कोर्ट के आदेश के बावजूद UP पुलिस ने फिर लगाए CAA प्रदर्शनकारियों के पोस्टर, रखे इनाम

कोर्ट के आदेश के बावजूद UP पुलिस ने फिर लगाए CAA प्रदर्शनकारियों के पोस्टर, रखे इनाम

लखनऊ: नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ पिछले साल दिसंबर में देशभर में प्रदर्शन हुए थे। उसी दौरान उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी हिंसक प्रदर्शन हुए थे। उसके बाद प्रदेश की योगी सरकार ने आरोपी प्रदर्शनकारियों का पोस्टर नाम और पते के साथ राजधानी में लगाए थे। आगे चलकर कोर्ट ने पोस्टर हटाने को हटाने के आदेश दिए थे। लेकिन एक बार फिर पुलिस और प्रशासन ने पोस्टर लगवा दिए गए हैं।

प्रशासन ने राजधानी में दो तरह के पोस्टर लगाए गए हैं। पहले पोस्टर में उनलोगों के नाम हैं जिन्हें पुलिस को तलाश (वॉन्टेड) है। वहीं दूसरे पोस्टर में ‘फरार’ लोगों का ब्योरा दिया है। बृहस्पतिवार को पुलिस सूत्रों ने बताया कि सीएए के खिलाफ पिछले साल 19 दिसंबर को लखनऊ में हुए प्रदर्शन में शामिल आठ लोगों पर गैंगस्टर ऐक्ट के तहत कार्रवाई करते हुए उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया है।

लखनऊ के कई थानों और सार्वजनिक स्थलों पर पुलिस ने सीसीए प्रदर्शनकारियों की तस्वीर वाले पोस्टर लगाए हैं। खबर मुताबिक, दो अलग-अलग पोस्टर पुलिस ने जारी किए हैं। एक पोस्टर में उन प्रदर्शनकारियों की तस्वीर और पते हैं, जिन पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्यवाही हुई है, जबकि दूसरे में उन प्रदर्शनकारियों के नाम हैं जो फरार तो हैं पर उन पर गैंगस्टर एक्ट नहीं लगे हैं।

पुलिस ने पोस्टर पर लिखा है कि जो लोग इन प्रदर्शनकारियों की जानकारी देंगे उन्हें पांच हजार रुपये का इनाम दिए जाएंगे। पहले पोस्टर में आठ फरार प्रदर्शनकारियों का विवरण दिया गया है। उन सभी पर गैंगस्टर के तहत कार्यवाही करने की बात कही गई है। इनमें मोहम्मद अलम, मोहम्मद ताहिर, अहसन, इरशाद, हसन, रिजवान, नायब उर्फ रफत अली और इरशाद के नाम शामिल हैं। ठाकुरगंज थाने में इन सभी पर मामला दर्ज है।

वहीं दूसरे पोस्टर में शिया धर्मगुरु मौलाना सैफ अब्बास, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक के बेटे कल्बे सिब्तैन नूरी, तौकीर उर्फ तौहीद, इस्लाम, जमाल, आसिफ, मानू, शकील, नीलू, हलीम, काशिफ और सलीम चौधरी के नाम शामिल हैं। पुलिस के मुताबिक, यह प्रदर्शनकारी पिछले साल 19 दिसंबर को लखनऊ में सीएए के विरुद्ध हुए प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल थे और हिंसा भड़का रहे थे।

नेशनल हेरॉल्ड के मुताबिक, एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि उन सभी जगहों पोस्टर पर लगाए गए हैं, जहां इन प्रदर्शनकारियों के छुपे होने की संभावना है। इसके अलावा आरोपियों के घरों में पोस्टर और नोटिस लगाए गए हैं। हालांकि, दूसरी तरफ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इन पोस्टरों को अनैतिक और कानून का दुरुपयोग बताया है। कुछ लोगों का कहना है कि वे इस ‘सार्वजनिक अपमान’ के खिलाफ अदालत जाएंगे, क्योंकि उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं हो हुए हैं।

मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्व आईपीएस अधिकारी एस.आर. दारापुरी ने कहा, “योगी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए), गुंडा अधिनियम और अपराधों के लिए गैंगस्टर अधिनियम का दुरुपयोग कर रही है, जिनसे मुख्य रूप से मुस्लिम और दलित पीड़ित हैं।” दारापुरी ने आगे कहा, “इस तरह के कानूनों का उपयोग उन व्यक्तियों के खिलाफ किया जाना चाहिए, जो अपराधी हैं। सरकार उन लोगों को कैसे अपमानित कर सकती है जिनके अपराध अदालत में साबित नहीं हुए हैं।”

उल्लेखनीय है कि बीते साल लखनऊ में 19 दिसंबर को सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। इसके अलावा बड़े पैमाने पर सार्वजनिक सम्पत्ति का नुकसान हुआ था। इश घटना के बाद बड़े पैमाने पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अलग-अलग थानों में मामले दर्ज किए गए थे और कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी हुई थी।

लखनऊ जिला प्रशासन ने प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसान के मुआवजे के लिए उस समय भी प्रदर्शनकारियों के नाम, पते और तस्वीरों की होर्डिंग लगवा दी थी। जिसके बाद काफी विवाद हुआ और मामला कोर्ट में चला गया था। प्रदर्शन ने जिन लोगों की होर्डिंग्स में पिछली बार तस्वीरें लगवाई थीं, उनमें पूर्व आईपीएस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता एस.आर. दारापुरी, कार्यकर्ता और नेता सदफ जाफर, वकील मोहम्मद शोएब, थियेटर कलाकार दीपक कबीर जैसे लोग शामिल थे।

लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुलिस पर उनके इस कदम के लिए सख्त नाराजगी जाहिर की थी। इस साल के मार्च महीने कोर्ट ने होर्डिंग हटाने के आदेश दिए थे। तब अदालत ने कहा था कि इस तरह से सार्वजनिक स्थानों पर पोस्टर लगाना बिल्कुल अनुचित है। अदालत ने ये भी कहा था कि पुलिस का पोस्टर लगाना संबंधित लोगों की व्यक्तिगत आजादी पर पूरी तरह से दखलअंदाजी है। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय में हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी थी, जहां यह मामला अभी विचाराधीन है।

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