गुजरात की अदालत ने 20 साल बाद 127 मुसलमानों को किया बरी, सिमी से जुड़े होने का था आरोप

गुजरात की अदालत ने 20 साल बाद 127 मुसलमानों को किया बरी, सिमी से जुड़े होने का था आरोप

सूरत की एक अदालत ने बीते शनिवार 127 लोगों को बरी कर दिया। इन सभी को लगभग 20 साल बाद रिहा करने का कोर्ट ने आदेश दिया। ये भी प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी-सीएम) के साथ कथित रूप से जुड़े होने के इल्जाम में बंद थे। इनमें से अब तक पांच लोगों की मौत हो चुकी है।

इन सभी को बीस साल पहले गुजरात पुलिस ने सूरत के एक होटल से गिरफ्तार किया था। तब इन लोगों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इन सभी आरोपियों में गुजरात के विभिन्न भागों के अलावा तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और बिहार के रहने वाले हैं।

अब इन सभी को सूरत की एक स्थानीय अदालत ने उनके खिलाफ लगाए गए अभियोग सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं होने के बिना पर बरी करने का आदेश दिया है। बीबीसी के एक रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात के सूरत शहर में साल 2001 में अल्पसंख्यक समुदाय की शिक्षा से जुड़ी वर्कशॉप आयोजित की गई थी। जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से आए लोग शामिल हुए थे। पर वर्कशॉप शुरू होने से एक दिन पहले सभी लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।

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औरंगाबाद के रहने वाले जियाउद्दीन सिद्दीकी का कहना है कि हम सभी को पुलिस ने सिमी के कार्यकर्ता होने के आरोप में अरेस्ट किया था। उन्होंने बताया कि उन्हें साल 2001 में गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद मीडिया ट्रायल हुआ। लोगों ने उन्हें अलग-थलग करने के लिए उन पर आतंकवाद, सम्प्रदायवाद और जादू-टोना करने तक का आरोप लगाया।

गुजरात की अदालत ने 20 साल बाद 127 मुसलमानों को किया बरी, सिमी से जुड़े होने का था आरोप
जियाउद्दीन सिद्दीकी (फोटो साभार: बीबीसी हिंदी)

इतनी ही नहीं कुछ लोगों को नौकरी से भी निकाल दिया गया। कई दूसरे लोगों के व्यवसाय प्रभावित हुए। अभियुक्त पक्ष के वकील अब्दुल वहाब शेख ने ने बताया कि पुलिस को सूचना मिली कि सूरत में राजेश्री हॉल में जो लोग एकत्रित हुए थे, वे सिमी कार्यकर्ता थे। सुबह 2 बजे पुलिस ने इमारत में छापा मारा और सभी को अरेस्ट कर लिया गया।

उन्होंने बताया कि इन सभी लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाया गया और एक प्रतिबंधित संगठन होने की वजह से गैर-कानूनी गतिविधि अधिनियम के तहत केस चलाया गया। शेख ने आगे बताया कि गिरफ्तारी के बाद दायर चार्जशीट में केंद्र सरकार से अनुमति लेने के बजाय राज्य सरकार के अधिकारियों से अनुमति मांगी गई थी। मामला दर्ज करने के लिए दी गई अनुमति कानूनी रूप से वैध नहीं थी।

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उन्होंने बताया कि पुलिस यह भी साबित नहीं कर पाई कि ये अरेस्ट किए गए सभी व्यक्ति सिमी के थे। शेख ने आगे कहा, “जेल में एक साल बाद 120 लोगों को जमानत दी गई। सात आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट से जमानत लेनी पड़ी। इस मामले में गवाहों से लेकर पुलिस अधिकारियों तक कुल 27 लोगों की गवाही हुई।”

बीबीसी के मुताबिक, सरकार के वकील मयंक सुखड़वाला ने कहा है कि उनके तरफ से फैसले का अध्ययन किया जा रहा है उसके बाद अपील पर फैसला लिया जाएगा। सरकारी वकील ने यह भी कहा कि अदालत ने मामले पर ध्यान दिया है और चार्जशीट दाखिल करने की शक्ति के मामले में अपना फैसला दिया है। मामले का अध्ययन करने के बाद आगे की कार्रवाई पर विचार किया जाएगा।

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