स्मृति सभा: सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों वाले अभिनेता थे सौमित्र चटर्जी

स्मृति सभा: सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों वाले अभिनेता थे सौमित्र चटर्जी

पटना: रंगकर्मियों-कलाकारों के साझा मंच ‘हिंसा के विरुद्ध संस्कृतिकर्मी’ की ओर से बांग्ला रंगमंच व फिल्मों के महानतम अभिनेता सौमित्र चटर्जी की याद में कालिदास रंगालय में स्मृति सभा आयोजित किया गया। स्मृति सभा में शहर के रंगकर्मी, फिल्मकार, कलाकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोग इकट्ठा हुए।

चर्चित फिल्म समीक्षक जयमंगल देव ने सौमित्र चटर्जी के जीवन चरित की चर्चा करते हुए बताया, “एक विलक्षण संयोग है कि आज ही यानी 28 दिसम्बर को सिनेमा का 125 साल पूरा हुआ है। आज एक संयोग है। सौमित्र चटर्जी फिल्मों व रंगमंच के अलावा दर्जनभर से अधिक लेखों व काव्य संग्रह प्रकाशित किए हैं। उनको सिर्फ अभिनेता कहना नाइंसाफी होगी। अपने समकालीनों के बारे में भी उन्होंने लिखा।”

जयमंगल देव ने आगे कहा, “विश्व सिनेमा के चर्चित लोगों के साथ भी उन्होंने काम किया। हर निर्देशक की कुछ पसंदीदा कलाकार हो जाते हैं। जैसे- सत्यजीत राय के वो पसंदीदा अभिनेता थे। जाइए बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन मनमोहन देसाई के तथा गोविंदा, डेविड धवन के। ‘अपुर संसार’ में उन्होंने काम किया। मृणाल सेन से कटकर ऋतुपर्णो घोष तक के साथ सौमित्र चटर्जी ने काम किया बल्कि कहा तो यहां जाता है कि सत्यजीत रे ने कई फिल्में उन्हें ही ध्यान में रखकर लिखी। 2012 में उन्हें दादा साहब फाल्के सम्मान प्रदान किया गया। सौमित्र चटर्जी के अभिनय का लोहा पूरी दुनिया ने माना। बंगला भाषा के अलाव किसी और भाषा में उन्होंने काम नहीं किया।”

स्मृति सभा को संबोधित करते हुए सिने सोसायटी के गौतम दास गुप्ता ने कहा, “सौमित्र चटर्जी ने बांग्ला के बाहर भी फिल्मों में काम किया। जैसे- बंगाली नाइट्स जैसे फिल्मों में काम किया।” वहीं, वरिष्ठ रंगकर्मी कुणाल ने कई फिल्मों का उदाहरण देते हुए कहा, “मैं सौमित्र चटर्जी का फैन हूँ। सौमित्र चटर्जी को मैं 1975 से समझ रहा हूँ। सौमित्र चटर्जी को बंगाली भद्रलोक थे। इसका मतलब भरत मुनि ने नागरिक कहा है। अपनी राजनीतिक मान्यताओं से कभी भी समझौता नहीं किया। हर बड़े निर्देशक का अपना पसंदीदा अभिनेता होता है।”

उन्होंने आगे कहा, “बांग्ला सिनेमा की बड़ी बात है कि वो लेखक केंद्रित होता है। जैसे सत्यजीत राय का समूचा सिनेमा साहित्य केंद्रित होता है। हमलोग अभिनय कहां देख पाते हैं? हमलोग तो हिंदी फिल्मों के महानायकों के सर्फ अदाएं देखने के आदी हैं। बंगाल के आदमी को बाहर भी जाएग तो वो बंगाली ही रहता है। सौमित्र चटर्जी काव्य आवृत्ति करने के लिए भी जाने जाते हैं। बंगाली लोग अपने साहित्यकारों का बहुत खयाल रखते हैं, उनकी निर्मम आलोचना तक करते हैं। बंगाल की पचहत्तर प्रतिशत फिल्में साहित्यिक होती हैं।”

अपने सम्बोधन में फिल्म अभिनेता राकेश राज ने कहा, “सौमित्र चटर्जी एक बहुआयामी अभिनेता थे। आखिर अभिनय अच्छा क्यों लगता है। कम्युनिकेट करने का जो टूल था उसमें अभिनय आदिम चीज है। उस कारण अभिनय हमें पकड़ता है। अभिनेता एक प्रकट परिस्थिति में समझने की कोशिश करता है। अल्ला-ऊदल, शीट पसंद देखने का मैं बचपन से आदिम रूप रहा है। सबसे पुराने आर्ट में है अभिनय। सौमित्र चटर्जी ने अभिनय को सचेत रूप से सीखा। खुद उनके दादा नाटक करते थे। उनके पिता भी नौकरी करते हुए भी थियेटर किया करते थे। शिशिर कुमार भादुडी से उनकी मुलाकात उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था। उन्हीं से उन्हींने अभिनय की बारीकियों को सीखा।”

