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बिनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की कविता: तेरी भोंसड़ी के
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बिनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की कविता: तेरी भोंसड़ी के

जी साहेब, जोहारसच कहता हूंमेरे दादा ने बताया था कियहाँ बहुत घनघोर जंगल हुआ करता थाआज से दुगुनाचारों ओर पहाड़ियों से घिरातब हमारे पूर्वजों नेजंगल के बीचों-बीचझाड़-झंझाड़-पुटुस को साफ किया थारहने लायक झोपड़ी बनाया थाजमीन को भी उपजाऊ बनाया था… हाँ साहेब,आज भी पूर्वजों के पसीने की गंध फैली हुई हैहर घर मेंआंगन मेंखेतों मेंखलिहानों...