हमारी बहुभाषिक और बहुसांस्कृतिक भारतीय राष्ट्र में अन्तर्लयित ‘राम’ एक ऐसा शब्द है जिसे अपने-अपने ढंग से समझने की अनेक कोशिशें हुई हैं और उन कोशिशों में सबके अपने-अपने ‘राम’ हैं। बाल्मीकि के अपने, भवभूति के अपने, तुलसीदास के अपने, गुप्त जी के अपने, निराला जी के अपने और न जाने कितने-कितनों के अपने-अपने ‘राम’...