लोजपा सांसदों ने किया चिराग से किनारा, दूसरी तरफ कांग्रेस में भी फूट के आसार

लोजपा सांसदों ने किया चिराग से किनारा, दूसरी तरफ कांग्रेस में भी फूट के आसार

लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के दिवंग्त नेता रामविलास पासवान के निधन को एक साल भी नहीं हुए हैं और उनकी पार्टी विखर गई है। पार्टी के पांचों सांसदों ने मिलकर रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को पार्टी के संसदीय दल के नेता पद से हटा दिया है। उन्होंने रामविलास के भाई यानी चिराग के चाचा पशुपति पारस पासवान को दल का नया नेता चुना है।

बताया जा रहा है कि बागी सांसदों ने चिराग को पार्टी का राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष मानने से भी इनकार कर दिया है। पशुपति पारस आज सोमवार शाम 3 बजे प्रेस कांफ्रेंस कर इस बारे में तस्‍वीर साफ कर सकते हैं। इससे पहले अटकले लगाई गई थी कि बागी नेता लोजपा में शामिल हो सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

लोजपा में इस फूट के बाद पशुपति पारस के अगले कदम को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। बिहार की राजनीति में जबदस्‍त हलचल मची हुई है। बताया जा रहा है कि लोकसभा स्‍पीकर ओम बिरला को बागी लोजपा सांसदों ने चिट्ठी दी है। उन सभी ने चिट्ठी में अपने गुट को अलग से मान्‍यता देने की मांग की है। इन सांसदों ने चिराग के चाचा पशुपति पारस को ही अपना नेता बनाया है।

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जिन लोजपा सांसदों ने बगावत किया उसमें चिराग के चाचा पशपति पारस पासवान के अलावा उनके चचेरे भाई प्रिंस राज, चंदन सिंह, महबूब अली कैसर और वीणा देवी शामिल हैं। आज सुबह खबर आई थी कि अलग गुट की बनाने की बजाए बागी सांसदों ने पार्टी के संसदीय दल के नेता पद से चिराग को हटाकर पशुपति पारस पासवान को नया नेता चुना है। इतना ही नहीं सांसदों ने चिराग को पार्टी का राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष मानने से भी इनकार कर दिया है।

लोजपा सांसदों ने किया चिराग से किनारा, दूसरी तरफ कांग्रेस में भी फूट के आसार

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि लोजपा में बगावत की यह पटकथा पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान ही लिखी जानी थी। उस वक्त भी पशुपति पारस पासवान की अगुवाई में बगावत की खबर बाहर आई थी। पर उन्‍होंने हो-हल्ला मचने के बाद अपने लेटर हेड पर इस बात का खंडन किया था। उसके बाद से ही लोजपा सांसदों को सही समय का इंतजार था। देखा जाए तो बगावत के बाद चिराग पासवान बिहार की सियासत में बिल्‍कुल अलग-थलग पड़ गए हैं।

हालांकि, विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने जो रणनीति जदयू और नीतीश कुमार के प्रति अपनाई उसके बाद से ही वो सभी के निशाने पर थे। यह भी कहा जाता है कि 2014 की लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान भाजपा के साथ नहीं जाना चाहते थे। चिराग ने ही उन्हें एनडीए से साथ गठबंधन करने को मजबूर किया। देखा जाए तो लोक जनशक्ति पार्टी अभी तक के अपने सबसे बड़े सियासी संकट से जूझ रही है।

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पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा-जदयू से अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला लेने के समय से ही सीएम नीतीश कुमार और जदयू के लोग चिराग से नाराज चल रहे थे। चुनावी नतीजों के बाद जदयू को साफ दिखा कि चिराग की पार्टी की वजह से उन्‍हें कई जगहों पर नुकसान का सामना करना पड़ा। उधर, विधानसभा चुनाव में लोजपा को सिर्फ एक सीट मिली। इतने खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी के अंदर चिराग पासवान के खिलाफ नाराजगी बढ़ने लगी। अब उस नाराजगी को मूर्त रूप मिल रहा है।

उधर, बिहार कांग्रेस में बड़ी टूट होने की बात सामने आ रही है। खबर गरम है कि कांग्रेस के कई नेता जेडीयू के साथ हाथ मिलाने वाले हैं। सूत्रों के सवाले से खबर आ रही है कि कांग्रेस के कई नेताओं की जेडयू के नेताओं से बात भी हुई है। बस इंतजार संख्या बल का है। फिलहाल, कांग्रेस के पास 19 विधायक हैं। कांग्रेस को टूटने और दूसरे दल में जाने के लिए दल बदल कानून के मुताबिक कम-से-कम 13 विधायकों की जरूरत होगी। यह आंकड़ा पूरा करने की मशक्कत हो रही हो। माना जा रहा है कि 13 का आश्वासन मिलते ही कांग्रेस को बड़ा झटका मिल सकता है।

दूसरी तरफ जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी के लगातार ने बयानों ने एनडीए में पहले से ही हलचल मचा रखी है। पिछले दिनों जीतन राम मांझी ने को-ऑर्डिनेशन कमिटी की मांग और बीजेपी नेताओं पर हमला किया। हालांकि, मांझी ने कहा कि वे नीतीश के साथ हैं। पर साथ ही मुकेश सहनी के बयान और सहनी-मांझी मुलाकात ने एनडीए को चौकन्ना कर दिया है। लालू के जन्मदिन के दिन तेजप्रताप का मांझी के घर पहुंच कर लालू से फोन पर 10 मिनट की बात करना एनडीए को सोचने पर मजबूर कर दिया। जेडीयू चाहता है कि कांग्रेस की टूट के बाद सहयोगी दलों के बारगेनिंग पर अंकुश लगे।


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