अफगानिस्तान के कई बड़े शहरों पर तालिबान ने फिर से कब्जा कर लिया है। बताया जा रहा है कि तालिबान ने पिछले कुछ दिनों में बड़े सैन्य अभियान चलाए हैं और वह कई प्रांतों की राजधानियों के करीब पहुंच गया है। अमेरिका और नाटो सेनाओं की अफगानिस्तान से जारी वापसी के बीच ये खबर हैरान करने वाला है। देश के कई हिस्सों को कब्जाने के लिए तालिबान ने हमले तेज कर दिए हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी देते हुए कहा है कि कई राज्यों की राजधानियों पर जल्दी ही तालिबान का दोबारा कब्जा हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि इससे हाल के दिनों में शांति स्थापना को लेकर हुई राजनीतिक प्रगति और लोगों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। माना जा रहा है कि नाटो सेनाओं की 11 सितंबर तक अफगानिस्तान छोड़ सकती हैं।
ऐसे में देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय सेना के हाथ में आ जाएगी। खबरें आ रही हैं कि पिछले कुछ दिनों में तालिबान ने कई इलाकों में बड़े हमले किए हैं। अफगान अधिकारियों ने जानकारी दी है कि उत्तरी हिस्से में तालिबान तेजी से आगे बढ़ रहा है और अपने पारपंरिक गढ़ से काफी बाहर निकल आया है।
मंगलवार को तालिबान लड़ाकों ने शीर खान बंदर पर कब्जा कर लिया, जो ताजिकिस्तान के साथ लगती सीमा है। यह अफगानिस्तान का एक अहम शहर है। इससे पहले तालिबान उत्तरी प्रांत बगलान के नाहरीन और बगलान-ए-मरकजी जिलों को भी कब्जे में ले चुका है।
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत डेबरा ल्योन्स बताया कि मई से अब तक देश के 370 में से 50 जिलों पर तालिबान कब्जा कर चुका है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जानकारी देते हुए कहा, “जो जिले उन्होंने कब्जाए हैं वे प्रांतों की राजधानियों के इर्द-गिर्द हैं। इससे संकेत मिलता है कि तालिबान रणनीतिक जगह बना रहा है और विदेशी फौजों के पूरी तरह चले जाने के बाद इन राजधानियों पर कब्जा करने की कोशिश कर सकता है।”
उन्होंने आगे कहा कि तालिबान ने जिन हिस्सों पर हाल ही में कब्जा किए हैं वे लड़ाई के दम पर किए हैं और उसके इस तरह के बड़े सैन्य अभियान एक त्रासद बात होगी। ल्योन्स ने कहा, “अफगानिस्तान में लड़ाई बढ़ने का मतलब नजदीक और दूर के बहुत से देशों की सुरक्षा को खतरा है।”
हालांकि, अमेरिका का कहना है कि देश से उसकी सेनाओं के चले जाने के बाद भी वह तालिबान पर निगाह रखेगा और आतंकवाद विरोधी हमले करता रहेगा। अमेरिका अधिकारियों ने कहा कि तालिबान पर सूचनाएं जुटाना और नजदीकी देशों से इलाके पर सैन्य हमले जारी रहेंगे।
लेकिन सच्चाई ये है कि अमेरिका को फिर से इलाके में नया सैन्य ठिकाना बनाना एक मुश्किल काम साबित हो सकता है। क्योंकि इससे रूस और चीन के साथ तनाव बढ़ सकता है, जो मध्य एशिया में अहम भूमिका रखते हैं।
इसके अलावा, अफगानिस्तान के कुछ पड़ोसी देश, जैसे- पाकिस्तान पहले ही अमेरिकी सेनाओं को जगह देने की बात से इनकार कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी दूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने कहा कि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता की प्रक्रिया में योगदान के लिए उनका देश आर्थिक मदद और कूटनीति का भी इस्तेमाल करेगा।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने 2001 में 11 सितंबर के आतंकवादी हमले के बाद अफगानिस्तान पर हमला किया था और तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिया था। दो दशक बाद तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के बीच समझौते के लिए बातचीत चल रही है, जबकि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की सेनाएं वापसी की तैयारी कर रही हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हाल ही में कहा था कि वह 11 सितंबर से पहले हर हाल में अफगानिस्तान से सेनाओं की वापसी चाहते हैं। वापसी की प्रक्रिया पर चर्चा के लिए वह इसी हफ्ते अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी से मिलने वाले हैं।
कई मानवाधिकार कार्यकर्ता चिंतित है कि तालिबान अगर वापस अफगानिस्तान की सत्ता हासिल कर लेता है तो क्षेत्र में महिलाओं के अधिकारों की दिशा में हुई प्रगति खतरे में पड़ सकती है। हालांकि, कुछ लोगों का ये भी मानना है कि तालिबान अपने दौर में लौटना नहीं चाहेगा।
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