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छुआछूत और जातिवाद पर आधारित बिमल रॉय की फिल्म ‘सुजाता’ क्यों देखनी चाहिए
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छुआछूत और जातिवाद पर आधारित बिमल रॉय की फिल्म ‘सुजाता’ क्यों देखनी चाहिए

अश्पृश्यता मानव समाज के लिए कलंक रही है। किसी व्यक्ति को जन्म के आधार पर हीन अथवा कमतर समझना जितना अमानवीय है, ऐसी व्यवस्था के औचित्य के लिए तर्क गढ़ना उतना ही कुत्सित। सामंती समाजों के दौर में इसका चेहरा अत्यंत घिनौना था; औद्योगिक पूंजीवादी दौर में इसमें उल्लेखनीय कमी अवश्य आई, मगर इसमें संविधान...

फिल्म ‘बंदिनी’ : मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार, हूँ इस पार
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फिल्म ‘बंदिनी’ : मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार, हूँ इस पार

मानवता और प्रेम मनुष्य मात्र की सहजवृत्ति है, मगर मातृत्व की अतिरिक्त क्षमता के कारण और उससे जनित जैविक-मनोवैज्ञानिक कारणों से भी स्त्रियों में ममत्व और करुणाशीलता के अधिक उदाहरण देखे जाते हैं। निष्ठुर, स्त्री या पुरूष कोई भी हो सकता है मगर फिर भी स्त्रियों में इसके उदाहरण अपेक्षाकृत कम मिलते हैं। “स्त्री पैदा...