ये सच है कि कोरोना काल में हर कोई किसी-न-किसी रूप में प्रभावित हुआ। कोई दुर्भाग्यवश कोरोना की चपेट में आया तो किसी के पास काम नहीं रहा तो किसी का करोबार ठप हुआ। अशांत मन में जहां भविष्य को लेकर असंख्य लोग अपनी ही उधेड़बुन में हैं, वहीं एक म्यूजिशयन ऐसे भी हैं, जिन्होंने संगीत से बैचेन मन को न सिर्फ राहत पहुंचाई वहीं इसकी सेवा करने की भी ठानी। उस्ताद अतहर हुसैन खान वह नाम है, जो वर्षों से संगीत की जादुई दुनिया में नई पौध को तैयार कर रहे हैं।
बकौल उस्ताद अतहर हुसैन खान,‘सचमुच हम जैसे कलाकारों के लिए यह समय बेहद निराशा भरा है। दुनिया में कहीं भी शो नहीं हो रहे थे। हम जैसे सभी आर्टिस्ट अपने रियाज तक सिमट कर रह गए। ऐसे में मैंने स्वयं एक प्लान तैयार किय। विचार किया कि ऑनलाइन और अब ऑफलाइन बच्चों को संगीत का तोहफा रोचक ढंग से कैसा दिया जाए।
उस्ताद अतहर खान के घर में प्रवेश करते ही अहसास खुदबखुद हो जाता है कि आप एक म्यूजिशयन के घर आए हैं। दिल्ली के लक्ष्मी नगर घर से ही इन दिनों इनकी म्यूजिक क्लासेज चलती हैं। देश-विदेश से लोग इनसे संगीत सीख रहे हैं। उस्ताद कहते हैं कि बच्चों को संगीत सीखना एक बड़ी चुनौती होती है। उनकी चंचलता को मदे्दनजर रखते हुए कोमलता से उन्हें शिक्षा देनी होती है। इनके तीन सुपुत्र भी संगीत में ही हैं। गायन, बांसुरी, तबला, हरमोनियम आदि ऐसा कोई इंस्ट्रूमेंट नहीं, जो यहां नहीं सिखाया जाता।
उस्ताद खान कहते हैं हम बच्चों को संगीत का पूरा माहौल देते हैं। बड़े तो संगीत कहीं से भी कभी सीख सकते हैं, मगर संगीत में रुचि रखने वाले बच्चों के लिए इससे बेहतर समय नहीं हो सकता। स्टडी की ऑनलाइन क्लास होने के कारण समय अधिक है। और संयोग से बड़े शोज फिलहाल बंद होने कारण हमारे पास भी पर्याप्त समय था। मैंने सोचा क्यों नहीं इस समय को नन्हे मुन्नों को उनकी रुचि के अनुसार संगीत सिखाया जाए। पहले एक दो बच्चों से शुरुआत हुई और अब हमारे हर बैच भरे हुए हैं। सच कहूं तो मुझे इतनी खुशी इससे पहले कभी नहीं हुई। मैं जब मासूम मुस्कारते हुए चेहरों को सुर लगाते हुए देखता हों तो हर तनाव खुदबखुद हट जाता है। ये नई पीढ़ी बहुत होनहार है, इन्हें बस सही गुरु और मार्गदर्शन की जरूरत है।
उस्ताद खान बेहद कम यानी सात साल की उम्र से संगीत सीख रहे हैं और अब तक विदेशों में सैकड़ों शोज कर चुके हैं। ये तबले के उस्ताद तो हैं, मगर इनकी अन्य इंस्ट्रूमेंट पर भी बराबर की पकड़ है। ये गजल भी गाते हैं, भजन, सूफी, बॉलीवुड, पंजाबी, बंगााली, गढ़वाली तमाम भाषााओं में स्टेज शो कर चुके हैं। बहुत से सम्मानों से इन्हें नवाजा जा चुका है। देश के बड़े न्यूज चैनल आजतक के लिए उसकी सिग्नेचर तबला धुन पेश करने वाले कलाकार भी उस्ताद अतहर हुसैन खान ही हैं।
बातचीत के दौरान इन्होंने बताया कि बीते दो साल से पहले तो वे इतने व्यस्त रहते थे कि साल के नौ महीने कभी कनाडा, अमेरिका, यूके, यूरोपियन यूनियन, यूएई, सिंगापुर, मलेशिया आदि ही शोज में व्यस्त रहे हैं। वे कहते हैं मुझे है कि इस समय ने मुझे एक ऐसा मौका दिया कि आज ये नन्हें शिष्य म्यूजिक में आगे बढ़ रहे हैं। उनकी संगीत में रुचि में इजाफा हो रहा है। वे बेहद खुशी जाहिर करते हैं कि उन्हें पंडित जसराज, उस्ताद गुलाम अली साहब की भी सराहना मिली है और दिल खोलकर तारीफ भी की है। उस्ताद खान का संबंध मशहूर अजराड़ा धराने से है। गीत संगीत इनके रग-रग में बसा हुआ। पिछली पांच पीढ़िया गीत संगीत से जीवनयापन कर रही हैं।
–पंकज घिल्डियाल (लेखक पेशे से पत्रकार हैं और दिल्ली में कार्यरत है। कई लेख और रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। विचार उनके निजी हैं।)
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