RSS की पत्रिका ने नेशन बिल्डर इंफोसिस के मालिक नारायण मूर्ति को बताया ‘एंटी-नेशनल’

RSS की पत्रिका ने नेशन बिल्डर इंफोसिस के मालिक नारायण मूर्ति को बताया ‘एंटी-नेशनल’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ में मशहूर आईटी कंपनी इंफोसिस के मालिक को ‘देशविरोधी’ बताए जाने पर बवाल शुरू हो गया है। हालांकि, आरएसएस ने उस लेख से खुद को अलग कर लिया है।

दरअसल, पांचजन्य के हालिया संस्करण में इंफोसिस पर चार पन्नों की कवर स्टोरी पब्लिश किया गया है जिसमें इंफोसिस पर कई तरह के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। हालांकि, लेख में कहा गया कि ‘आरोप साबित करने के लिए साक्ष्य नहीं हैं।’

लेख में सवाल पूछा गया है- क्या देश विरोधी ताकतें इंफोसिस के जरिए भारत के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं? पांचजन्य के लेख में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि इंफोसिस पर अतीत में ‘नक्सलियों, वामपंथियों और टुकड़े-टुकड़े गैंग’ की मदद करने के आरोप लग चुके हैं।

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संघ की सफाई

हालांकि, लेख में इस बात को साफ कबूला गया है कि कि उनके पास इन आरोपों को साबित करने के लिए साक्ष्य नहीं है। अब साव उठता है कि ऐसे गंभीर आरोप बिना साक्ष्य के कैसे लिखे गए हैं वह भी देश की उस कंपनी के खिलाफ जिसने देश निर्माण में अहम रोल अदा किया है।

RSS की पत्रिका ने नेशन बिल्डर इंफोसिस के मालिक नारायण मूर्ति को बताया 'एंटी-नेशनल'

पत्रिका ने अपने लेख में इनकम टैक्स भरने के लिए इंफोसिस की ओर से बनाई नई सरकारी वेबसाइट में तकनीकी दिक्कत आने पर भी सवाल उठाए गए हैं। वहीं, दूसरी तरफ विवाद बढ़ने के बाद आरएसएस ने खुद को अलग कर लिया है। जब लोगों ने पूछा कि क्या संघ लेख में जाहिर किए गए विचारों से सहमत है?

इसके जवाब में आरएसएस के प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने रविवार को ट्वीट कर कहा कि पांचजन्य’ संघ का मुखपत्र नहीं है। उन्होंने लिखा, “पांचजन्य आरएसएस का मुखपत्र नहीं है और इस लेख में जाहिर किए विचारों को आरएसस से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। ये हमारे संगठन के नहीं बल्कि लेखक के विचार हैं।”

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इतना ही नहीं, आरएसएस के प्रवक्ता ने पत्रिका के विचारों से उलट इंफोसिस की तारीफ की है। एक और ट्वीट में आंबेकर ने लिखा है, “एक भारतीय कंपनी के तौर पर इंफोसिस ने देश की उन्नति में अहम योगदान किया है। हो सकता है कि इंफोसिस की मदद से चलने वाले एक पोर्टल में कुछ दिक्कतें आई हों लेकिन पांचजन्य में इस संदर्भ में छपा यह लेख किसी एक व्यक्ति या लेखक के विचार भर हैं।”

पांचजन्य स्टोरी पर अडिग

उधर, पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने साफ तौर पर कहा है कि वे अपनी कवर स्टोरी पर अडिग हैं। उन्होंने कहा, “पांच सितंबर के पांचजन्य संस्करण पर काफी हंगामा हो रहा है। यह कवर स्टोरी सबको पढ़नी चाहिए।”

ट्वीट कर उन्होंने कहा, “पांचजन्य अपनी रिपोर्ट को लेकर अडिग है। अगर इंफोसिस को किसी भी तरह की आपत्ति है तो उसे कंपनी के हित में इन तथ्यों की और गहराई से पड़ताल करके मुद्दे का दूसरा पहलू पेश करने के लिए कहना चाहिए।”

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हितेश शंकर ने आगे लिखा, “कुछ लोग इस संदर्भ में निजी स्वार्थ के लिए आरएसएस का नाम ले रहे हैं। याद रखिए कि यह रिपोर्ट संघ से सम्बन्धित नहीं है। यह इंफोसिस के बारे में है। यह तथ्यों और कंपनी की अकुशलता से जुड़ी है।”

पांचजन्य ने अपने इंफोसिस पर लिखे गए कवर स्टोरी को #इंफोसिस के साथ शीर्षक दिया गया है- ‘साख और आघात’। लेख में कहा गया है कि इंफोसिस के एचआर विभाग में मार्क्सवादियों का वर्चस्व है। साथ ही उसमें इंफोसिस पर ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया गया है। साथ में पूछा गया है कि क्या कंपनी विदेशी क्लाइंट्स को भी ऐसी खराब सेवा दे सकती है?

