आपकी नींद में लापरवाही है जानलेवा, जानिए कम सोने के नुकसान

आपकी नींद में लापरवाही है जानलेवा, जानिए कम सोने के नुकसान

अच्छी नींद शरीर और मन को खुशनुमा बनाती है। कहा जाता है कि आठ घंटे की नींद लेनी ही चाहिए। पूरी नींद लेने से कई बीमारियों से निजात मिलती है। लेकिन आजकल लोगों की दिनचर्या अलग होती जा रही है। खासतौर से युवा, नींद पूरी करने के प्रति काफी लापरवाह हैं। देर रात तक पार्टी, मूवी, फोन पर बात करना या चैट करना ये उनकी आदत में शामिल हो चुकी है। जिसका ख़ामियाजा उन्हें कई सारी बड़ी बीमारियों के रूप में भुगतना पड़ता है।

कुछ तो ऐसे भी हैं, जो आलस के चलते दिनभर बेड या सोफ़े पर पड़े रहते हैं, जिससे उन्हें रात में नींद नहीं आती है। और फिर ये आदत में शामिल हो जाती है। और बाद में नींद आना ही बंद हो जाता है। फिर उनके अंदर चिड़चिड़ापन हावी होने शुरू हो जाता है। युवाओं के लिए 6-8 घंटे की नींद बहुत जरूरी है वहीं वृद्धों के लिए 5-6 घंटे की नींद काफी होती है।

डॉक्टर आशीष तिवारी जोकि फ़िज़ीशियन हैं एसीएस हेल्थ ऐंड केयर वेलनेस के उन्होंने इस बारे में कहा “अनियमित और अनियंत्रित दिनचर्या के कारण अधिकांश युवा पूरी नींद नहीं लेते हैं। और इसमें भी नींद को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, जिनका बिना समय देखे धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है। फिर कारण चाहे पढ़ाई हो, चैटिंग हो या फिर इंटरनेट सर्फ़िंग। इन सबकी वजह से युवा देर रात तक जागते हैं, जिसकी वजह से दिमाग़ को सही समय पर नींद का सिग्नल नहीं मिल पाता है और स्लीप साइकिल प्रभावित होती है, जो धीरे-धीरे अनिद्रा यानी इन्सोम्निया बीमारी की वजह बन जाती है।”

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साल 2019 में अनिद्रा को लेकर वेकफ़िट नामक कंपनी ने ग्रेट इंडियन स्लीप स्कोर्ड नामक सर्वे किया था। वेकफ़िट द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, 90 फ़ीसदी लोग सोने से पहले मोबाइल, लैपटॉप और टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का प्रयोग करते हैं। लोग देर रात तक वेब सिरीज़, गेम, फ़िल्में, सोशल मीडिया आदि देखते रहते हैं। मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार यह एक तरह से स्क्रीन ऐडिक्शन है, जो लोगों को अपनी गिरफ़्त में लेते जा रहा है। सोने से ठीक पहले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के इस्तेमाल से ब्रेन ऐक्टिव हो जाता है और इससे नींद के लिए ज़रूरी मेलाटोनिन नामक रसायन प्रभावित होता है और ठीक से नींद नहीं आती है।

साइकियाट्रिस्ट राहुल घाड़गे का कहना है कि आज के समय में अनिद्रा के मुख्य कारणों में इलेक्टॉनिक गैजेट्स सबसे ऊपर हैं। ये सोचने की प्रक्रिया को बढ़ावा देते हैं, जिसकी वजह से आप सोते समय भी कुछ ना कुछ सोचते रहते हैं, जिससे आपकी नींद प्रभावित होती है। दूसरी परेशानी डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी। डिप्रेशन में व्यक्ति नकारात्मक बातें सोचता है और एंग्ज़ायटी में न हो सकने वाली बात या जिसके होने की मात्र एक फीसदी चांस रहता है ऐसी बातों में लगा रहता है।

स्लीप साइकिल का रिसेट हो जाना

डॉक्टर आशीष कहते आगे कहते हैं, “नींद की एक साइकल 90 से 100 मिनट की होती है और एक व्यक्ति को अपनी नींद पूरी करने के लिए से ऐसी चार से पांच साइकिल की ज़रूरत होती है। अगर रोजाना इसमें लापरवाही बरती जाती है, तो स्लीप साइकिल रिसेट होने लगती है और अनिद्रा की स्थित पैदा हो जाती है। अगर लंबे समय तक यही लापरवाही बरती जाती है, तो इन्सोम्निया के अलावा भी कई तरह की बीमारियां जकड़ लेती हैं।”

