गुलजार ने कहा- अब अभिव्यक्ति आजाद नहीं, कला पर हावी हो गया है भय

गुलजार ने कहा- अब अभिव्यक्ति आजाद नहीं, कला पर हावी हो गया है भय

नई दिल्ली: जाने-माने गीतकार गुलजार ने कहा है कि देश में अब पहले की तरह हालात नहीं रहें। उन्होंने एक प्रोग्राम के दौरान कहा कि अब कल पर डर का माहौल हावी हो गया। इतना ही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि अब हर चीज की इडिट-प्रूफ बनानी पड़ती है। गुलजार का कहना है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदियां बढ़ गई हैं।

दरअसल, गुलजार ने दिप्रिंट वेबसाइट के एक वर्चुअल प्रोग्राम ‘ऑफ द कफ’ के दौरान कहा कि आज बड़े कलाकारों में डर का माहौल हावी हो गया है। उन्होंने प्रोग्राम में बातचीत के दौरान कहा, “थोड़ा-थोड़ा जमाने का फर्क है। हम पहले भी कुछ बोलने से पहले थोड़ा संयम बरतते थे, लेकिन हमें डर नहीं लगता था। लेकिन इस दौर में डर कुछ ज्यादा है। कोई बात आपने जिस संदर्भ में कही उससे अलग ढंग से समझे जाने का जोखिम रहता है, जो काफी चिंताजनक है। इसलिए आजकल सब कुछ इडिट-प्रूफ करने की जरूरत पड़ती है।”

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किताब-अ पोएम अ डे

प्रोग्राम के दौरान गुलजार ने अपनी नई किताब ‘अ पोएम अ डे’ के बारे में भी बात की। उनकी यह किताब भारत, श्रीलंका, नेपाल बांग्लादेश और पाकिस्तान की 34 भाषाओं में 279 कवियों की 365 कविताओं-नज्मों-ग़ज़लों का एक संकलन है। इन सभी का गुलजार ने अंग्रेजी और हिंदुस्तानी में अनुवाद किया है। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने इतनी विविध भाषाओं की कविताओं और नज्मों का अनुवाद करना क्यों चुना तो उन्होंने कहा, “एक जबान कभी हिंदुस्तान की शायरी का, या साहित्य और संस्कृति का चेहरा बयान नहीं कर सकती।”

गुलजार ने ये भी कहा, “आज की नई पीढ़ी स्कूली पाठ्यक्रम में कविताओं से कोई खास जुड़ाव रखने या उन्हें पहचानने में असमर्थ है। और वह कविता को अतीत के साथ जोड़ती है।” उन्होंने आगे कहा, “बच्चे विलियम शेक्सपियर या अल्फ्रेड टेनिसन, रॉबर्ट वार्शो या रवींद्रनाथ टैगोर के कामों से जुड़ने में विफल रहते हैं, जब वे उन्हें पाठ्यक्रम की किताबों में पढ़ते हैं।” इसके बाद गुलजार ने कहा, “हम छात्रों को समकालीन कवियों जैसे- फिराक गोरखपुरी, अहमद फराज या फैज अहमद फैज को नहीं पढ़ा रहे। इसलिए मैं इस तरह के समकालीन कार्यों को सामने लाना चाहता था।”

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कविता और नज्म

अपनी नई किताब से गुलजार ने कुछ कविताएं और नज्में भी पढ़कर प्रोग्राम के दौरान सुनाई। जिसमें एक है ‘लैमिनेशन’। यह रचना त्रिपुरा की कवयित्री शेफाली देव वर्मा का है। यह कविका त्रिपुरी लोगों की मूल भाषा कोकबोरोक में लिखी गई है, जो कुछ इस प्रकार है-

वो कार्ड पिछड़े कबीले के सर्टिफिकेट का
मुहर लगाके दस्तखत करके मिला था
एक अफसर से सब डिवीजन के
उस बरस जब पैदा हुई थी।

कहीं वो कागज खराब न हो
रिजा और पिछरा की तह में रख के मां ने
खतूरत में महफूज कर लिया था।

सदी के बाद आज, वो दिल पसंद पोशाक
रिजा और पिछरा तो फट चुके
तागा तागा होकर, खतूरत को दीमक ने खा लिया
मगर वो पिछड़े कबीले का कार्ड बचा हुआ है
उसी तरह ताजा और चमकीला
लैमिनेट करके, फ्रेम करके रखा हुआ है।

पूर्वोत्तर की गतिशीलता

गुलजार ने पूर्वोत्तर के इतिहास में गतिशीलता को लेकर कहा कि देश को स्वीकारना होगा कि आजादी के बाद से इस क्षेत्र के प्रति उसका नजरिया अनुचित रहा है। गीतकार गुलजार ने पूर्वोत्तर को लेकर आगे कहा, “मुझे लगता है कि हमने पूर्वोत्तर की ओर ध्यान देने में देरी की है। आजादी के बाद भी तमाम लाभ वहां तक नहीं पहुंचे। हम इस तथ्य से किनारा नहीं कर सकते कि हम उनके प्रति अन्याय करते रहे हैं। नतीजन एक बेचैनी स्पष्ट है। जाहिर है, वहां का जीवन जटिल है, और इसलिए उनकी शायरी भी।”

