पूरे विश्व में कव्वाली को कोने-कोने तक पहुंचाने वाले पाकिस्तान गायक नुसरत फतेह अली खान का साल 1997 में निधन हो गया था। कई हिंदी फिल्मों के लिए नुसरत साहब ने गाने गाए थे। उनकी आखिरी हिंदी फिल्म ‘कच्चे धागे’ थी। हालांकि ये फिल्म उनके निधन के बाद यानी साल 1999 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म के सभी गाने सुपरहिट साबित हुए थे। फिल्म में लीड रोल में अजय देवगन और सैफ अली खान, नम्रता शिरोडकर, मनीषा कोइराला लीड रोल में नजर आए थे।
अजय देवगन ने हाल ही में टीवी शो ‘इंडियन आइडल’ में नुसरत फतेह अली खान के आखिरी दिनों का किस्सा सुनाया था। अजय देवगन ने बताया था, “नुसरत साहब का आखिरी एल्बम कच्चे-धागे ही थी। वो पाकिस्तान से मुंबई आए थे और यही पांच सितारा होटल में रुके हुए थे। वो करीब एक महीने तक यही रहे थे और ऐसा शानदार म्यूजिक बनाकर दिया था। उस दौरान नुसरत साहब का वजन बहुत ज्यादा हो गया था।”
अजय आगे बताते हैं, “नुसरत साहब, आनंद बक्शी को कहते थे कि आप यहां आ जाइए और यही गाना बनाएंगे। क्योंकि उनका वजन बहुत ज्यादा था और वो गाड़ी में नहीं बैठ पाते थे। अब बक्शी साहब को लगा कि ये पाकिस्तान से आकर हमें ऑर्डर दे रहे हैं और इसका बहुत बड़ा ईगो है। बक्शी साहब गाना लिखकर भेजते थे तो नुसरत साहब रिजेक्ट कर देते थे। इधर से नुसरत साहब ट्यून भेजते थे तो बक्शी साहब रिजेक्ट कर देते थे।”

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अजय देवगन ने कहा, “15-20 दिनों तक ऐसा ही चला। एक दिन नुसरत साहब ने कहा कि मुझे उठाओ और लेकर चलो बक्शी साहब के यहां। नुसरत खान को 7-8 लोग उठाकर ले जाते थे। बक्शी जी पहली मंजिल पर रहते थे तो जब इतने लोग उन्हें उठाकर वहां पहुंचे तो वहां आनंद बक्शी ये सब देखकर हैरान रह गए। वो उनकी ये हालत देखकर रो पड़े। उन्होंने कहा कि मेरा इतना बकवास ईगो था। आप चलिए और मैं आपके साथ वहीं रहूंगा। फिर आप लोगों के सामने है जो भी गाने आए थे फिल्म के।”
दरअसल, नुसरत साहब का परिवार आजादी से पहले पंजाब के जालंधर में रहता था। पर बंटवारे के वक्त वे लोग पाकिस्तान चले गए और फैसलाबाद में आबाद हो गए। उनका परिवार का कव्वाली से काफी पुराना रिश्ता रहा है। उनका घराना करीब 600 साल से गायकी करता आ रहा है। बंटवारे के कुछ दिनों बाद ही नुसरत फतेह अली खान का जन्म फैसलाबाद में हुआ। उनके घर में कव्वाली का ही माहौल था।
उनके पिता फतेह अली खान, चाचा मुबारक अली खान और सलामत अली खान; सभी कव्वाली गाते थे। यही उनका खानदानी पेशा रहा था। बचपन से ही ऐसा माहौल होने के कारण नुसरत और उनके भाई फारुक फतेह अली खान को गाना, हारमोनियम बजाना और संगीत से जुड़ी कुछ दूसरी तालीम दी जाती रही। भले ही बच्चों का मन ना करता हो, लेकिन तालीम जरूर दी जाती थी।

