हमें अपने भीतर आध्यात्मिक गुणों का विकास करना होगा

हमें अपने भीतर आध्यात्मिक गुणों का विकास करना होगा

हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि मानव जीवन दुर्लभ है और हमें अपने जीवन को सुंदर से सुंदर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। शास्त्रों में मानव शरीर को बहुमूल्य कहा गया है और यहां तक कहा गया है कि 8400000 योनियों में सर्वाधिक श्रेष्ठ मानव योनि है और हमें अपने मानव होने का परिचय हर हाल में देना चाहिए। मानव होने के नाते हमारे जो चारित्रिक गुण हैं उनका विकास होना चाहिए। हमारे भीतर सत्य, दया, क्षमा, परोपकार आदि की भावना होनी चाहिए। यदि हम सच्चे अर्थों में अपने आप को मनुष्य कहलाना चाहते हैं तो हमें अपने भीतर आध्यात्मिक गुणों का विकास करना होगा।

हम इतिहास के पन्नों को उठाकर देखें तो स्पष्ट पता चलेगा कि संत और महापुरुषों की वाणी हमें सन्मार्ग की ओर ले जाने के लिए प्रेरित करते हैं। हमें विभिन्न अवतार की कथाओं को हृदयंगम करना होगा और मन में यह समझना भी होगा कि ईश्वर के अवतार हमें सन्मार्ग की ओर ले जाते हैं। भगवान का अवतार इसके लिए धरती पर होता है कि धरती पर अनाचार और अधर्म दूर हो सके। प्रत्येक अवतार की कथा उसे हम यही सीखते हैं कि हम अपने आप को भीतर से सदगुण संपन्न बनाएं। हमारे भीतर की मनुष्यता तभी बची रह सकती है जब हम अपने चिंतन और विचार को परिमार्जित करना सीखें। हमें पल-पल अपने आप को बदलना होगा और हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे भीतर अभी भी बहुत सारी कमियां हैं और उन कमियों को दूर करने के लिए हमें अच्छी संगति अपनाते हुए धर्म ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए और उन में जो अच्छी बातें बताई गई हैं, उन्हें अपने आचरण में उतारना चाहिए।

हम राम और कृष्ण के जीवन चरित्र को उठा कर देखें तो पाएंगे कि हम इनके अच्छे चारित्रिक गुणों से हम अपने भीतर बेहतर बदलाव ला सकते हैं। प्रायः हर एक मनुष्य को चाहिए कि अपने-अपने बच्चे को बाल्यावस्था से ही अच्छे गुणों की आदत डालना सिखलाएँ। एक अच्छे मनुष्य का बुनियादी गुण यह भी होता है कि वह एक दूसरे को अच्छे बनने में मदद करता है। यह अच्छाइयाँ हमारे चारों ओर फैली हुई हैं और हमें उन अच्छाइयों को आगे बढ़कर ग्रहण करने की आवश्यकता है। हमें अपने समय का महत्व समझना चाहिए और समय का पाबंद रहकर अपने जीवन का बेहतर विकास करना चाहिए। हम अपने जीवन में गांधीजी का उदाहरण ले सकते हैं जो एक-एक पल व्यर्थ में बर्बाद नहीं करते थे और उनके एक-एक क्षण का हिसाब रहा करता था। इस तरह हम देखते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में समय का महत्व समझा था और जीवन के बेहतर विकास के लिए समय का भी महत्व होता है और अच्छी संगति का भी।

-पंडित विनय कुमार (लेखक हिंदी भाषा के अध्यापक हैं। राजकीयकृत महेश उच्च माध्यमिक विद्यालय अनिसाबाद, पटना में कार्यरत। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में एक हजार से अधिक रचनाएँ अब तक प्रकाशित। ‘माँ’ कविता-संग्रह प्रकाशनाधीन। ‘राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का काव्य’ की पाण्डुलिपि प्रकाशन हेतु प्रेस में।)


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