भारत में कोरोना संक्रमण के कारण हाहाकार मचा हुआ है। महाकुंभ जैसे आयोजनों ने कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान आग में घी डालने का काम किया। हालांकि, कुंभ स्नान के बाद हुई सरकार की किरकिरी के बाद संक्रमित लोगों की खबरें अचानक मीडिया से गायब हो गईं। किसी को नहीं पता कि वहां से आए लोगों में कितने लोग संक्रमित हुए। कुछ दिनों पहले सरकार ने एक आंकड़ा जारी किया था जिसमें कहा था पूरे कुंभ के दौरान करीब एक करोड़ लोगों ने गंगा स्नान किया। इसमें 14 लाख लोगों ने शाही स्नान में भाग लिया था, जिसमें लगभग 18 सौ लोग संक्रमित हुए थे। पर आगे चलकर सराकर ने इससे संबंध कोई आंकड़ा जारी नहीं किया।
लेकिन सबसे आश्चयजनक बात ये कि कुंभ आयोजन के बाद मिले सबक को भूलकर अब सरकार अमरनाथ यात्रा की तैयारी कर रही है। बालताल और चंदावड़ी में राज्य प्रशासन की योजना अस्थाई शिविर स्थापित करने की है। श्रद्धालुओं को बालताल से 14 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी होगी। चंदावड़ी से भक्तजन 32 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद अमरनाथ की पवित्र गुफा तक पहुंच पाएंगे।

हालांकि, फिलहाल अधिकारियों ने ऑनलाइन नामांकन का काम अस्थाई तौर बंद कर दिया है। लेकिन उनका कहना है कि यात्रा 28 जून से 22 अगस्त के बीच तय समय से ही होगी। वहीं, दूसरी तरफ अमरनाथ यात्रा को लेकर भी कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों चिंता जाहिर की हैं। कोरोना संकट के बीच अमरनाथ यात्रा को लेकर कश्मीर के राजनीतिक दल भी ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। नेशनल कान्फ्रेंस के नेता तनवीर सादिक कहते हैं, “पूरे भारत में हालात खराब हैं। बेहतर होगा कि इस साल अमरनाथ यात्रा प्रतीकात्मक ही हो और कुछ लोगों को ही पवित्र गुफा की यात्रा करने की इजाजत दी जाए। नहीं तो यहां तबाही मच सकती है।”
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डॉयचे वेले की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी से ही अमरनाथ यात्रा की तैयारी चल रही है। सरकार ने छह लाख श्रद्धालुओं की अर्जियां आमंत्रित की थीं। पर स्थानीय प्रशासन के भीतर कोरोना को लेकर खौफ का माहौल है। वे सभी चिंतित हैं। डॉयचे वेले के अनुसार, जम्मू सचिवालय में एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “वैक्सीन आने और रोज आने वाले मामलों की संख्या कम होने के बाद अधिकारियों की चौकसी कम हो गई। सारे कामकाज सामान्य हो गए। और अब सब कुछ बिखर रहा है।”
उधर, अमरनाथ यात्रा का आयोजन देखने वाले श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड का कहना है कि 30 हजार श्रद्धालुओं ने अप्रैल में देश के अलग-अलग हिस्सों से यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है। 2019 और 2020 में अमरनाथ यात्रा नहीं हुई थी। उससे पहले 2019 में धारा 370 खत्म हटाए जाने के बाद तनाव के चलते भारत सरकार ने यात्रा रद्द कर दिया था। वहीं, बीते साल देशव्यापी लॉकडाउन के चलते यात्रा नहीं हो पाई था।

लेकिन इस बार सरकार यात्रा कराने को लेकर काफी उत्साहित है। देखा जाए तो कश्मीर में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। राज्य में एक करोड़ 30 लाख लोगों के लिए सिर्फ 2,599 कोविड बेड हैं जिनमें 324 आईसीयू बेड हैं। जिसमें से 1,220 बिस्तर पहले से ही इस्तेमाल में हैं। जो स्वास्थ्य सलाह अमरनाथ यात्रियों के लिए जारी की गई है, उसमें वायरस और उससे बचने के बारे में कोई जिक्र नहीं है।
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स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता शेख गुलाम रसूल बताते हैं कि स्थानीय लोगों और यात्रियों दोनों के लिए कोरोना संक्रमण के दौरान असावधानी खतरनाक साबित हो सकती है। रसूल कहते हैं, “ऊंचाई पर ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम होता है। और यह बीमारी तो सांस पर ही वार करती है। यह आयोजन बहुत खतरनाक हो सकता है और इसे संभालना हमारे खराब स्वास्थ्य ढांचे के बस की बात नहीं होगी। सरकार को जिम्मेदारी से व्यवहार करते हुए इस यात्रा को स्थगित कर देना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “सरकार ने भरसक कोशिश की कि लोग कोविड-सुरक्षित रहें और नियमों का पालन करें। उसके बावजूद हमने देखा कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों के जमा होने पर जमीन पर इन नियम-कायदों को लागू करवा पाना कितना मुश्किल था।” विश्लेषकों का कहना है कि घाटी में पर्यटन को बढ़ावा देना भारत सरकार की प्राथमिकता है क्योंकि इसे इलाके में सामान्य होते इलाकों के रूप में देखा जाता है।
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