रॉयटर्स ने बताया कैसे हुई थी अफगानिस्तान में दानिश सिद्दीकी की मौत

रॉयटर्स ने बताया कैसे हुई थी अफगानिस्तान में दानिश सिद्दीकी की मौत

भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की अफगानिस्तान में बीते दिनों संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। आज भी उनकी मौत को लेकर संदेह बना हुआ है। हालांकि, रॉयटर्स ने एक खास पड़ताल के जरिए कुछ गुत्थियां सुलझाने की कोशिश की हैं।

जब जून के महीने में तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल की ओर बढ़ना शुरू किया था तब38 वर्षीय फोटो-पत्रकार दानिश सिद्दीकी ने वहां जाने का फैसला किया था। अपने बॉस से उन्होंने कहा था, “अगर हम नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा?”

वे 11 जुलाई को कंधार स्थित अफगान स्पेशल फोर्सेस के अड्डे पर पहुंचे थे। जहां से उन्हें एक यूनिट के साथ जोड़ दिया गया था। सेना की ओर से यह विशेष कमांडो दल तालिबान का सफाया करने के मकसद से भेजा गया था।

इसके दो दिन बात यानी 13 अगस्त को दानिश ने विद्रोहियों से घिरे एक पुलिसकर्मी को बचाने के सफल मिशन को कवर किया। अभियान पूरा होने के बाद जब वह लौट रहे थे तो उनके वाहन रॉकेट से ग्रेनेड दागे गए। सिद्दीकी ने उस हमले का वीडियो भी बनाया। वे तस्वीरें और वीडियो रॉयटर्स एजेंसी को भेजे गए। बाद में उन्होंने ट्विटर पर भी लड़ाई के बारे में जानकारी दी।

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वॉट्सऐप पर दानिश के एक दोस्त ने लिखा, “होली मदर ऑफ गॉड। यह तो पागलपन है।” कई युद्धों, हिंसक भीड़ और शरणार्थी संकटों को कवर कर चुके सिद्दीकी ने अपने दोस्त को भरोसा दिलाया कि उन्होंने खतरे का पूरा जायजा ले लिया है।

जामिया के छात्र रहे और पुलित्जर सम्मानित पत्रकार दानिश सिद्दीकी की काबुल में मौत

जैसा कि मालूम है कि किसी भी खतरे वाली जगह पर पत्रकारों को भेजने या न भेजने की जिम्मेदारी रॉयटर्स के संपादक और मैनेजर का होता है। वे कभी भी पत्रकार को वापस बुला सकते हैं। अगर पत्रकारों को लगता है कि खतरा अधिक है और उनकी जान को खतरा हो सकता है वे खुद मिशन से लौट सकते हैं।

हालांकि, खतरों के बावजूद दानिश सिद्दीकी ने युद्ध वाली जगह पर बने रहने का फैसला किया। उन्होंने लिखा, “चिंता मत कीजिए। मुझे पता है कब बंद करना है।”

तीन दिन बाद यानी 16 जुलाई को सिद्दीकी और दो अफगान कमांडो तालिबान के एक हमले में मारे गए। तब स्पिन बोल्दाक कस्बे को तालिबान से वापस छीनने की लड़ाई चल रही थी।

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हालांकि, दानिश समेत तीनों की मौत कैसे हुई, इस बारे में पूरी जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है। शुरुआती खबरें थीं कि उनकी मौत गोलीबारी के बीच फंस जाने के दौरान हुई। लेकिन उनकी अपने दफ्तर से बातचीत हुई और अफगान स्पेशल फोर्सेस के कमांडरों के बयान तस्वीर को स्पष्ट करते हैं।

ताजा जानकारी के मुताबिक, एक ग्रेनेड हमले में दानिश सिद्दीकी घायल हो गए थे। उन्हें इलाज के लिए एक स्थानीय मस्जिद में ले जाया गया। कमांडरों के मुताबिक, उनके बाकी साथियों ने सोचा कि वे लोग जा चुके हैं और वे भी लौट गए।

तब स्पेशल ऑपरेशन कॉर्प्स के कमांडर थे मेजर जनरल हैबतुल्लाह अलीजई। अलीजई ने बताया कि जब अफगान सैनिकों ने तेज लड़ाई के दौरान पीछे हटने का फैसला किया तो उन्होंने सोचा कि सिद्दीकी और दो सैनिक पहले ही लौट चुके हैं।

अलीजई के बयानों की तस्दीक चार अन्य सैनिकों ने भी की, जो उस हमले के वक्त मौजूद थे। हालांकि, बाद में पता चला कि वे वहीं रह गए थे। उसके बाद क्या हुआ, इसकी पूरी जानकारी अभी भी नहीं मिल पाई है।

रॉयटर्स ने बताया कैसे हुई थी अफगानिस्तान में दानिश सिद्दीकी की मौत

अफगान सुरक्षा अधिकारियों और भारत सरकार के अधिकारियों ने खुफिया जानकारी, उपलब्ध तस्वीरों और सिद्दीकी के शरीर की जांच के आधार पर कहा है कि उनके शव को क्षत-विक्षत किया गया। हालांकि, तालिबान इस बात से इनकार करता रहा है।

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जानकारी पाने के लिए रॉयटर्स ने ब्रिटेन के एक फॉरेंसिक विशेषज्ञ से भी मश्विरा किया। फॉरेंसिक इक्विटी नामक संस्था के फिलिप बॉयस ने हमले के फौरन बाद सोशल मीडिया पर पोस्ट की गईं तस्वीरों को सिद्दीकी के शव और एक्सरे से तुलना के बाद कहा, “यह तो स्पष्ट है कि मरने के बाद भी उनके शरीर पर गोलियां दागी गईं।”

दानिश की मौत के बाद एक खबर ये भी आई थी कि उनके शरीर को गाड़ी से कुचला गया था। हालांकि, फिलिप बॉयस का कहना कि गोलियों के निशान तो हैं लेकिन शरीर पर दूसरी किसी चोट का मौत के बाद होने का पता नहीं चलता।

जबीहुल्लाह मुजाहिद नाम के एक तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि दानिश सिद्दीकी को जो भी घाव लगे हैं वे तालिबान को उनका शव मिलने के पहले ही लगे हैं। दानिश को ऐसे खतरनाक अभियान पर भेजने को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं।

दिल्ली में दानिश के साथ काम कर चुके पत्रकार कृष्णा एन. दास का कहना है, “उन्हें सेना के साथ जाने की इजाजत ही क्यों दी गई? उन्हें वापस क्यों नहीं बुला लिया गया?”

वहीं, दूसरे पत्रकारों का मानना है कि विशेष रूप से प्रशिक्षित अफगान फौजों के साथ रहते हुए युद्ध को कवर करने तरीका एकदम सही था। युद्धों की अपनी तस्वीरों के लिए मशहूर रॉयटर्स के गोरान टोमासेविच कहते हैं, “अगर आपको ऐसे किसी मिशन का हिस्सा बनने का मौका मिलता है, तो आप हां करते हैं।”


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