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अत्याचार की गहरी पीड़ा और प्रतिशोध की चेतना का फिल्मांकन है ‘सूत्रधार’
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अत्याचार की गहरी पीड़ा और प्रतिशोध की चेतना का फिल्मांकन है ‘सूत्रधार’

सामंतवाद ने ग्रामीण लोकजीवन को अभी हाल तक इस कदर जकड़ा था कि छोटे-छोटे ज़मीदार ही वहां के ‘भाग्य-विधाता’ हुआ करते थे। उनके क्षेत्र की तमाम गतिविधियां जैसे उनकी मर्जी से चलती थीं। आम जन का कदम-कदम पर अपमान सामान्य बात थी। उस पर भी वे ‘प्रजा हितैषी’ होने का दम भरते थे। दूसरी तरफ...