दिल्ली दंगा: जुर्माना लगाते हुए कोर्ट ने कहा, लगता है पुलिस ही आरोपियों को बचा रही

दिल्ली दंगा: जुर्माना लगाते हुए कोर्ट ने कहा, लगता है पुलिस ही आरोपियों को बचा रही

दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली दंगा मामले में दिल्ली पुलिस पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने ठीक से काम नहीं किया। ऐसा लग रहा है कि पुलिस ही आरोपियों को बचाने की कोशिश कर रही है। और ये दु:ख की बात है कि पुलिस अधिकारी अपनी जांच के दौरान संवैधानिक कर्तव्य निभाने में फेल रहे। पुलिस ने इस मामले में बड़ा ही ढीला रवैया अख्तियार किया है। दिल्ली पुलिस कमिश्नर से कोर्ट में कहा है कि इस मामले को देखते हुए सुधार के लिए कदम उठाए जाएं।

दरअसल, 24 फरवरी 2020 दिल्ली दंगों के दौरान मोहम्मद नासिर नाम के शख्स को आंख में गोली लगी थी। मोहम्मद नासिर ने 19 मार्च 2020 को अपने पड़ोस के 6 लोगों (नरेश त्यागी, सुभाष त्यागी, उत्तम त्यागी, सुशील और नरेश गौर) के खिलाफ उन्हें गोली मारने की शिकायत दर्ज कराई थी। इसी मामले में दिल्ली पुलिस पर मोहम्मद नासिर ने अरोप लगाया था कि दिल्ली पुलिस ने बिना जांच किए नासिर की शिकायत को दूसरी एफआईआर में जोड़ दिया, जिससे इनका कुछ लेना देना नहीं था।

जिसके बाद नासिर ने 17 जुलाई 2020 को दिल्ली पुलिस द्वारा उसकी शिकायत दर्ज न करने को लेकर कड़कड़डूमा कोर्ट का रूख किया। कड़कड़डूमा कोर्ट ने 21 अक्टूबर 2020 को दिल्ली पुलिस को मोहम्मद नासिर की शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए थे। लेकिन 29 अक्टूबर 2020 को दिल्ली पुलिस मेट्रोपॉलिटन कोर्ट के आदेश के खिलाफ सेशन कोर्ट पहुंची।

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13 जुलाई 2021 को सेशन कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि पुलिस की कार्रवाई चौंका देने वाली है। कोर्ट ने पूछा कि पुलिस ने बिना जांच किए आरोपियों को क्लीन चिट कैसे दे दी? कोर्ट ने यह भी कहा की इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस की जांच बहुत ढिलाई और निष्ठुर होकर की है। कोर्ट ने कहा कि पूरे मामले को देखने पर समझ आता है कि पुलिस ही आरोपियों को बचाने काम कर रही है।

दिल्ली दंगा: जुर्माना लगाते हुए कोर्ट ने कहा, लगता है पुलिस ही आरोपियों को बचा रही

वहीं दूसरी तरफ इस मामले में दिल्ली पुलिस का कहना है कि अलग से प्राथमिकी दर्ज करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि पुलिस ने पूर्व में ही प्राथमिकी दर्ज कर ली थी। दिल्ली पुलिस ने आगे कहा कि कथित तौर पर गोली मारने वाले लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं। क्योंकि घटना के समय वे दिल्ली में नहीं थे।

इस पर सत्र न्यायाधीश ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा, “जांच प्रभावशाली और निष्पक्ष नहीं है। यह बहुत ही लापरवाह, संवेदनहीन और हास्यास्पद तरीके से की गई है।” सत्र अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इस आदेश की एक प्रति दिल्ली पुलिस आयुक्त को भेजी गई है, ताकि मामले में जांच और निरीक्षण के स्तर को संज्ञान में लाया जा सके और उचित कार्रवाई की जा सके। कोर्ट ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता चाहे तो पुलिस के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए कोर्ट जा सकता है।

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बता दें इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने 6 जुलाई को दिल्ली पुलिस को पिछले साल उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित मामले में दायर आरोप पत्र और पूरक आरोप पत्र की सामग्री संबंधित अदालत द्वारा संज्ञान लेने से पहले ही मीडिया को लीक होने की ‘व्यापक जांच’ करने के लिए दो और सप्ताह की अनुमति दी। न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की पीठ ने निर्देश दिया कि जांच पर रिपोर्ट वाली फाइल सुनवाई की अगली तारीख पर उसके समक्ष पेश करें।

गौरतलब है कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र एवं दंगों के आरोपी आसिफ इकबाल तनहा ने पिछले साल हाई कोर्ट का रुख किया था। उन्होंने पुलिस अधिकारियों पर आरोप पत्र में अपने कथित खुलासे वाले बयान को मीडिया को लीक करने में अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया था, जोकि जांच के दौरान दर्ज किया गया था।


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