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आपकी नींद में लापरवाही है जानलेवा, जानिए कम सोने के नुकसान

अन्य वजह भी हैं जिसके कारण नींद नहीं आती जैसे-

  • तनाव
  • हर रोज लंबी यात्राएं
  • नाइट शिफ़्ट
  • देर रात भोजन करना
  • कुछ दवाओं का लगातार प्रयोग
  • दिमाग़ी बीमारी
  • अत्याधिक चाय-कॉफ़ी का सेवन
  • स्मोकिंग
  • शारीरिक गतिविधियों की कमी
  • बढ़ती उम्र, आदि।

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अनिद्रा के लक्षण

अनिद्रा की परेशानी है, या इन्सोम्निया लॉंग या फिर शॉर्ट टर्म की। ये पहचाना जरूरी है। शॉर्ट टर्म में यह कुछ हफ़्तों तक रहती है लेकिन लॉन्ग टर्म में महीनों या वर्षों तक बनी रहती है। और अगर आपको इन्सोम्निया की शिकायत है, तो आपको कई परेशानियों से जूझना पड़ेगा। जैसे-

  • रात के समय सोने में मुश्किल होगी।
  • नींद आने के बाद कुछ ही देर बाद नींद का खुल जाना।
  • सो कर उठने के बाद थकान महूसस होना।
  • चिड़चिड़ापन अधिक होना।
  • किसी काम में मन न लगना।
  • काम के दौरान चीजें भूलना या फिर गलतियां अधिक होना आदि।

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अन्य बीमारियां

  • नींद पूरी न होने के कारण इन्सोम्निया के अलावा भी कई बीमारियां घेरती हैं, जैसे-
  • पीरियॉडिक लिंब मूवमेंट डिसऑर्डर (नींद में समय-समय पर हाथ व पैरों का हिलना)
  • रेस्टलेस लेग सिंड्रोम (पैरों का बिना इच्छा या कारण के हिलना)
  • ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (रात में सोते समय ऊपरी श्वसन तंत्र में अवरोध्स के कारण बार-बार कुछ समय के लिए सांस का रुक जाना)
  • गैस्ट्रोइंस्टाइनल रिफ्लेक्स सिंड्रोम (पेट का अम्ल का गले या मुंह तक चढ़ जाना)
  • नार्कोलेप्सी (दिन में अचानक तेज़ी से ऊंघने लगना)
  • खर्राटे लेना
  • सांस लेने में दिक्कत
  • सोते समय पसीना आना
  • अधिक सपने देखना
  • नींद में चलना, आदि।

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दिल पर भी पड़ता है प्रभाव

कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि 35 साल से कम उम्र के लोगों में भी हार्ट अटैक की समस्या हो रही है, जो की चिंता का विषय है। यदि आप अपने नींद के साथ लापरवाही बरत रहे हैं, तो सावधान हो जाएं, क्योंकि इसका सीधा असर आपकी पूरी दिनचर्या पर पड़ेगा। आप दिनभर थका हुआ महसूस करते हैं, व्यायाम नहीं करते हैं और सुस्त पड़े रहते हैं, जिससे रक्त प्रवाह पर असर पड़ता है और हार्ट पंपिंग सिस्टम भी प्रभाव पड़ेगा, जो हार्ट अटैक का कारण बन सकता है। इसलिए नींद में लापरवाही बिल्कुल न बरतें और दिल संबंधित बीमारियों से बचने के लिए स्वस्थ दिनचर्या का पालन करें।

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इसके बचाव के लिए क्या करें?

  • समय से सोने की आदत डालें।
  • सुबह हो या फिर शाम में जब कभी भी आपको समय मिले शारीरिक व्यायाम ज़रूर करें।
  • मेडिटेशन करें।
  • जो भी दवा आप ले रहे हैं उसके बारे में अपने डॉक्टर को सूचित करें, जिनसे आपकी अनिद्रा की परेशानी होती है।
  • चाय- कॉफी, एल्कोहल की मात्रा में कमी लाएं। रात में सोने से पहले चाय या फिर कॉफी बिल्कुल भी न लें।
  • सोने के करीब एक घंटे पहले कमरे की टीवी और मोबाइल को बंद कर दें।
  • दोपहर में सोने से बचें। तबीयत खराब हो तब ही सोए दोपहर में सोने की आदत न डालें।

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