अब यूक्रेन में लुहान्सक और दोनेत्स्क को स्वतंत्र घोषित करने बाद क्या होने वाला है?

अब यूक्रेन में लुहान्सक और दोनेत्स्क को स्वतंत्र घोषित करने बाद क्या होने वाला है?

रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन में सेना भेजने का आदेश दिया है। यह फैसला सोमवार को अलगाववादी प्रांतों लुहान्सक और दोनेत्स्क को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने के बाद सामने आया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने अपने रक्षा मंत्रालय को आदेश दिया है कि पूर्वी यूक्रेन के उन दो क्षेत्रों में सेना भेजे, जिन्हें रूस ने स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में मान्यता दी है। सोमवार को ही रूस ने इन दो क्षेत्रों की स्वतंत्रता को मान्यता दी थी।

पुतिन के इस फैसले की अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसा देशों ने निंदा की है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक शुरू हो चुकी है। माना जा रहा है कि अब रूसी सेनाएं यूक्रेन के इन अलगाववादी क्षेत्रों में घुसकर शांति कायम करने का काम करेंगी। रूस के इस फैसले से यूक्रेन-रूस के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। रूसी सरकार ने कहा कि पुतिन ने सेना को पूर्वी यूक्रेन में शांति बनाए रखने का आदेश दिया है। आदेश में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि सेना की तैनाती कब से शुरू होगी लेकिन रूस के इस कदम ने तनाव बढ़ा दिया है और पश्चिमी देशों ने इसकी आलोचना की है।

दरअसल, रूस ने सोमवार को ही पूर्वी यूक्रेन के दो क्षेत्रों की मान्यता का आदेश जारी किया था। पुतिन ने इस आदेश पर हस्ताक्षर किए जिसमें कहा गया है कि रूस इन दो क्षेत्रों, डोनेस्क पीपल्स रिपब्लिक और लुहांस्क पीपल्स रिपब्लिक की आजादी को मान्यता देता है। लुहांस्क और डोनेस्क यूक्रेन के प्रांत हैं, जिन पर रूस-समर्थक अलगाववादी दावा करते हैं। हालांकि, इनके कुछ हिस्सों पर ही अलगाववादियों का कब्जा है। रूस के आदेश से यह स्पष्ट नहीं है कि रूसी सेनाएं सिर्फ इन कब्जे वाले क्षेत्रों में जाएंगी या फिर पूरे प्रांतों को अपने कब्जे में लेने के लिए आगे बढ़ेंगी।

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यूक्रेन के राष्ट्रपति का बयान

उधर, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की ने कहा है कि वह अपनी जमीन नहीं देंगे। उन्होंने कहा, “रूस ने शांति को नुकसान पहुंचाया है लेकिन हम अपनी जमीन नहीं देंगे।” अमेरिका ने रूस की दो क्षेत्रों को मान्यता देने के कदम की आलोचना की है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की से फोन पर बातचीत में रूस द्वारा दो प्रांतों की आजादी को मान्यता देने की आलोचना की। एक दिन पहले ही पुतिन और बाइडेन ने मिलने पर सहमति जताई थी।

अब यूक्रेन में लुहान्सक और दोनेत्स्क को स्वतंत्र घोषित करने बाद क्या होने वाला है?

व्हाइट हाउस ने अपने जारी बयान में कहा है कि बाइडेन ने जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों से भी बातचीत की है ताकि एक साझा जवाब दिया जा सके। इस बारे में संयुक्त राष्ट्र की एक आपातकालीन बैठक होने की संभावना है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा कि रूस द्वारा दो ‘अलग गणतंत्रों’ को मान्यता देने का त्वरित और ठोस जवाब दिया जाना चाहिए।

ब्लिंकेन ने कहा, “यह फैसला रूस के मिंस्क समझौते के प्रति उसकी प्रतिबद्धताओं का सरासर उल्लंघन है और उसकी कूटनीति में आस्था के दावे के भी उलट है।” उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ऐसे किसी राष्ट्र को मान्यता नहीं देनी चाहिए, जिसे धमकी या बलपूर्वक स्थापित किया गया हो। रूस के कदम की यूरोपीय नेताओं ने भी निंदा की है। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मिंस्क समझौते का उल्लंघन बताया।

अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन

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दोनों नेताओं के तरफ से जारी एक बयान में कहा गया है कि (यूरोपीय) संघ इस अवैध कार्रवाई में शामिल पक्षों के खिलाफ प्रतिबंधों से जवाब देगा। संघ यूक्रेन की आजादी, संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमाओं की क्षेत्रीय एकता के प्रति अपना अविचल समर्थन दोहराता है। जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने रूस के कदम को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन बताया।

उन्होंने कहा, “आज पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों के स्वयंभू गणतंत्रों को मान्यता देना सभी कूटनीतिक प्रयासों को बड़ा धक्का है। नॉर्मैंडी के स्वरूप में ऑर्गनाइजेशन फॉर सिक्यॉरिटी ऐंड को-ऑपरेशन ने यूरोप में सालों से जो कोशिशें की थीं, उन्हें जानबूझ कर बर्बाद कर दिया गया और समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों किया गया।” पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो के प्रमुख येन्स स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि यह कदम विवाद को हल करने की दिशा में किए गए प्रयासों पर पानी फेर देता है।

अब यूक्रेन में लुहान्सक और दोनेत्स्क को स्वतंत्र घोषित करने बाद क्या होने वाला है?

