन पैराग्राफ को लेकर आपत्ति है, जिसमें विभाजन के दौरान जम्मू के मुसलमानों के खिलाफ व्यापक हिंसा का वर्णन किया गया है। हालांकि, यह तथ्य इतिहास का हिस्सा है, जिसके चलते मुस्लिमों को जम्मू क्षेत्र को छोड़कर पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा था।

दरअसल, पत्रकार करण थापर ने अपना ये लेख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से पाकिस्तान के स्वतंत्रतता दिवस यानी 14 अगस्त के मौके पर‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाने के संदर्भ में लिखा था। तब पीएम मोदी ने कहा था कि विभाजन के कारण हुई हिंसा और नासमझी में की गई नफरत से लाखों लोग विस्थापित हो गए और कई ने जान गंवा दी।

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दूसरी तरफ मोदी के इस एलान को लेकर विपक्षी नेताओं ने साफ कहा था कि मोदी ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाने के जरिए ‘ध्रुवीकरण’ करने की कोशिश कर रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि मोदी विभाजन के भयावह अनुभवों को भी ‘वोट बैंक’ के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं।

जम्मू के मुसलमानों का नरसंहार कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हुई हिंसा से कहीं अधिक था

वहीं, पाकिस्तान की ओर से कहा गया था कि भारत के प्रधानमंत्री ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’के जरिए‘सियासी स्टंट’ कर रहे हैं। अपने लेख में करण थापर ने भी कुछ इसी तरह की बातें लिखी थीं। अपने लेख में उन्होंने कहा था कि मोदी इसके जरिए देश में ‘मुस्लिम-विरोधी’ भावनाओं को भड़काना चाह रहे हैं, जबकि विभाजन के चलते हिंदू, सिख और मुसलमान सभी व्यापक स्तर पर प्रभावित हुए थे।

थापर ने उसके लिए ब्रिटेन में आर्मिस्टिस दिवस, इजराइल में होलोकॉस्ट दिवस, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड में एंज़ैक दिवस और अमेरिका में थैंक्सगिविंग दिवस जैसे उदाहरणों का हवाला दिया था। उन्होंने लिखा था कि इन सब दिवसों का उद्देश्य पुरानी गलतियों को सुधारकर सभी लोगों को एक साथ करना है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का ये कदम भारत के लोगों को धार्मिक आधार पर और बांटने की कोशिश है।

थापर ने, यह बताने के लिए कि सभी समुदायों ने विभाजन का भयावह दंश झेला है; के लिए अपने पाठकों को 1947 के सांप्रदायिक दंगे के दौरान जम्मू के मुसलमानों के खिलाफ हुए अत्याचार की याद दिलाई थी, जहां बहुत बड़ी संख्या में मुस्लिम नागरिक मारे गए थे।

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‘हॉरर्स ऑफ 1947 पार्टिशन: अ सलेक्टिव रिमेम्ब्रेंस?’ (Horrors of 1947 Partition: A selective remembrance?) शीर्षक वाले अपने लेख में करण थापर ने कहा कि एक समय जम्मू मुस्लिम बहुल शहर था, लेकिन दंगे के बाद यह हिंदू बहुल इलाका बन गया। इतिहासकार बताते हैं कि इस दौरान यहां सैकड़ों-हजारों मारे गए या पलायन को मजबूर हुए थे।

इन तथ्यों को बल देने के लिए उन्होंने कई स्रोतों का हवाला दिया था। जिसमें से ‘द स्पेक्टेटर’ की रिपोर्ट भी शामिल है। तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बयान किया था। इसके अलावा प्रख्यात जानकारों अर्जुन अप्पादुरई, एरियन मैक और भारत के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह के आलेखों का जिक्र किया था।

करण थापर ने एतिहासिक स्रोतों को आधार पर अनुमान लगाया कि दंगे के दौरान दो से पांच लाख मुस्लिमों की मौत हुई थी और कई लोग विस्थापित हुए थे। थापर ने आगे लिखा था कि टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख में स्तंभकार स्वामीनाथन अय्यर ने साल 2018 में दावा किया था कि पैमाने के मामले में जम्मू के मुसलमानों का नरसंहार ‘पांच दशक बाद पंडितों के खिलाफ हुई हिंसा से कहीं अधिक था।’

वरिष्ठ पत्रकार ने खबर को लिखे अपने कॉलम को एक प्रश्न के साथ समाप्त किया: ‘अब जब मोदी विभाजन की भयावहता को याद करना चाहते हैं, तो क्या यह उनमें से एक है?’थापर ने बताया कि ऑप-एड एडिटर कौशिक मित्तर ने कहा है कि अखबार के मालिकों ने कहा है कि यह लेख हिंदू-मुस्लिम समस्याओं को उठाता है और वे इन मुद्दों को उठाना पसंद नहीं करते हैं। यह उन्हें परेशानी में डालता है।

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थापर ने कहा, “दूसरे शब्दों में कहें तो वे सरकार द्वारा उन पर डाले जाने वाले दबाव से डरे हुए हैं।” उन्होंने आगे बताया कि मित्तर ने उनसे कहा है कि जम्मू में मुसलमानों के नरसंहार से संबंधित लेख के अंतिम तीन पैराग्राफ से मालिकों को आपत्ति है। उन्होंने आगे कहा, “1947 में जम्मू के मुसलमानों के खिलाफ तीन-चार महीने तक हिंसा होती रही थी। इसका ऐतिहासिक लेखा-जोखा उपलब्ध है। यह ऐसी चीज है जिसमें कोई विवाद नहीं है। इसलिए मेरा मानना है कि मोदी और शाह के चलते मालिक भारी दबाव में हैं।”

पुराने घटनाक्रमों को याद दिलाते हुए करण थापर ने कहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, भाजपा के पूर्व महासचिव राम माधव और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा जैसे कई भाजपा नेताओं ने उनसे कहा था कि उन्हें पार्टी आलाकमान ने उनके शो में न आने के लिए निर्देश दिया है।

उल्लेखनीय है कि कई दशकों तक सीएनएन जैसे चैनलों के लिए काम करने वाले वरिष्ठ पत्रकार करण थापर अब द वायर पर ‘द इंटरव्यू’ नाम से एक नियमित प्रोग्राम करते हैं। वे द एशियन एज की गुजारिश पर पिछले दस महीने से अखबार के लिए अपना कॉलम ‘एज आई सी इट’ लिखते रहे हैं।


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