उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य चुनाव से पहले मुश्किलों में घिरते नजर आ रहे हैं। मौर्य को एक मकान पर अवैध कब्जा करवाने के मामले में आरोपी बनाया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस याचिका के आधार पर उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
कोर्ट ने साथ ही राज्य सरकार को भी याचिका पर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। ये याचिका विष्णु मूर्ति त्रिपाठी की ओर से दाखिल की गई। याचिका में कहा गया है कि इलाहाबाद के कालिंदीपुरम स्थित एक मकान को उसने राकेश गुप्ता और अंजना गुप्ता से खरीदा था।
लेकिन बाद में उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की शह पर याची के मकान को खाली करवा लिया गया और कुंती देवी नामक महिला को कब्जा दिलावा दिया गया। याची ने मकान की खरीद संबंधी दस्तावेज भी कोर्ट के समक्ष पेश किए।
विष्णु ने कोर्ट के समक्ष केशव प्रसाद मौर्य का लिखा एक पत्र भी प्रस्तुत किया है। ये पत्र मौर्य ने एसएसपी प्रयागराज को लिखा था। इस पत्र में याची के मकान पर कुंती देवी को कब्जा दिलवाकर अवगत करवाने को कहा गया है। अब मामले की अगली सुनवाई 10 जनवरी को होगी।

उल्लेखनीय है कि जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस ओम प्रकाश त्रिपाठी की खंडपीठ ने उप-मुख्यमंत्री को नोटिस जारी किया है। हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब मौर्य के खिलाफ फ्राड करने के आरोप लगे हैं। बीते अगस्त महीने में यूपी की एक अदालत ने मौर्या के खिलाफ कथित फर्जी डिग्री आरोपों की प्रारंभिक जांच का आदेश दिया थे।
दरअसल, फर्जी डिग्री मामले में पुलिस को जिन बिंदुओं पर तहकीकात करनी है उनमें पहला ये है कि क्या हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा डिप्टी सीएम को जारी मध्यमा द्वितीय वर्ष की डिग्री की प्रमाणिक है। वहीं, जांच का दूसरा बिंदु ये है कि क्या आरोपों के मुताबिक, कथित फर्जी प्रमाण पत्रों का चुनावी शपथ पत्रों में इस्तेमाल किया गया है या नहीं। इसके साथ ही कोर्ट ने डिप्टी सीएम पर पेट्रोल पंप हासिल करने के लिए हाईस्कूल के फर्जी प्रमाण पत्र के इस्तेमाल के आरोप की भी जांच का निर्देश दिया था।
उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या पर आरोप है कि उन्होंने इंडियन ऑयल का एक पेट्रोल पंप का लाइसेंस हासिल करने के लिए फर्जी सर्टिफिकेट इस्तेमाल किया। एसीजेएम कोर्ट ने यह आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रियंका श्रीवास्तव बनाम स्टेट ऑफ यूपी मामले में दिए गए फैसले के आधार पर दिया। 19 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस मामले में फैसला सुनाया था।
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