चर्चित फिल्म समीक्षक आर.एन. दाश उनकी फिल्मों का उदाहरण दिया और बताया, “सौमित्र चटर्जी की कई खूबियां थी उनमें घमंड कतई नहीं था। जिसमें था कि किसी भी प्रकार में झुंड को फिट बिठा लेते थे। चाहे हो अपुर हो, फेलूदा हो या अन्य भूमिकाएं। उन्होंने ‘क्षुदित पाषाण’ में काम किया जिसे नेशनल अवॉर्ड मिला। वे कैरेक्टर के साथ खुद को मिलाने के लिए काफी प्रयास किया करते थे। एक तरह से रिसर्च किया करते थे। उन्हें फ्रांस का सबसे बड़ा फिल्म सम्मान दिया गया। वे उत्तम कुमार न थे लेकिन सिनेमा समझने वाले लोग उन्हें ही पसन्द किया करते थे।”

माकपा केंद्रीय समिति के सदस्य अरुण मिश्रा ने स्मृति सभा में सौमित्र चटर्जी के राजनीतिक शख्सीयत से परिचय कराते हुए कहा, “सौमित्र चटर्जी बंगाल के राजनीतिक माहौल में हस्तक्षेप किया करते थे। वाम लोकतांत्रिक उम्मीदवार के रूप में चुनाव तक लड़ा। आज देखिए हमारे देश के फिल्मों के महानायक जबान तक हिलाते तक नहीं ये दुर्भाग्य है कि इतने बड़े अभिनेता के कामों से हम कितना कम परिचित है। खासकर रीजनल सिनेमा से जैसे बंगाल, केरल के सिनेमा से।”

उन्होंने बताया, “जब मैं छात्र नेता था और बंगाल जाने का मौका मिला था तो इनलोगों से जुड़ कर काम करने का मौका मिला था। मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं नाटक देझ रहा हूँ और मेरी बगल में बैठकर नाटक देकह रहे थे। ठीक ऐसे ही उत्प्ल दत्त थे। बंगाल के नवजागरण में सिनेमा पर इनलोगों का बड़ा योगदान था। बंगाल के लोगों में उत्तम कुमार और सौमित्र चटर्जी के बीच बंटा हुआ था। ये बहुत सुखद था। हम अपने साहित्य और सिनेमा पर बात नहीं करते। हम प्रेमचंद सरीखे लोगों का कितन अध्ययन करते हैं? ये भी हमारा काम है। संस्कृतिकर्म का जो परिवर्तनकारी भूमिका है उसे समझने की जरूरत है।”

वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी अनिल अंशुमन ने कहा, “लॉकडाउन ने हमें नंगे यथार्थ को सामने ला दिया है। सौमित्र चटर्जी आए हमें ये सीखना है कि कला जगत में पक्षधरता का सवाल। कहा जाता है कि हम तो भाई कलाकार है पार्टी-पॉलिटिक्स से मतकब नहीं रखते। ऐसा नहीं होता कि जंगल में आग लगी हुई हो तो पेड़ों के हरापन पर बात करें। सौमित्र चटर्जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था देश के हालात को लेकर। गलती से यदि आप वामपंथ की बात करते हैं तो लोग प्रचारात्मक होने का आरोप लगा देते हैं। वे जीवंत विश्विद्यालय की तरह हैं। कला जीवन जे लिए है इस बात को उन्होंने रेखांकित किया था। सच के साथ खड़े होने का साहस पैदा करें यही सीखना है।

सामाजिक कार्यकर्ता सुनील सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा, “सौमित्र चटर्जी ने अपने पत्र में कहा था कि जो आदमी गुजरात नरसंहार का जिम्मेवार रहा हो वो अब देश का प्रधानमंत्री बन गया है। सौमित्र चटर्जी ने कला का व्यायसायिककरण नहीं होने दिया भले उन्हें बहुत कम पारश्रमिक दिया जाता था।” वहीं, पटना रंगमंच के बुजुर्ग रंगकर्मी अमियनाथ बनर्जी ने उसके बारे में कहा, “सौमित्र चटर्जी की तुलना पृथ्वी राज कपूर से की जा सकती राजीव है।”

अमियनाथ बनर्जी ने बताया, “सौमित्र चटर्जी; रवींद्र नाथ टैगोर, जीवनानंद दास, काजी नजरुल इस्लाम जैसे कवियों की कविताओं का पाठ किया करते थे। वे बच्चों के लिए काम करते थे। सत्यजीत राय जिस मकान में रहते थे जब उन्होंने छोड़ा तो उसी मकान में वही रहा करते थे। यदि आप किसी भी भाषा के कलाकार हैं उसके उच्चारण ओर ध्यान देना होता है। नाटक सिर्फ डायलॉग नहीं होता बल्कि बॉडी लेंग्वेज भी होता है। उन्होंने अपना अलग अंदाज बनाया। वे पटना भी आए और इसकी बहुत तारीफ की। वे अपनी दास्तां छोड़कर चले गए।”

स्मृति सभा में वरिष्ठ रंगकर्मी उषा वर्मा का संदेश भी सुनाया गया। स्मृति सभा में प्रमुख लोगों में- अनीश अंकुर, पंकज प्रियम, मनोज कुमार बच्चन, कुमार सर्वेश, कुणाल, हरिशंकर रवि, रोहित, आदित्य कमला, प्रशांत, नायडू, गौतम गुलाल, मृगांक, कृष्णा, रामजीवन सिंह, राजीव रंजन श्रीवास्तव, ओम, माही प्रिया, रितेश, अमन, प्रिंस और कुणाल सिंकन्द शामिल रहें।

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