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सोहैल रिज़वी की कविता ‘अगर शब्द न होते’

सोहैल रिज़वी की कविता ‘अगर शब्द न होते’

सुहैल रिज़वी कवि, कथाकार और रंगकर्मी हैं। समय-समय पर ये देश के अलग-अलग हिस्सों में नाट्य मंचन करते रहे हैं। इन्होंने अपनी उच्च शिक्षण की डिग्री जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली से हासिल की है। फिलहाल, 'जोश टॉक' में बतौर डायरेक्टर एवं स्क्रिप्ट राइटर कार्यरत हैं। इनका ज़्यादातर लेखन कार्य समाज के उस तबके को समर्पित है जिसको हम आम आदमी बोलते है। सुबह को टिफिन लेकर जाने और शाम को खाली टिफिन लेकर लौटने वाले व्यक्ति जिनका पूरा जीवन इन दो धूरियों के बीच गुजरता है।

FEATURED STORIES

नीलोत्पल रमेश की दो कविताएं: गोरी तेरे ठाँव और प्रकृति के आँचल में

नीलोत्पल रमेश की दो कविताएं: गोरी तेरे ठाँव और प्रकृति के आँचल में

[नीलोत्पल रमेश बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति हैं। प्रकृति से खास लगाव रखते हैं। यही कारण है कि इनकी कहानी हो या कविता उसमें प्रकृति का साफ चित्रण दिखता है। इनकी कविता, कहानी, समीक्षा कई पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होती रही है। नीलोत्पल रमेश की दो कविताएं यहां प्रकाशित कर रहे हैं।] गोरी तेरे ठाँव कोयल कूकेगोरी चहकेऔर महुए सेआ रही...

जागृति सौरभ की लघुकथा: मुस्कान

जागृति सौरभ की लघुकथा: मुस्कान

शाम का वक़्त था। हर दिन की तरह उस दिन भी मैं खामोश सड़कों को देख रही थी। ज़िन्दगी में जैसे रंगों की तलाश में नज़रे यहाँ से वहाँ घूम रही थी। घर में सन्नटा पसरा था। शाम के करीब पाँच बज रहे थे। सब अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। मेरा भी लगभग काम हो गया था इसलिए बॉलकनी में...

गुलरेज़ शहजाद की कविताएं: ताश के पत्तों की तरह फेंटते रहे मुझे लम्हे

गुलरेज़ शहजाद की कविताएं: ताश के पत्तों की तरह फेंटते रहे मुझे लम्हे

[गुलरेज़ शहजाद उर्दू, हिंदी और भोजपुरी काव्य साहित्य का एक परिचित नाम है। इनकी नज़्मों, कविताओं और ग़ज़लों में कसक, दर्द, पीड़ा, ताप-संताप के साथ रुमानियत भी है और समय के बनते-बिगड़ते स्वरूप का वास्तविक चेहरा भी है। अभी तक उर्दू, हिंदी और भोजपुरी में आपकी छह कृतियाँ पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुकी हैं। साहित्य-संस्कृति के साथ सिनेमा से...

नीलोत्पल रमेश की कविताएं: हम नहीं चाहते जंग, हम शांति के पुजारी हैं

नीलोत्पल रमेश की कविताएं: हम नहीं चाहते जंग, हम शांति के पुजारी हैं

[नीलोत्पल रमेश बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति हैं। प्रकृति से खास लगाव रखते हैं। यही कारण है कि इनकी कहानी हो या कविता उसमें प्रकृति का साफ चित्रण दिखता है। इनकी कविता, कहानी, समीक्षा कई पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होती रही है। नीलोत्पल रमेश की कविताएं यहां प्रकाशित कर रहे हैं।] हम नहीं चाहते जंग हम नहीं चाहते जंगहम शांति के...

नीरजा हेमेन्द्र की कविताएं: अम्मा सहेजती है भरी दुपहरी से

नीरजा हेमेन्द्र की कविताएं: अम्मा सहेजती है भरी दुपहरी से

[नीरजा हेमेन्द्र मुख्य रूप से शिक्षिका हैं। लेखन के अलावा अभिनय, रंगमंच, पेन्टिंग एवं सामाजिक गतिविधियों में रुचि रखती हैं। इनकी ‘अमलतास के फूल ’, ‘जी हाँ, मैं लेखिका हूँ’ जैसी आधा दर्जन से अधिक कहानी संग्रह और साथ ही ‘अपने-अपने इन्द्रधनुष’ और ‘उन्हीं रास्तों पर गुज़ते हुए’ उपन्यास शामिल हैं। इनकी कई कविता संग्रह भी आ चुकी है। कई...

