प्रोफेसर मेहता के इस्तीफे को RBI के पूर्व गवर्नर ने बताया अभिव्यक्ति की आजादी के लिए बड़ा झटका

प्रोफेसर मेहता के इस्तीफे को RBI के पूर्व गवर्नर ने बताया अभिव्यक्ति की आजादी के लिए बड़ा झटका

पिछले दिनों हरियाणा के सोनीपत मौजूद अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और विख्यात राजनीतिक टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता ने इस्तीफा दिया। उन्होंने बीते मंगलवार को उन्होंने इस्तीफा दिया था। उनके समर्थन में गुरुवार को भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार प्रोफेसर अरविंद सुब्रमण्यन ने भी इस्तीफा दे दिया।

अब भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस मामले पर प्रतिक्रया दी है। उन्होंने शनिवार को कहा, “भारत में इस हफ्ते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बड़ा झटका लगा है।” उन्होंने लिखा, “अशोका विश्वविद्यालय इस हफ्ते तक अगले एक दशक में कैब्रिज, हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड को टक्कर देने की क्षमता रखता था लेकिन इस हफ्ते के कदम के बाद इसकी उम्मीद कम रह गई है।”

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पूर्व गवर्नर ने कहा, “अभिव्यक्ति की आजादी अशोक विश्वविद्यालय की आत्मा है, लेकिन क्या अपनी आत्मा को बेचने से दबाव समाप्त हो जाएगा। यह निश्चित रूप से भारत के लिए एक बुरा घटनाक्रम है। देश के बेहतरीन राजनीतिक टिप्पणीकार प्रोफेसर मेहता ने अशोक विश्विविद्यालय से इस्तीफा दे दिया है।”

प्रताप भानु मेहता को देश के बेहतरीन राजनीति विज्ञानियों में से एक करार देते हुए रघुराम राजन कहा, ”सचाई यह है कि प्रोफेसर मेहता किसी संस्थान के लिए कांटा थे। वह कोई साधारण कांटा नहीं हैं, बल्कि वह सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोगों के लिए अपनी जबरदस्त दलीलों से कांटा बने हुए थे।”

शिकॉगो विश्वविद्यालय के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर राजन ने कहा, ”अभिव्यक्ति की आजादी अशोक विश्विविद्यालय की आत्मा है। इस पर समझौता कर विश्वविद्यालय के संस्थापकों ने आत्मा को चोट पहुंचाई है।”

प्रोफेसर मेहता के इस्तीफे को RBI के पूर्व गवर्नर ने बताया अभिव्यक्ति की आजादी के लिए बड़ा झटका

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उल्लेखनीय है कि प्रोफेसर भानु प्रताप मेहता मीडिया में प्रकाशित अपने कॉलम और स्तंभों में सरकार की कटु आलोचक करते रहे हैं। उनके के इस्तीफे पर बवाल मचा हुआ है। उनके समर्थन में हार्वर्ड, फ्रिंसेटन, ऑक्सफोर्ड, कोलंबिया, याले और कैंब्रिज जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से जुड़े तकरीबन 150 अकैडमीशियन ने ओपन लेटर लिखा है।

अशोका यूनिवर्सिटी के ट्रस्टीज, एडमिनिस्ट्रेटर्स और फैकल्टी को लिखे गए इस पत्र में कहा गया है कि जिस तरह से राजनीतिक दबाव के चलते मेहता से इस्तीफा लिया गया, उससे सभी आहत और हतप्रभ हैं। अधिकतर लोगों को मानना है कि मेहता अपने लेखन की वजह से सरकार के निशाने पर हैं। पिछले कुछ सालों से मेहता नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा की नीतियों का मुखर होकर आलोचना करते रहे हैं।

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