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सोहैल रिज़वी की कविता ‘अगर शब्द न होते’

सोहैल रिज़वी की कविता ‘अगर शब्द न होते’

सुहैल रिज़वी कवि, कथाकार और रंगकर्मी हैं। समय-समय पर ये देश के अलग-अलग हिस्सों में नाट्य मंचन करते रहे हैं। इन्होंने अपनी उच्च शिक्षण की डिग्री जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली से हासिल की है। फिलहाल, 'जोश टॉक' में बतौर डायरेक्टर एवं स्क्रिप्ट राइटर कार्यरत हैं। इनका ज़्यादातर लेखन कार्य समाज के उस तबके को समर्पित है जिसको हम आम आदमी बोलते है। सुबह को टिफिन लेकर जाने और शाम को खाली टिफिन लेकर लौटने वाले व्यक्ति जिनका पूरा जीवन इन दो धूरियों के बीच गुजरता है।

FEATURED STORIES

बिनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की कविता: तेरी भोंसड़ी के

बिनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की कविता: तेरी भोंसड़ी के

जी साहेब, जोहारसच कहता हूंमेरे दादा ने बताया था कियहाँ बहुत घनघोर जंगल हुआ करता थाआज से दुगुनाचारों ओर पहाड़ियों से घिरातब हमारे पूर्वजों नेजंगल के बीचों-बीचझाड़-झंझाड़-पुटुस को साफ किया थारहने लायक झोपड़ी बनाया थाजमीन को भी उपजाऊ बनाया था… हाँ साहेब,आज भी पूर्वजों के पसीने की गंध फैली हुई हैहर घर मेंआंगन मेंखेतों मेंखलिहानों मेंयहाँ की मिट्टी की सोंधी...

बानो कुदसिया की कहानी: न्यू वर्ल्ड ऑर्डर

बानो कुदसिया की कहानी: न्यू वर्ल्ड ऑर्डर

ड्राइंग रुम का दरवाज़ा खुला था। ताहिरा गैलरी में खड़ी थी। यहां उनका डोर प्लांट, दीवारों के साथ सजे थे। फ़र्श पर ईरानी क़ालीन के टुकड़े थे। दीवार पर आराइशी आईना नस्ब था। लम्हा भर को उस आईने में ताहिरा ने झांक कर देखा। अपने बाल दुरुस्त किए और खुले दरवाज़े से ड्राइंग रुम में नज़र डाली। अभी डिनर शुरू...

मीरा मेघमाला की तीन कविताएँ: तड़प, तकिया और कैसे मर जाएं झट से!

मीरा मेघमाला की तीन कविताएँ: तड़प, तकिया और कैसे मर जाएं झट से!

मीरा मेघमाला मैसूर यूनिवर्सिटी से इतिहास में एम.ए.। इनकी कन्नड़, कोंकणी और हिन्दी में कविता, कहानी और लेख कई पत्र-पत्रिकाओं और वेब पोर्टल में प्रकाशित। इन्होंने कन्नड़ साहित्य क्षेत्र में ‘कादम्बिनी रावी’ नाम से 2014 से लिखना शुरू किया। इनके ‘हलगे मत्तु मेदुबेरळु’, ‘काव्य कुसुम’, ‘कल्लेदेय मेले कूत हक्कि’ कविता संकलन प्रकाशित। फिलहाल, कर्नाटक में महिला और बाल विकास डिपार्टमेंट...

पाकिस्तान के मशहूर अदीब अशफ़ाक़ अहमद की कहानी: अम्मी

पाकिस्तान के मशहूर अदीब अशफ़ाक़ अहमद की कहानी: अम्मी

वो बड़े साहिब के लिए ईद कार्ड ख़रीद रहा था कि इत्तिफ़ाक़न उसकी मुलाक़ात अम्मी से हो गई। एक लम्हे के लिए उसने अम्मी से आँख बचा कर खिसक जाना चाहा लेकिन उसके पांव जैसे ज़मीन ने पकड़ लिये और वो अपनी पतलून की जेब में इकन्नी को मसलता रह गया। अचानक अम्मी ने उसे देखा और आगे बढ़कर उसके...