तबस्सुम जहाँ की लघुकथा: विभाग का फैसला

तबस्सुम जहाँ की लघुकथा: विभाग का फैसला

[लेखिका तबस्सुम जहाँ दिल्ली स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया से उच्च शिक्षा प्राप्त की हैं। फिर वहीं से एम.फिल और पीएच-डी. की डिग्री प्राप्त कीं। स्त्री और सामाजिक मुद्दों को लेकर काफी मुखर रही हैं। कई पत्रिकाओं और अखबारों में इनकी कहानियां तथा लघुकथा प्रकाशित हो चुकी है।] मिसेज वर्मा एक बड़े कॉलेज में विभागाध्यक्ष हैं। उनके कार्यकाल में...

हिंदी और उर्दू में फ़र्क़ है इतना, वो ख़्वाब देखते हैं हम देखते हैं सपना

हिंदी और उर्दू में फ़र्क़ है इतना, वो ख़्वाब देखते हैं हम देखते हैं सपना

(संवाद-स्थलः लोदी बागान के एक भुरभुरे मक़बरे की सीढ़ियां, मौसम बहार का। एक सुहानी शाम )। उर्दू: संवाद शुरू करने से पहले क्यों न इसकी कुछ सीमाएं या शर्ते तय कर लें। हिंदी: ज़रूर, वर्ना बात बिखर जायेगी या एक भद्दी, भारी और बासी बहस में बदल जायेगी। उर्दू: तो पहली शर्त तो यही कि हम इस संवाद के दौरान...

अदनान बिस्मिल्लाह की कहानी: और रज़िया भाग गई

अदनान बिस्मिल्लाह की कहानी: और रज़िया भाग गई

अदनान बिस्मिल्लाह: 12 मई 1977 को बनारस में जन्म। एम.फिल, पी.एच.डी. जामिया मिल्लिया इस्लामिया और पी.जी.डी. मास मीडिया जामिया मिल्लिया इस्लामिया से। 6 वर्षों तक दूरदर्शन में कार्य। विगत 15 वर्षों से रंगकर्मी के रूप में सक्रीय। ‘खानम’ धारावाहिक दूरदर्शन, उर्दू में नायक एवं सह-निर्देशक। पटकथा लेखन, विभिन्न कहानियों का नाट्य रूपान्तरण तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी और कविताएं प्रकाशित।...

प्रेमचंद की कहानी: हज-ए-अक्बर

प्रेमचंद की कहानी: हज-ए-अक्बर

(1) मुंशी साबिर हुसैन की आमदनी कम थी और ख़र्च ज़्यादा। अपने बच्चे के लिए दाया रखना गवारा नहीं कर सकते थे। लेकिन एक तो बच्चे की सेहत की फ़िक्र और दूसरे अपने बराबर वालों से हेटे बन कर रहने की ज़िल्लत इस ख़र्च को बर्दाश्त करने पर मजबूर करती थी। बच्चा दाया को बहुत चाहता था। हर दम उसके...

राही मासूम रज़ा की चिंता के केंद्र में है हिंदुस्तान की साझी संस्कृति

राही मासूम रज़ा की चिंता के केंद्र में है हिंदुस्तान की साझी संस्कृति

राही मासूम रज़ा के सबसे बड़े आलोचक प्रो0 कुँवर पाल सिंह से मिलने अलीगढ़ जाना चाहता था। उनसे मिलना सिर्फ इसलिए नहीं चाहता था कि वे राही मासूम रज़ा के सबसे बड़े आलोचक हैं बल्कि इसलिए भी कि वे उनके सबसे अच्छे दोस्त रहे हैं। राही मासूम रज़ा ने 1966 ई0 में सबसे पहला और सबसे चर्चित हिंदी उपन्यास ‘आधा...

