नसीरुद्दीन शाह ने मानी ग़लती, बोले- तालिबान मुद्दे पर मुझसे कुछ ग़लत शब्दों का चुनाव हो गया

नसीरुद्दीन शाह ने मानी ग़लती, बोले- तालिबान मुद्दे पर मुझसे कुछ ग़लत शब्दों का चुनाव हो गया

बॉलीवुड नसीरुद्दीन शाह ने हाल ही में अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया था जिसमें उन्होंने तालिबान का समर्थन करने वाले लोगों पर तीखी टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि हिंदुस्तान का इस्लाम अलहदा है। उन्होंने कहा था कि अफगानिस्तान में तालिबानियों की वापसी पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय है, कुछ हिंदुस्तानी मुसलमान इन बर्बर लोगों के लिए जश्न मना रहे हैं जो कि चिंता की बात है और खतरनाक भी है।

उन्होंने कहा था कि हर मुस्लिम को खुद से पूछना चाहिए कि क्या उन्हें इस्लाम का आधुनिक स्वरूप चाहिए या फिर कई सदियों पुराने बर्बर रीति रिवाज। उन्होंने कहा था कि भारतीय इस्लाम हमेशा से दुनिया के दूसरे हिस्सों के इस्लाम से अलग रहा है। आखिर में उन्होंने कहा कि मैं दुआ करता हूं कि हिंदुस्तानी इस्लाम कभी इस तरह न बदले कि हम उसे कभी पहचान न पाए।

हालांकि, कुछ लोगों ने उनके बयानों पर आपत्ति जताई थी। कई लोगों ने कहा था कि नसीरुद्दीन शाह ने अपने बातों को कहने के लिए ग़लत शब्दों का सहारा लिया जिसके चलते भारतीय मुसलमानों को ग़लत संदर्भ में टार्गेट किया गया। उन सभी विवादों पर नसीरुद्दीन शाह ने सफाई दी है। उन्होंने ‘द वायर’ को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि उनसे अपनी बात रखने के दौरान को कुछ शब्दों का ग़लत शब्दों दा चुनाव हो गया जिसके चलते ग़लत मैसेज गया।

नसीरुद्दीन शाह ने मानी ग़लती, बोले- तालिबान मुद्दे पर मुझसे कुछ ग़लत शब्दों का चुनाव हो गया

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इंटरव्यू के दौरान जब उनसे पूछा गया कि जो आपने कहा और उसके बाद जिस तरह का मैसेज गया क्या आप उस पर इत्तेफाक रखते हैं। इस पर नसीरुद्दीन शाह ने साफ शब्दों में कहा कि जो कुछ भी अभी अफगानिस्तान में हो रहा है, उससे मुझे जेहनी परेशानी हो रही थी ऐसे में मुझे लगा कि अपनी बात को मुझे रखनी चाहिए।

उन्होंने कहा, “मैंने शायद एक-आध ग़लत शब्द का इस्तेमाल किया। ‘जश्न’ शायद मुझे नहीं कहना चाहिए था। मुझे ये कहना चाहिए था कि जो लोग तालिबान से सहमत हैं। जश्न तो खैर हिंदुस्तान में कहीं नहीं मनाया गया। मेरी बात ग़लत समझा गया। खास तौर से मुसलमानों ने ग़लत समझा है; कि मैं हिंदुस्तान भर के मुसलमानों पर ‘तोहमत’ लगा रहा हूं। और कन्वेनिएंटली बीजेपी वालों ने भी यही इंटप्रेटेशन निकाला और मुझे शाबाशी दी।”

उन्होंने आगे कहा कि न तो मुझे बीजेपी वालों से शाबाशी चाहिए न उनसे कोई सर्टिफिकेट की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बीजेपी वालों का खुश होना इतना ही वाजिब नहीं है जितना मुसलमानों का मुझसे खफा होना। उन्होंने बताया कि उनसे 30 सेकेंड के आस-पास एक मैसेज रिकॉर्ड करने के लिए कहा गया था, जिसमें कहा गया था कि मैं जो कहना चाहता हूं, कहूं।

नसीरुद्दीन शाह ने मानी ग़लती, बोले- तालिबान मुद्दे पर मुझसे कुछ ग़लत शब्दों का चुनाव हो गया

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नसीरुद्दीन शाह ने बताया कि वे उस वक्स कहीं और थे। इसलिए उन्होंने एक छोटा-सा मैसेज रिकॉर्ड किया। उन्होंने कहा, “शायद मुझे और ‘तफ्सील’ में बात करनी चाहिए थी।” लोगों ने हिंदुस्तानी मुसलमान शब्द को लेकर भी आपत्ति जताई थी। लोगों का कहना था कि इस्लाम तो एक ही है और दुनिया में एक ही है। फिर हिंदुस्तानी मुसलमान क्यों कहा। इसको लेकर उन्होंने कहा कि मजहब को लेकर तंगनज़री बढ़ती जा रही है जो ठीक नहीं।

उन्होंने कहा हिंदुस्तानी मुसलमान शब्द पर मैं बहस नहीं करना चाहता। मेरे कहने का मतलब था कि इस्लाह शब्द का इस्तेमाल किया जिस पर मैं अटका हुआ हूं। क्योंकि मैंने देखा है कुछ सालों में देखा है कि बहुत सारे मुसलमान दाढ़ी रख, टोपी पहनकर और टखनों पर पायजामा पहने नजर आते हैं; और मुझे इससे कोई एतराज नहीं है। उन्होंने कहा ये अपने आइडेंटिटी का स्टेटमेंट है।

उन्होंने आगे कहा कि जब अगर हिंदू योगिया कपड़े पहनकर और माथे तिलक लगाकर या ईसाई लगे में सलीब डालकर रह हर वक्त रह सकते हैं तो हम मुसलमान नौजवान अपने आइडेंटिटी को क्यों नहीं असर्ट कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को अपने इल्म पर ध्यान देना चाहिए। उन्हें अपने-आप को इस कदर तैयार करना चाहिए कि कोई उन्हें इग्नोर नहीं कर सके। ऐसा वे पढ़ाई-लिखाई करके ही हासिल कर सकते हैं।


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