उन्होंने कहा, “मैं रूस द्वारा यूक्रेन में डोनेस्क/लुहांस्क को मान्यता की निंदा करता हूं। यह मिंस्क समझौते का उल्लंघन है और विवाद को हल करने के लिए की गईं कोशिशों को नाकाम करता है। नाटो यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय एकता का समर्थन करता है। हम मॉस्को से आग्रह करते हैं कि विवाद को भड़काना बंद करे और कूटनीतिक रास्ते चुने।”

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सुरक्षा परिषद की आपात बैठक

उल्लेखनीय है कि यूक्रेन और रूस में शांति बहाल करने के लिए 2014 में एक समझौता किया गया था। यह समझौता बेलारूस की राजधानी में हुआ था। रूसी समर्थकों ने यूक्रेन के क्रमिया पर हमला कर दिया था। कई दिनों के संघर्ष के बाद रूस ने क्रीमिया को अपने देश में मिला लिया। इस संघर्ष को शांत कराने के लिए मिन्स्क समझौता हुआ जिसमें कैदियों की रिहाई और हथियारों के वापसी की बात थी। हालांकि, दोनों देशों ने इस समझौते का पालन नहीं किया। इसके बाद मिन्स्क का दूसरा समझौता हुआ जिसमें 13 बिंदु शामिल थे।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक यूक्रेन ने कहा कि उनकी अंतरराष्ट्रीय सीमा अपरिवर्तनीय है। यूक्रेन ने कहा कि रूस का यह कदम वायरस की तरह है। यूक्रेन ने कहा कि इस तरह के काम हमेशा रूस ने ही शुरू किए हैं। यूक्रेन के दो अलगाववादी प्रांतों को स्वतंत्र घोषित करने के बाद अब रूस यहां मिलिटरी बेस बना सकता है। रूस की संसद के सामने व्लादिमीर पुतिन ने दस्तावेज पेश किए और कहा कि यह उनका अधिकार है कि वह दो प्रांतों में सैन्या छावनियां बनाएं।

भारत का रुख

इधर, भारत ने भी यूक्रेन संकट पर चल रही सुरक्षा परिषद की बैठक में मंगलवार को कहा है कि सभी पक्ष इस मामले पर संयम बरतें। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत यूक्रेन से संबंधित घटनाओं पर नजर रखे हुए है। उन्होंने कहा, “यूक्रेन की पूर्वी सीमा पर चल रहे घटनाक्रम और रूस की ओर से की गई घोषणा पर भारत की नज़र है। रूस और यूक्रेन की सीमा पर बढ़ रहा तनाव गहरी चिंता की बात है। इन घटनाओं से इलाके की शांति और सुरक्षा पर असर पड़ सकता है। तिरुमूर्ति ने भारत का पक्ष दोहराते हुए कहा कि सभी पक्ष इस मामले में संयम बरतें। उन्होंने कहा कि सभी देशों के सुरक्षा हितों और इस इलाक़े में दीर्घकालिक शांति और स्थिरता के लिए तनाव को तुरंत कम करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि इस मुद्दे का समाधान सिर्फ कूटनीतिक बातचीत से ही हो सकता है। उन्होंने आगे कहा कि हाल के दिनों में संबंधित पक्षों ने तनाव कम करने के लिए जो पहल की है उस पर सोचने की आवश्यकता है। उन्होंने मिन्स्क समझौते का भी जिक्र किया और कहा कि ये समझौता बातचीत के माध्यम से शांतिपूर्ण समाधान का आधार देता है। तिरुमूर्ति ने इस बात पर जोर दिया कि इस मामले में इसका जोखिम नहीं लिया जा सकता कि मामला सैन्य स्तर तक चला जाए। उन्होंने कहा कि तनाव को कम करने के लिए रचनात्मक कूटनीति की आवश्यकता है। देखा जाए तो भारत ने अपने बयान में पुतिन के फैसले की कहीं भी निंदा नहीं की है। माना जा रहा है कि भारत इस मामले में न्यूट्रल रहने की कोशिश करेगा किसी के साथ नहीं जाएगा।


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