आलोचना का लोकधर्म: आलोचना की लोकदृष्टि

आलोचना का लोकधर्म: आलोचना की लोकदृष्टि

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी शाकिर अली कवि, आलोचक, एक्टिविस्ट कई रूपों में दिखाई देते हैं। लेकिन इन सब में मुझे उनका विद्यार्थी रूप सर्वाधिक महत्वपूर्ण लगता है। ज्ञान की भूख और किताबों से उनका प्रेम, उनको निकट से जानने वाले ही जान सकते हैं।

रामधारी सिंह दिनकर के राष्ट्रवाद को निगलना चाहता है हिंदुत्व राष्ट्रवाद

रामधारी सिंह दिनकर के राष्ट्रवाद को निगलना चाहता है हिंदुत्व राष्ट्रवाद

रामधारी सिंह दिनकर की ‛राष्ट्रवाद’ संबंधी समझ को दृढ़ता के साथ रेखांकित करने की जरूरत है क्योंकि हिंदुत्ववादी शक्तियां उनकी राष्ट्रीय भावों की ओजपूर्ण कविताओं के सहारे अपने अंधराष्ट्रवाद के अभियान को साधना चाहती हैं। यह अकारण नहीं है कि हिमालय के शिखरों पर चढ़कर उनकी कविताओं के ‛आलाप’ किए जा रहे हैं। ऐसा संभवतः इसलिए किया जा रहा है...

विचारधारा का अंत और प्रेमचंद की विचारधारा

विचारधारा का अंत और प्रेमचंद की विचारधारा

प्रेमचंद निर्विवाद रूप से आज भी हिंदी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले व लोकप्रिय लेखक हैं। परंतु इधर, कुछ वर्षों में उन्हें लेकर विवाद भी बहुत बढ़े हैं। हिंदी में जब से विमर्शों का दौर शुरू हुआ है, तब से प्रेमचंद को विमर्शों के केंद्र में लाया गया है। विमर्शों में प्रेमचंद विवादित हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें लेकर...

साहित्य में नायक की पारंपरिक अवधारणा बदल दी प्रेमचंद ने

साहित्य में नायक की पारंपरिक अवधारणा बदल दी प्रेमचंद ने

मुझे पिछले वर्ष भी हाजीपुर के इस गांधी आश्रम में आने का मौका मिला था। हाजीपुर की सबसे अच्छी बात ये है कि यहां हमेशा प्रेमंचद जयंती दो तीन दिनों के बाद मनाई जाती है। वैसे भी 31 जुलाई को हर जगह प्रेमचंद जयंती कार्यक्रमों की धूम मची रहती है। पूरे बिहार में छोटी-छोटी जगहों, कस्बों व विश्वविद्यालयों में इतनी...

पुस्तक समीक्षा ❙ बर्नियर की भारत यात्रा : सत्रहवीं सदी का भारत

पुस्तक समीक्षा ❙ बर्नियर की भारत यात्रा : सत्रहवीं सदी का भारत

प्रसिद्ध यात्री फ्रांस्वा बर्नियर फ्रांस का निवासी था। पेशे से चिकित्सक बर्नियर 1656 से 1668 तक भारत में रहा। इस समय वृहत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों में मुगलों का शासन था जिसमें अत्यधिक उथल-पुथल मचा था। शाहजहाँ के अस्वस्थ होने से उसके पुत्रों के बीच सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष शुरू हो गया था। शाहजहाँ के चारो पुत्रों दारा शिकोह,...

अमृता प्रीतम के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी पंजाबी कहानी: यह कहानी नहीं

अमृता प्रीतम के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी पंजाबी कहानी: यह कहानी नहीं

पत्थर और चूना बहुत था, लेकिन अगर थोड़ी-सी जगह पर दीवार की तरह उभरकर खड़ा हो जाता, तो घर की दीवारें बन सकता था। पर बना नहीं। वह धरती पर फैल गया, सड़कों की तरह और वे दोनों तमाम उम्र उन सड़कों पर चलते रहे….। सड़कें, एक-दूसरे के पहलू से भी फटती हैं, एक-दूसरे के शरीर को चीरकर भी गुज़रती...

जयंती विशेष: समय की सलीबों पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

जयंती विशेष: समय की सलीबों पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

मौजूदा समय में दिनकर की ‛राष्ट्रवाद’ संबंधी समझ को दृढ़ता के साथ रेखांकित करने की जरूरत है क्योंकि हिंदुत्ववादी शक्तियां उनकी राष्ट्रीय भावों की ओजपूर्ण कविताओं के सहारे अपने अंधराष्ट्रवाद के अभियान को साधना चाहती हैं। यह अकारण नहीं है कि हिमालय के शिखरों पर चढ़कर उनकी कविताओं के ‛आलाप’ किए जा रहे हैं। ऐसा संभवतः इसलिए किया जा रहा...