गुलजार ने इसके बाद एक नज्म ‘मणिपुर मेरा वतन’ भी पढ़ी। दरअसल, कवि लनचेंबा मीतेन ने अपनी इस कविता में मणिपुर के विद्रोह का जिक्र किया है। कविता कुछ इस तरह है जिसे गुलजार में अनुवाद किया है-

इस जमीन की हर गली हर गेट पर
मौत है टहलती कई नकाबों में,
हाथ में लिए हुए भरी हुई बंदूक
पहले जब दिखाई देते थे तो कुत्ते भौंका करते थे
गर्दनों के बाल अकड़ जाते थे उनके
आज हमें लंबी, गहरी चीख में पुकारा करते हैं.
ये है मणिपुर, मेरा मणिपुर,
मेरी जन्मभूमि मणिपुर।

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कश्मीर से पोस्टकार्ड

आगा शाहिद अली की कविता ‘कश्मीर से पोस्टकार्ड’ का भी गुलजार ने पाठ किया। आगा ने ये अपनी ये कविता अमेरिका में रहने के दौरान लिखी थी, जो इस प्रकार है-

सुकड़कर मेल बॉक्स में आ गया कश्मीर मेरा
मेरा घर साफ-सुथरा 4 बाई 6 का है अब
मुझे सब साफ-सुथरा अच्छा लगता था हमेशा
हथेली पर हिमालय है अब मेरा आधा इंच का
यही घर है, अब उतना ही करीब घर के रहूंगा
मैं जब भी लौटकर आया न इतने शोख होंगे रंग
न इतना साफ होगा पानी झेलम का
न इतना गहरा नीला
मेरा महबूब और बेपर्दा इतना
मेरी याददाश्त भी कोई धुंधली होगी कि जैसे
एक बड़ा ब्लैक-एंड व्हाइट निगेटिव
अभी तक अनडेवल्प्ड है।

सरहदपार की नज्में

गुलजार ने बताया कि भारतीय भाषाओं में उन्होंने कविताएं चुनीं पर साथ-ही-साथ राजनीतिक रूप से कायम सीमाएं उन्हें पड़ोसी मुल्कों के साहित्य को खंगालने से रोक नहीं पाईं। उन्होंने कहा, “हम पाकिस्तान के साथ पंजाबी, उर्दू, सिंधी, श्रीलंका के साथ तमिल और बांग्लादेश के साथ बांग्ला भाषा को साझा करते हैं। राजनीतिक सीमाएं भाषाओं पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकतीं।” उन्होंने उस्ताद दमन की पंजाबी में लिखी एक और नज्म पढ़ी जिसका अंश कुछ तरह है-

दो अल्लाह है अपने मुल्क में
ला इलाह और मार्शल ला
एक फलक पर रहता है
दूजा जमीन पर डटा हुआ है
इक का नाम सिर्फ अल्लाह
दूजे का है जनरल जिया
हिप-हिप हुर्रे जनरल जिया।

यह भी गीतकार गुलजार ने बताया कि कैसे कविता लेखन ने उनके जीवन को आकार दिया। गुलजार ने कहा कि उनके लिए यह कला कुछ भी देखे-सुने को छोटे-छोटे वाक्यांशों में कलमबद्ध करके खुद को खोजने में मददगार बनी। लेकिन साथ ही यह भी साफ कर दिया कि यह किसी के लिए भी कविता लिखने का पाठ या सूत्र नहीं हो सकता है।

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बच्चों के लिए साहित्य लेखन के बारे में भी गुलजार ने बात की। उन्होंने यह भी बताया कि उनकी बेटी कैसे उनकी इस मामले में प्रेरणा रही। उन्होंने कहा, “जब मेरी बेटी बड़ी हो रही थी, तो मैंने सीखा था कि कैसे दो साल के बच्चे से, चार साल के बच्चे से, आठ साल के बच्चे से बात की जाए…और इसी तरह से मैं समझ गया कि बच्चों से बात करने का हमारा तरीका बदलता रहता है। हम बच्चे से सीख रहे हैं और फिर उसी भाषा का इस्तेमाल लिखने में कर रहे हैं।”

कार्यक्रम के दौरान गुलजार ने बच्चों के लिए भी अभी और कुछ लिखने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने खासकर वर्चुअल कक्षाओं को लेकर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने ने कहा, “मानवीय पहलू शिक्षा से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, और मुझे डर है कि बच्चे वर्चुअल कक्षाओं के कारण इसे खो रहे हैं। इसलिए, मैं इस वर्ष बच्चों के लिए लिखकर उस अंतर को भरने की कोशिश कर रहा हूं।”

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