युवा कवि गोलेन्द्र पटेल कविता के साथ-साथ नवगीत, कहानी, निबंध और नाटक जैसी विधाओं से भी जुड़े रहे हैं। लंबे समय से इनकी रचनाएँ ‘प्राची’, ‘बहुमत’, ‘आजकल’, ‘साखी’, ‘वागर्थ’, ‘काव्य प्रहर’, ‘जन-आकांक्षा’, ‘समकालीन त्रिवेणी’, ‘पाखी’, ‘सबलोग’ जैसी पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होती रही हैं। इन्हें अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से ‘प्रथम सुब्रह्मण्यम...
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गोपाल राम गहमरी की कहानी: गुप्तकथा
पहली झाँकी जासूसी जान पहचान भी एक निराले ही ढंग की होती है। हैदर चिराग अली नाम के एक धनी मुसलमान सौदागर का बेटा था। उससे जासूस की गहरी मिताई थी। उमर में जासूस से हैदर चार पाँच बरस कम ही होगा, लेकिन शरीर से दोनों एक ही उमर के दीखते थे। मुसलमान होने पर...
मन्नू भंडारी की कहानी- स्त्री सुबोधिनी
प्यारी बहनो, न तो मैं कोई विचारक हूँ, न प्रचारक, न लेखक, न शिक्षक। मैं तो एक बड़ी मामूली-सी नौकरीपेशा घरेलू औरत हूँ, जो अपनी उम्र के बयालीस साल पार कर चुकी है। लेकिन उस उम्र तक आते-आते जिन स्थितियों से मैं गुजरी हूँ, जैसा अहम अनुभव मैंने पाया… चाहती हूँ, बिना किसी लाग-लपेट के...
अली सरदार जारी की कहानी: चेहरु माँझी
हवा बहुत धीमे सुरों में गा रही थी, दरिया का पानी आहिस्ता-आहिस्ता गुनगुना रहा था। थोड़ी देर पहले ये नग़्मा बड़ा पुर-शोर था लेकिन अब उसकी तानें मद्धम पड़ चुकी थीं और एक नर्म-ओ-लतीफ़ गुनगुनाहट बाक़ी रह गई थी। वो लहरें जो पहले साहिल से जा कर टकरा रही थीं, अब अपने सय्याल हाथों से...
हिंदी परंपरा के आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा को आप कितना जानते हैं?
डॉ. रामविलास शर्मा के महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उनके आलोचनात्मक लेखन के प्रारंभिक दौर (चालीस के दशक) से लेकर आज उनके निधन के बीस वर्ष बाद तक वे बहस के केंद्र में हैं। इधर, नामवर जी के निधन पर और रेणु के जन्म शताब्दी पर भी उनके...
आर. के. कश्यप की दो कविताएं- ओस की बूंदें और वीआईपी
ओस की बूंदें सुबह के ओस की बूँदों का छुअन, निश्छल प्रेम का अहसास कराती है।यह कोमल, निराकार, मासूम, अत्ममिलन का सुकून देती है। सुबह कि बेला में ज़मीन पर उगे छोटे-छोटे घासों पर,आपका इंतज़ार करती है। वृक्ष के पत्तों से टपकती कहती है,कि आओ हमसे आत्ममिलन करो। अहसास करो प्रेम के चरम स्पर्श का,आओ...
अमृता प्रीतम के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी पंजाबी कहानी: यह कहानी नहीं
पत्थर और चूना बहुत था, लेकिन अगर थोड़ी-सी जगह पर दीवार की तरह उभरकर खड़ा हो जाता, तो घर की दीवारें बन सकता था। पर बना नहीं। वह धरती पर फैल गया, सड़कों की तरह और वे दोनों तमाम उम्र उन सड़कों पर चलते रहे….। सड़कें, एक-दूसरे के पहलू से भी फटती हैं, एक-दूसरे के...
साहित्य में नायक की पारंपरिक अवधारणा बदल दी प्रेमचंद ने
मुझे पिछले वर्ष भी हाजीपुर के इस गांधी आश्रम में आने का मौका मिला था। हाजीपुर की सबसे अच्छी बात ये है कि यहां हमेशा प्रेमंचद जयंती दो तीन दिनों के बाद मनाई जाती है। वैसे भी 31 जुलाई को हर जगह प्रेमचंद जयंती कार्यक्रमों की धूम मची रहती है। पूरे बिहार में छोटी-छोटी जगहों,...
डॉ. मुकुन्द रविदास की तीन कविताएं: विधवा की बेटी, लोग और उसी कमरे में
विधवा की बेटी जीर्ण-शीर्ण वस्त्र सेलिपटी गुड़ियाबहुत सुंदर दिखती है। पड़ोसी घर खटती-पिटती ‘माँ’वह गुड्डा-गुड़िया खेलती हैरात को माँ से लिपट करखटिया में सोयी रहती है। दिन में खेत को जातीरात में शौच को निकलती हैउठवा लो एक दिनहवस का शिकारबना लोतन-मन कर दोजीर्ण-शीर्णबहुत सुंदर दिखती है। एक नहीं दो-चारबुला लोकोई हाथ पकड़ लोकोई पैर...
विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की 3 कविता: भेड़िए, सवाल और मेरी कविताएं
भेड़िए भेड़िए-तुम फिर आनाबार-बार आनादबोच कर ले जानायहां का नूरयहां की महकयहां की नमींयहां की जन्नतपेड़, पहाड़, जंगल, झरनानदी, नाला, पनघट सब ले जानापसंद की पनिहारनियों को भी ले जाना। भेड़िए-तुम फिर आनाले जाना दबोच करयहां के लोकगीतयहां के लोकनृत्ययहां की संपदा, खान-खनिजधर्म, वेद, पुराण, शास्त्र, सब ले जानालोगों का मन, मस्तिष्क, ईमान सब ले...