ढाका: अमूमन कम उम्र में ही किन्नरों को उनके परिवार से अलग कर दिया जाता है। उन्हें न तो कोई औपचारिक शिक्षा मिलती है और न समाज में इज्जत मिलती हौ जो एक आम आदमी को मिलता है। मजबूरन किन्नरों को भीखना मांगना पड़ता है या फिर वे सेक्स के पेशे में धकेल दिए जाते हैं।
लेकिन बांग्लादेश की राजधानी ढाका में किन्नर समुदाय के लिए एक अहम कदम उठाया गया है। यहां की एक तीन मंजिला इमारत की तीसरी मंजिल को किन्नर समुदाय के लोगों की इस्लामी शिक्षा के लिए खोला गया है।
यह देश का किन्नर समुदाय के लिए पहला मदरसा होगा। इस मदरसे के एक मौलवी अब्दुर्रहमान आजाद कहते हैं, “जो लोग ट्रांसजेंडर होते हैं वे भी इंसान होते हैं, उन्हें भी शिक्षा का अधिकार है। उन्हें भी सम्मानजनक जिंदगी जीने का अधिकार है।”
उन्होंने बताया कि यहां छात्रों को कुरान की तालीम दी जाएगी और इस्लाम के बुनियादी सिद्धांत बताए जाएंगे। इसके अलावा यहां बच्चों को बंगाली, अंग्रेजी, गणित के अलावा वोकेशनल ट्रेनिंग भी दी जाएगी।
अब्दुर्रहमान ने बताया, “हमारी योजना है कि हम उनके लिए देशभर में स्कूल खोले ताकि वे शिक्षा से वंचित न रह पाएं। फिलहाल हम 100 छात्रों के साथ इसकी शुरुआत कर रहे हैं। वे इस्लामी शिक्षा के साथ साथ वोकेशनल विषयों पर शिक्षा पाएंगे। हम उन्हें मानव संसाधन में बदलना चाहते हैं।”
सरकारी अनुमान के मुताबिक, बांग्लादेश में 10,000 किन्नर रहते हैं। हालांकि, अधिकार समूहों का कहना है कि किन्नर समूह की आबादी 15 लाख से भी अधिक हो सकती है। बांग्लादेश सरकार ने 2013 में ऐतिहासिक फैसले में किन्नरों को तीसरे लिंग की मान्यता दी थी, लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नहीं आया है। बता दें कि समलैंगिक सेक्स यहां गैर-कानूनी है।
30 वर्षीय सोना सोलानी कहती हैं, “मैं बहुत उत्साहित हूं। यह स्कूल आशा की किरण है। हमें हमेशा से नीचा देखा गया है। हमें कोई स्वीकार नहीं करता है, हमारे घर पर भी हमें स्वीकार नहीं किया जाता है।” सोलानी बात करते हुए भावुक हो जाती हैं और उनका गला रुंध जाता है।
सोलानी कहती हैं, “मैं समाज को यह दिखाना चाहती हूं कि हम बराबरी के साथ खड़े हो सकते हैं और यह साबित कर सकते हैं कि हम सिर्फ भीख मांगने तक सीमित नहीं हैं। हमारी जिंदगी इससे भी कहीं अधिक बड़ी है।”
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