Author: Ajay Chandravanshi (अजय चन्द्रवंशी)

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हिंदी परंपरा के आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा को आप कितना जानते हैं?
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हिंदी परंपरा के आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा को आप कितना जानते हैं?

डॉ. रामविलास शर्मा के महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उनके आलोचनात्मक लेखन के प्रारंभिक दौर (चालीस के दशक) से लेकर आज उनके निधन के बीस वर्ष बाद तक वे बहस के केंद्र में हैं। इधर, नामवर जी के निधन पर और रेणु के जन्म शताब्दी पर भी उनके...

फिल्म ‘काबुलीवाला’ बताती है- देशप्रेम सार्वभौमिक होता, चाहे हिन्दोस्तान हो या अफगानिस्तान
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फिल्म ‘काबुलीवाला’ बताती है- देशप्रेम सार्वभौमिक होता, चाहे हिन्दोस्तान हो या अफगानिस्तान

प्रेम और सम्वेदना मनुष्य की सहजवृत्ति हैं। हमारा संवेदनात्मक लगाव केवल ‘अपनों’ से नहीं अपितु ‘दूसरों’ से भी हो सकता है। या यों कहें कि जिनसे हमारा लगाव हो जाता है उसे हम अपना समझने लगते हैं। इस लगाव के कई रूप और नाम हैं। स्त्री पुरुष का प्रेमाकर्षण है, मित्रता है, बड़ों के प्रति...

त्रिलोक जेटली की फिल्म ‘गोदान’ : कृषक जीवन की विडम्बना
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त्रिलोक जेटली की फिल्म ‘गोदान’ : कृषक जीवन की विडम्बना

प्रेमचंद का कालजयी उपन्यास ‘गोदान’ सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में है। इस उपन्यास में तत्कालीन कृषक जीवन की विडम्बना को जिस शिद्दत से दिखाया गया वह अभूतपूर्व था। ‘होरी’ भारतीय कृषक जीवन का प्रतिनिधि पात्र बन गया। उसका चरित्र देशकाल बद्ध होते हुए भी अपनी सम्वेदना में उसका अतिक्रमण कर गया है। यूं किसानी...

फिल्म ‘बंदिनी’ : मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार, हूँ इस पार
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फिल्म ‘बंदिनी’ : मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार, हूँ इस पार

मानवता और प्रेम मनुष्य मात्र की सहजवृत्ति है, मगर मातृत्व की अतिरिक्त क्षमता के कारण और उससे जनित जैविक-मनोवैज्ञानिक कारणों से भी स्त्रियों में ममत्व और करुणाशीलता के अधिक उदाहरण देखे जाते हैं। निष्ठुर, स्त्री या पुरूष कोई भी हो सकता है मगर फिर भी स्त्रियों में इसके उदाहरण अपेक्षाकृत कम मिलते हैं। “स्त्री पैदा...

सत्यजीत राय की फिल्म ‘सद्गति’ यानी मृत्यु की सही गति अर्थात ‘मोक्ष’ की प्राप्ति
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सत्यजीत राय की फिल्म ‘सद्गति’ यानी मृत्यु की सही गति अर्थात ‘मोक्ष’ की प्राप्ति

प्रेमचंद तत्कालीन समाज के कुशल चितेरे हैं। वे समाज के अंतर्विरोधों, विडम्बनाओं से आँख नहीं चुराते बल्कि जोखिम की हद तक ‘नंगी सच्चाई’ को उजागर करते हैं। वे चाहते तो कइयों की तरह निजी सुख-दु:ख और व्यक्तित्व के मनोवैज्ञानिक चित्रण तक सीमित रह सकते थे, लेकिन उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। उनकी बहुत-सी कहानियां अपने समय...

पुस्तक समीक्षा ❙ बर्नियर की भारत यात्रा : सत्रहवीं सदी का भारत
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पुस्तक समीक्षा ❙ बर्नियर की भारत यात्रा : सत्रहवीं सदी का भारत

प्रसिद्ध यात्री फ्रांस्वा बर्नियर फ्रांस का निवासी था। पेशे से चिकित्सक बर्नियर 1656 से 1668 तक भारत में रहा। इस समय वृहत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों में मुगलों का शासन था जिसमें अत्यधिक उथल-पुथल मचा था। शाहजहाँ के अस्वस्थ होने से उसके पुत्रों के बीच सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष शुरू हो गया था। शाहजहाँ...

श्याम बेनेगल की ‘निशांत’ सामंती अत्याचार से पीड़ितों का मुक्ति संघर्ष
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श्याम बेनेगल की ‘निशांत’ सामंती अत्याचार से पीड़ितों का मुक्ति संघर्ष

सामंतवाद इतिहास का एक भयावह दौर रहा है। इसकी नींव ही किसानों, कारीगरों के शोषण पर टिकी थी। एकाक ‘अच्छे’ शासकों के अलावा इसमें स्वेच्छाचारिता का सर्वत्र बोलबाला रहा है। इसमें सामंत की इच्छा ही ‘न्याय’ हुआ करता था और वह जो भी करता था ‘सही’ करता था। ज़ाहिर है ऐसे में लोग उसके ‘करम’...

पुस्तक समीक्षा  ▏  एक गोंड गांव में जीवन: वेरियर एल्विन
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पुस्तक समीक्षा ▏ एक गोंड गांव में जीवन: वेरियर एल्विन

भारतीय जनजातियों पर शोध करने वाले मानवशास्त्रियों में वेरियर एल्विन (1902-64) का विशिष्ट स्थान है। वे काफी लोकप्रिय हुए और कई मामलों में विवादास्पद भी रहें। मुरिया जनजाति पर उनका शोध ‘मुरिया एंड देयर घोटुल’ विश्व स्तर पर चर्चित हुआ। उनकी पद्धति से कुछ लोगों को असहमति भी रही है, खासकर ‘काम’ सम्बन्धों के नियमन...

आलोचना का लोकधर्म: आलोचना की लोकदृष्टि
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आलोचना का लोकधर्म: आलोचना की लोकदृष्टि

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी शाकिर अली कवि, आलोचक, एक्टिविस्ट कई रूपों में दिखाई देते हैं। लेकिन इन सब में मुझे उनका विद्यार्थी रूप सर्वाधिक महत्वपूर्ण लगता है। ज्ञान की भूख और किताबों से उनका प्रेम, उनको निकट से जानने वाले ही जान सकते हैं।