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नुसरत फतेह अली खान के भाई फारुक फतेह अली खान ने एक इंटरव्यू में बताया था, “दोनों भाइयों को टॉफी का लालच लेकर धोबीघाट के पास ले जाते थे। वहां पर बैठकर ही राग, हारमोनियम और अन्य जानकारी दी गई। ये सिलसिला लंबे वक्त चलता रहा, लेकिन किसी का भी गाने में मन नहीं लगा।”
नुसरत के पिता फतेह अली खान खुद कव्वाल थे और लिखते भी थे। पर उनकी इच्छा थी कि उनका बेटा इंजीनियरिंग करें या फिर डॉक्टर बने। हालांकि, पारिवारिक परंपरा की वजह से अपने बेटों को संगीत और कव्वाली की जरूरी शिक्षा वो देना चाहते थे। लेकिन 1964 में फतेह अली खान की मौत हो गई, जिसके बाद खानदान के पेशे पर संकट आया। क्योंकि उस वक्त मुबारक अली खान-सलामत अली खान की उम्र भी काफी ज्यादा हो गई थी।
ऐसे हालात में नुसरत फतेह अली खान को ही ये जिम्मेदारी दी गई। जिस वक्त दस्तारबंदी यानी कव्वाली ग्रुप के प्रमुख का पद उन्हें देने की बात आई तो वहां मौजूद दूसरे लोगों ने कहा कि पहले लीडर (कव्वाली ग्रुप का) को गाकर सुनाना होगा, तभी पगड़ी पहनाई जाए। लेकिन तब नुसरत बिल्कुल नहीं गाते थे, ऐसे में बिना गाए ही दस्तारबंदी की गई। इसके बाद मौत के चालीस दिन पूरे होने पर नुसरत फतेह अली खान ने पहली बार कव्वाली गाई, उसके बाद उन्होंने धार्मिक स्थलों में गाना शुरू किया।

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नुसरत ने घर में लगातार अभ्यास किया और छोटे-छोटे कार्यक्रमों में गाने लगे। जब उनके चाचा मुबारक अली खान की मौत हुई, तो कव्वाली ग्रुप की पूरी जिम्मेदारी नुसरत फतेह अली खान के कंधे पर आ गई। जब उन्होंने ग्रुप की कमान संभाली तो उसके बाद अलग-अलग शहरों में जाकर गाने का सिलसिला शुरू हो गया, जैसा पहले भी होता आया। नुसरत के साथ उनके भाई फारुक फतेह अली खान भी जुड़े जो खुद भी गायक होने के साथ-साथ हारमोनियम भी बजाते थे।
इसी बीच नुसरत फतेह अली खान को विदेशों से शो की बुकिंग आनी शुरू हुईं और फिर 1985 में यूनाइटेड किंगडम के एक टूर ने सबकुछ बदल दिया। उसके बाद न सिर्फ यूरोप में बसे हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी लोग, बल्कि वहां के लोगों में भी कव्वाली के प्रति प्रेम उमड़ा। यूके से शुरू हुआ सिलसिला कनाडा, यूरोप के दूसरे देश और 1989 में अमेरिका तक पहुंचा। जहां से नुसरत फतेह अली खान को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल गई।
नुसरत साहब ने कई हॉलीवुड के म्यूजिक कंपोजर के साथ काम किया। माइकल ब्रूक के साथ बनाई गई एल्बम ‘नाइट सॉन्ग’ ने तो सारे रिकॉर्ड ही ध्वस्त कर दिए। बॉलीवुड उससे अछूता नहीं रह सका। उनका गाया गाना बार-बार बॉलीवुड ने इस्तेमाल भी किया। लेकिन बॉलीवुड के साथ जुड़ने और हिन्दुस्तान आने का भी एक अलग किस्सा रहा।
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नुसरत फतेह अली खान को सबसे पहले राजकपूर ने मुंबई आने को कहा, जिसमें उनके प्रोडक्शन की फिल्मों में गाना गाने की बात हुई। लेकिन नुसरत ने एल्बम कम्पोज करने से पहले ही एक शर्त रख दी कि कम-से-कम एक गाना लता मंगेशकर जरूर गाएंगी। जिसके बाद नुसरत फतेह अली खान और लता मंगेशकर ने ‘ऊपर खुदा आसमां नीचे’ गाने में साथ काम किया।
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