पत्रिका ने अपने कवर स्टोरी में इंफोसिस को ‘ऊँची दुकान फीका पकवान’ और ‘संदिग्ध चरित्र वाली कंपनी’ बताया है। सवाल खड़े करते हुए पूछा गया है कि क्या इंफोसिस ने जानबूझकर अराजक स्थिति पैदा करने की कोशिश की?

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देश विरोधी फंडिंग का आरोप

साथ ही लेख के जरिए कंपनी पर देश विरोधी फंडिंग का आरोप भी लगाया गया है। कवर स्टोरी में कहा गया है कि कंपनी को तीन महत्वपूर्ण सरकारी वेबसाइटों को संभालने का जिम्मा दिया गया और तीनों में गड़बड़ी आई। टैक्स रिर्टन के लिए वेबसाइट से पहले इंफोसिस को जीएसटी फाइल करने और कंपनी मामलों की वेबसाइट की जिम्मेदारी भी दी गई थी।

कवर स्टोरी में इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति पर सीधा निशाना साधते हुए साफ कहा गया है कि कंपनी के मालिक का वर्तमान सत्ताधारी विचारधारा के प्रति विरोध किसी से छिपा नहीं है। लिखा में आरोप लगाते हुए कहा गया है कि इंफोसिस अपने महत्वपूर्ण पदों पर एक विशेष विचाराधारा के लोगों को बिठाती है। इनमें अधिकांश बंगाल के मार्क्सवादी हैं।

साथ में लिखा गया है कि ऐसी कंपनी अगर भारत सरकार के महत्वपूर्ण ठेके लेगी तो क्या उसमें चीन और आईएसआई के प्रभाव की आशंका नहीं रहेगी? विपक्षी दलों निशाना साधते हुए लिखा गया है, “लोग पूछ रहे हैं कि कहीं कांग्रेस के इशारे पर ही तो कुछ निजी कंपनियां अव्यवस्था फैलाने की कोशिश नहीं कर रही हैं? इंफोसिस के मालिकों में से एक नंदन नीलेकणि कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं।”

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इनकम टैक्स पोर्टल

दरअसल, पूरा मामला ये है कि पिछले महीने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इंफोसिस के सीआईओ सलिल पारेख से एक मुलाकात में इनकम टैक्स भरने के लिए बने पोर्टल में लगातार आने वाली तकनीकी समस्या को लेकर गहरी निराशा जताई थी। इंफोसिस ने ही इस नई वेबसाइट को बनाई थी। वित्तमंत्री ने कंपनी के सीईओ को सभी तकनीकी गड़बड़ियां दुरुस्त करने के लिए 15 सितंबर तक का वक्त दिया था।

इनकम टैक्स रिर्टन की यह वेबसाइट लगातार दो दिन बंद रही थी जिसके बाद इंफोसिस के सीईओ को तलब किया गया था। वित्तमंत्री सीतारमण ने कहा था कि पहले तो यह वेबसाइट देरी से बनकर तैयार हुई। और तैयार भी हुई तो सरकार और लोगों को इससे जुड़ी परेशानियों का लगातार सामना करना पड़ रहा है।

सलिल पारेख से वित्तमंत्री ने करदाताओं को ‘लगातार होने वाली परेशानियों’ की वजह पूछी थी। उल्लेखनीय है कि नारायण मूर्ति ने साल 2019 में बिना किसी राजनीतिक दल का नाम लेते हुए कहा था कि ‘आस्था की स्वतंत्रता’ और ‘डर से स्वतंत्रता’ के बिना कोई भी देश आर्थिक प्रगति नहीं कर सकता। उनके बयान को कई लोगों द्वारा बीजेपी के विरोध से जोड़कर देखा गया था।


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