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की वैचारिक दृष्टि

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की वैचारिक दृष्टि

रामधारी सिंह दिनकर के दृष्टिकोण को परस्पर दो प्रमुख विचारधाराओं के परिप्रेक्ष्य में रखकर समझा जा सकता है। उनके दृष्टिकोण का पहला ध्रुव मार्क्सवाद है और दूसरा ध्रुव गांधीवाद है। वे विचारधाराओं के इन्हीं दो ध्रुवों के बीच आजीवन आवाजाही करते रहे हैं। अनेक अवसरों पर गांधी से उनकी असहमतियां भी प्रकट हुई हैं, इसलिए उनकी अनेक कविताओं में गांधी...

आर. के. कश्यप की दो कविताएं- ओस की बूंदें और वीआईपी

आर. के. कश्यप की दो कविताएं- ओस की बूंदें और वीआईपी

ओस की बूंदें सुबह के ओस की बूँदों का छुअन, निश्छल प्रेम का अहसास कराती है।यह कोमल, निराकार, मासूम, अत्ममिलन का सुकून देती है। सुबह कि बेला में ज़मीन पर उगे छोटे-छोटे घासों पर,आपका इंतज़ार करती है। वृक्ष के पत्तों से टपकती कहती है,कि आओ हमसे आत्ममिलन करो। अहसास करो प्रेम के चरम स्पर्श का,आओ मैं तुममें समाहित होने को...

हिंदी परंपरा के आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा को आप कितना जानते हैं?

हिंदी परंपरा के आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा को आप कितना जानते हैं?

डॉ. रामविलास शर्मा के महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उनके आलोचनात्मक लेखन के प्रारंभिक दौर (चालीस के दशक) से लेकर आज उनके निधन के बीस वर्ष बाद तक वे बहस के केंद्र में हैं। इधर, नामवर जी के निधन पर और रेणु के जन्म शताब्दी पर भी उनके लिखे पर वाद-विवाद होते रहे...

अली सरदार जारी की कहानी: चेहरु माँझी

अली सरदार जारी की कहानी: चेहरु माँझी

हवा बहुत धीमे सुरों में गा रही थी, दरिया का पानी आहिस्ता-आहिस्ता गुनगुना रहा था। थोड़ी देर पहले ये नग़्मा बड़ा पुर-शोर था लेकिन अब उसकी तानें मद्धम पड़ चुकी थीं और एक नर्म-ओ-लतीफ़ गुनगुनाहट बाक़ी रह गई थी। वो लहरें जो पहले साहिल से जा कर टकरा रही थीं, अब अपने सय्याल हाथों से थके हुए साहिल का जिस्म...

ख़्वाजा अहमद अब्बास की कहानी: दिवाली के तीन दीये

ख़्वाजा अहमद अब्बास की कहानी: दिवाली के तीन दीये

पहला दीया दीवाली का ये दीया कोई मामूली दीया नहीं था। दीये की शक्ल का बहुत बड़ा बिजली का लैम्प था। जो सेठ लक्ष्मी दास के महलनुमा घर के सामने के बरामदे में लगा हुआ था। बीच में ये दीयों का सम्राट दीया था और जैसे सूरज के इर्द-गिर्द अन-गिनत सितारे हैं, इसी तरह इस एक दीये के चारों तरफ़...

मन्नू भंडारी की कहानी- स्त्री सुबोधिनी

मन्नू भंडारी की कहानी- स्त्री सुबोधिनी

प्यारी बहनो, न तो मैं कोई विचारक हूँ, न प्रचारक, न लेखक, न शिक्षक। मैं तो एक बड़ी मामूली-सी नौकरीपेशा घरेलू औरत हूँ, जो अपनी उम्र के बयालीस साल पार कर चुकी है। लेकिन उस उम्र तक आते-आते जिन स्थितियों से मैं गुजरी हूँ, जैसा अहम अनुभव मैंने पाया… चाहती हूँ, बिना किसी लाग-लपेट के उसे आपके सामने रखूँ और...

गोपाल राम गहमरी की कहानी: गुप्तकथा

गोपाल राम गहमरी की कहानी: गुप्तकथा

पहली झाँकी जासूसी जान पहचान भी एक निराले ही ढंग की होती है। हैदर चिराग अली नाम के एक धनी मुसलमान सौदागर का बेटा था। उससे जासूस की गहरी मिताई थी। उमर में जासूस से हैदर चार पाँच बरस कम ही होगा, लेकिन शरीर से दोनों एक ही उमर के दीखते थे। मुसलमान होने पर भी हैदर जैसे और मुसलमान...