कांग्रेस भारी अंतर्कलह से गुजर रही है। पंजाब राजनीतिक तनाव के बीच नवजोत सिंह सिद्धू ने मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी करने की हामी भर दी है। दरअसल, आलाकमान का आदेश था कि स्थानीय नेतृत्व सिद्धू से अपने रिश्ते सामान्य करें। अब चन्नी के बातचीत का निमंत्रण स्वीकारने के दो बड़े मायने निकाले जा रहे हैं। पहला नाम परगट सिंह और दूसरा पार्टी हाईकमान है।
बीते दिनों खबर आई थी कि अपने समर्थकों की अपील के बाद भी सिद्धू सीएम चन्नी से राजी नहीं हो रहे हैं। उनके करीबी परगट सिंह ने कहा कि इस्तीफा देने के फैसले ने उन लोगों को बीच में छोड़ दिया है जिन्होंने उनका समर्थन किया था।
सिद्धू खेमे के एक नेता ने कहा, “दोनों के बीच यह एक भावनात्मक मुलाकात थी, जिसमें परगट ने सिद्धू को साफ तौर पर बता दिया कि वो अपने समर्थक विधायकों को बीच में नहीं छोड़ सकते।”
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गुरुवार को सिद्धू ने जानकारी दी कि वे पंजाब भवन में दोपहर 3 बजे चन्नी के साथ मुद्दे पर चर्चा करना चाहते हैं। चन्नी ने बुधवार को पीसीसी प्रमुख को बातचीत के जरिए मामला सुलझाने की पेशकश की थी।
ऊपर दिए दो वजहों के अलावा एक और बात जिसका सिद्धू को अहसास हुआ है कि कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने उनसे कोई संपर्क नहीं किया। पार्टी के एक नेता ने बताया, “धीरे-धीरे उन्हें यह अहसास होने लगा है कि वरिष्ठ नेता उन्हें कम करने की कोशिश कर रहे हैं और ऐसे में सीएम की बातचीत की पेशकश स्वीकार कर लेना समझदारी है।”
हालांकि, दूसरी तरफ पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कहा है कि अब बहुत हो गया है। सीएम की सत्ता को कमजोर करने की कोशिशों पर रोक लगाएं। उन्होंने सिद्धू की नाराजगी को लेकर भी ट्वीट के जरिए अपनी बातें कही है।
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जाखड़ ने कहा कि एजी और डीजीपी के चयन पर लगाए जा रहे आरोप वास्तव में उनकी ईमानदारी/क्षमताओं पर सवाल उठा रहे हैं। यह कदम पीछे खींचने का समय है, जिससे हवा (सियासी रुख) को साफ किया जा सके।
सुनील जाखड़ इससे पहले भी पार्टी के खिलाफ बयान दे चुके हैं। कैप्टन अमरिंदर के इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस ने दलित कार्ड खेलते हुए आगामी चुनाव के मद्देनजर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया है। इसके बाद प्रदेश प्रभारी हरीश रावत ने ऐलान किया था कि अगला विधानसभा चुनाव पार्टी प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में लड़ेगी। जाखड़ ने इस बयान पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था कि इससे मुख्यमंत्री की शक्ति को कमजोर किया जा रहा है।
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