अब खड़गे बोले- कांग्रेस को कमजोर करने में पार्टी के नेताओं सबसे बड़ी भूमिका

अब खड़गे बोले- कांग्रेस को कमजोर करने में पार्टी के नेताओं सबसे बड़ी भूमिका

नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव और उप-चुनाव के बाद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में उठा-पटक जारी है। बीते दिनों कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने चुनाव नतीजों के बाद पार्टी को आत्मविश्लेषण की सलाह क्या दे दी पार्टी के अंदर तुफान खड़ा हो गया है। सिब्बल के बयान के बाद बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने उन्हें कांग्रेस छोड़ तक की सलाह दे दी। पिछले दिनों जब राजस्थान के अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट संकट गहराया था तब भी ऐसा ही हंगामा खड़ा हुआ था।

सिब्बल के बाद अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने ही साथी कांग्रेसी नेताओं की जमकर लताड़ लगाई है। खड़गे ने कहा कि पार्टी को कमजोर करने में कांग्रेस नेताओं सबसे बड़ी भूमिका रही है। खड़गे ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जन्मदिन के मौके पर गुरुवार को कहा, “मैं कुछ वरिष्ठ नेताओं (कांग्रेस पार्टी के नेता) की ओर से पार्टी (कांग्रेस) और हमारे नेताओं को लेकर दिए गए बयानों की वजह से आहत हूं।”

उन्होंने कहा, “एक तरफ हमारे सामने बीजेपी-आरएसएस की चुनौती है और दूसरी तरफ हमारी पार्टी की आंतरिक कलह। जब तक हमें हमारे ही लोग कमजोर करते रहेंगे तबतक हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं। यदि हमारी विचारधारा कमजोर होती है तो हम खत्म हो जाएंगे।”

खड़गे ने आगे कहा, “एक पुरानी कहावत है कि हार और परिवार में बीमारी होने पर अपने सच्चे दोस्तों की पहचान होती है। लेकिन हम अब हारे हुए और बीमार दोनों हैं। ऐसे में हम जानना चाहेंगे कि हमारे साथ कौन हैं और कौन नहीं।” कांग्रेस आलाकमान को निशाना बनाने वाले नेताओं की विश्वसनीयता पर भी खड़गे ने सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “वे अपने क्षेत्रों में यहां तक कि नगर सेवक तक नहीं पैदा कर सकते हैं।”

उधर, अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “सावर्जनिक तौर पर पार्टी की फजीहत कराने के बजाए सिब्बल पार्टी के भीतर मुद्दा उठा सकते थे। वह वरिष्ठ नेता हैं और पार्टी के शीर्ष नेताओं तक उनकी पहुंच है।” उन्होंने इसके बाद कहा, “पार्टी के कामकाज से जो लोग खुश नहीं हैं और अगर उन्हें लगता है कि कांग्रेस उनके लिए उपयुक्त स्थान नहीं है तो वो अपनी नई पार्टी बना सकते हैं या अपनी मर्जी से किसी भी पार्टी में शामिल हो सकते हैं।”

दरअसल, कपिल सिब्बल ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, ”सिर्फ बिहार में ही नहीं, बल्कि देश में जहां-जहां भी चुनाव और उप-चुनाव हुए हैं, वहां लोग कांग्रेस को प्रभावी विकल्प नहीं मान रहे हैं। यह एक निष्कर्ष है। आखिरकार, बिहार में विकल्प आरजेडी ही थी। गुजरात विधानसभा उपचुनाव की सभी सीटों पर हमें हार का सामना करना पड़ा है। यहां तक कि लोकसभा चुनाव में भी हमें एक भी सीट नहीं मिली थी। वहीं, उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों को दो फीसदी से भी कम वोट मिले। गुजरात में हमारे तीन उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। मेरे कुलीग जोकि सीडब्ल्यूसी का हिस्सा हैं, उन्होंने बयान दिया था कि मुझे उम्मीद है कि कांग्रेस आत्मनिरीक्षण करेगी।”

इतना ही नहीं सिब्बल ने पार्टी की लीडरशिप पर भी सवाल उठाए थे। जब इंटरव्यू में उनसे सवाल पूछा गया कि बिहार हार को क्या पार्टी लीडरशिप एक और हार की तरह देख रही है, तो उन्होंने कहा, “मुझे नहीं मालूम। मैं यहां सिर्फ अपने बारे में बात कर रहा हूं। मैंने लीडरशिप को मुझे कुछ भी बताते हुए नहीं सुना। इसलिए, मुझे नहीं मालूम। मुझे बस लीडरशिप के आसपास वाली आवाजें ही सुनाई देती हैं। हमें अभी भी कांग्रेस पार्टी से बिहार चुनाव और उप-चुनाव में हालिया प्रदर्शन पर उनकी राय का इंतजार है। यह भी हो सकता है कि वे सोचते हों कि सबकुछ ठीक है और इसे हमेशा की तरह लेते हों।” इसके बाद अशोक गहलोत और अधीर रंजन चौधरी ने उनकी आलोचना की थी। अधीर रंजन यहां तक कहा था कि जिन्हें पार्टी नेतृत्व से समास्या है वो दूसरी पार्टी जॉइन कर लें या अलग पार्टी बना लें।

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