आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानवाधिकार के लिए गम्भीर खतरा, जल्द लगे रोक: संयुक्त राष्ट्र

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानवाधिकार के लिए गम्भीर खतरा, जल्द लगे रोक: संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) यानी एआई को मानवता के लिए गम्भीर खतरा बताया है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की उन प्रणालियों की खरीद-बिक्री व इस्तेमाल पर स्वैच्छिक रोक लगाए जाने का आग्रह किया है, जिनसे मानवाधिकारों को गम्भीर जोखिम पैदा हो सकते हैं।

बुधवार को अपने एक वक्तव्य में यूएन एजेंसी की प्रमुख ने कहा कि स्वैच्छिक रोक को तब तक जारी रखना होगा जब तक पर्याप्त ऐहतियाती उपायों लागू नहीं कर लिए किए जाते हैं।

मिशेल बाशेलेट ने कहा, “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बेहतरी के लिए एक ताक़त हो सकती है, जिससे इस दौर की विशाल चुनौतियों पर कामयाबी हासिल करने में समाजों को मदद मिले।”

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मिशेल ने आगे कहा, “मगर, उनके इस्तेमाल से मानवाधिकारों पर होने वाले असर पर पर्याप्त ध्यान दिए बिना, एआई टेक्नॉलॉजी के नकारात्मक, यहाँ तक की विनाशनकारी प्रभाव भी हो सकते हैं।”

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने स्पष्ट किया कि एआई की जिन ऐप्लीकेशन्स को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों के तहत इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, उन पर पाबंदी लगा दी जानी चाहिए।

यूएम की नई रिपोर्ट

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानवाधिकार के लिए गम्भीर खतरा, जल्द लगे रोक: संयुक्त राष्ट्र

दरअसल, टेक्नॉलॉजी और मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने एक नई रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के मुताबिक, मानवाधिकारों के लिए जोखिम जितना बड़ा हो, एआई टेक्नॉलॉजी के इस्तेमाल के लिए क़ानूनी आवश्यकताएं भी उतनी ही सख्त होनी चाहिए।

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यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त के मुताबिक, “जोखिमों की समीक्षा करने और उनसे निपटने में चूँकि समय लग सकता है, इसलिए, देशों की सरकारों को सम्भावित उच्च जोखिम वाली टेक्नॉलॉजी पर स्वैच्छिक रोक लगानी चाहिए।”

रिपोर्ट में एआई टेक्नॉलॉजी के जरिए व्यक्तिगत जानकारी की रूपरेखा तैयार करने, स्वचालित निर्णय-निर्धारण और मशीन-लर्निंग सहित अन्य प्रणालियों के इस्तेमाल से, लोगों की निजता और अन्य अधिकारों के हनन कैसा असर पड़ रहा है; का विश्लेषण किया गया है।

रिपोर्ट में जिन मानवाधिकारों का विश्लेषण किया गया है उसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, आवाजाही की आजादी, शांतिपूर्ण सभा और अभिव्यक्ति की आज़ादी समेत दूसरा मानवाधिकार शामिल हैं।

एआई ऐप का इस्तेमाल

रिपोर्ट कहा गया है कि सदस्य देशों और व्यवसायों ने एआई ऐप के इस्तेमाल में जल्दबाज़ी दिखाई है और इसके लिए पहले ज़रूरी सावधानियों नहीं बरती गई हैं। रिपोर्ट में ऐसे अनेकों मामलों का हवाला दिया गया है, जिनमें लोगों के साथ न्यायपूर्ण ढंग से बर्ताव नहीं किया गया।

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साथ ही रिपोर्ट में बताया गया है कि एआई के दोषपूर्ण टेक्नॉलॉजी के चलते, उन्हें सामाजिक सुरक्षा के तहत मिलने वाले लाभों के दायरे से बाहर कर दिया गया। या फिर चेहरे की शिनाख़्त करने वाली टेक्नॉलॉजी के ग़लत इस्तेमाल कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

मानवाधिकार प्रमुख मिशेल ने सचेत किया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित प्रणालियाँ, जीवन के लगभग हर पहलू से जुड़ी हुई हैं। जिनका इस्तेमाल सार्वजनिक सेवाओं के लाभार्थियों की शिनाख़्त करने, रोज़गार के लिए चिंहित करने के अलावा दूसरे प्रक्रियाओं में किया जाता है।

यूएन रिपोर्ट में तफ्सील से बताया गया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रणालियाँ, विशाल डेटा सेट पर निर्भर हैं, और व्यक्तियों से जुड़ी जानकारियों को अनेक प्रकार से एकत्र, साझा और उनका संयोजन व विश्लेषण किया जाता है। इस प्रक्रिया में अक्सर पारदर्शिता का अभाव होता है।

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संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि एआई प्रणालियों को निर्देशित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला डेटा, दोषपूर्ण, भेदभावपूर्ण, चलन से बाहर या अप्रासंगिक हो सकता है।

इसके अलावा डेटा को लम्बे समय तक रखे जाने में भी जोखिम शामिल हैं। चूँकि भविष्य में उसका ऐसे रूपों में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिनके बारे में फिलहाल ज्यादा जानकारी नहीं है। यह आगे चलकर और अधिक खतरनाक हो सकता है।

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जवाबदेही का अभाव

मिशेल बाशेलेट ने कहा कि राज्यसत्ता, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और टेक्नॉलॉजी कम्पनियों के लिए बायोमैट्रिक टेक्नॉलॉजी, एक बड़े समाधान के रूप में उभर रही हैं। हालांकि, उन्होंने आगाह किया कि यह एक ऐसा मामला है जहाँ मानवाधिकार आधारित मार्गदर्शन की कहीं अधिक आवश्यकता है।

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उन्होंने कहा कि एआई टेक्नॉलॉजी में चेहरे की शिनाख़्त करने वाला सॉफ्टवेयर भी शामिल है, जिनका इस्तेमाल वास्तविक समय में, लोगों की पहचान करने और उनकी असीमित स्तर पर निगरानी किए जाने में किया जाता है।

रिपोर्ट में कहा गया कि इस टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल सार्वजनिक स्थलों पर करने से रोकना चाहिए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि एआई प्रणालियों को, ठोस निजता व डेटा संरक्षण मानकों का अनुपालन किया जाए।


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