कुमार मुकुल की कविताएं: क्या है सुंदरता और ऐ-अरी-ओ एंजलीना

कुमार मुकुल की कविताएं: क्या है सुंदरता और ऐ-अरी-ओ एंजलीना

क्या है सुंदरता क्या सुकरात सुंदर थेया गांधीमदाम क्यूरी क्या सुंदर थींआलोक दा से पूछा मैंने-आखिर क्या है सुंदरता पता नहीं, किस ट्रांस में जाकरबोले वो- ”रानियाँ मिट गईंजंग लगे टिन जितनी कीमत भी नहींरह गई उनकी याद कीरानियाँ मिट गईलेकिन क्षितिज तक फसल काट रही औरतेंफसल काट रही हैं।” ऐ-अरी-ओ एंजलीना- (1) ऐ-अरी-ओ एंजलीनामातृत्व का यह वैभवऔर किसके पास...

जयन्ती विशेष: एक मौलाना हसरत मोहानी भी थे!

जयन्ती विशेष: एक मौलाना हसरत मोहानी भी थे!

पाकिस्तान के करांची शहर में हसरत मोहानी नाम की एक बड़ी कॉलोनी है। वहाँ हसरत मोहानी नाम से एक बड़ी सड़क भी है। करांची में ही एक हसरत मोहानी मेमोरियल सोसाइटी है और एक हसरत मोहानी मेमोरियल लाइब्रेरी भी है।

गजेन्द्र रावत की कहानी: धोखेबाज़

गजेन्द्र रावत की कहानी: धोखेबाज़

सीन ही बदल गया। सारी मस्ती धरी रह गई। काली के तिपहिए से निकली लोहे की छड़, कायदे से जिस पर आईना लगा होना था, अचानक प्रकट हुए दुपहिये पर पीछे बैठे हवलदार के कान से छूकर चली गई। कान बुरी तरह लहूलुहान हो गया। दुपहिये पर पुलिस के सिपाही को देख काली के शरीर में झुरझुरी पैदा हो गई...

नोबल पुरस्कार से सम्मानित पोलिश कवयित्री विस्लावा शिम्बोर्स्का की कविता: हमारे दौर के बच्चे

नोबल पुरस्कार से सम्मानित पोलिश कवयित्री विस्लावा शिम्बोर्स्का की कविता: हमारे दौर के बच्चे

हम इस दौर के बच्चे हैंइस सियासी दौर के दिन भर और फिर पूरी रातमेरी, तेरी, उसकी बात-सब-महज एक राजनीतिक मसला है। तुम्हें पसंद आए या न आएलेकिन तुम्हारे खून का एक राजनीतिक इतिहास हैतुम्हारी त्वचा, एक सियासी साँचे से गढ़ी हुई हैऔर तुम्हारी आंखें एक सियासी निगाह हैं तुम जो भी कहते होगूँजता रहता है बार बारतुम्हारी चुप्पियाँ बोलती...

इंटरव्यू: जीवन से सीधा और सधा हुआ साक्षात्कार है त्रिलोचन का काव्य

इंटरव्यू: जीवन से सीधा और सधा हुआ साक्षात्कार है त्रिलोचन का काव्य

त्रिलोचन हिंदी की प्रगतिशील काव्य-धारा के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कवियों में हैं। उनकी कविताओं में लोक-जीवन की अभिव्यक्ति हुई है। वे सामान्य जन के कवि हैं। उन्होंने स्वयं लिखा है- उस जनपद का कवि हूँ जो भूखा है दूखा है कला नहीं जानता…। आलोचकों ने त्रिलोचन को लोकजीवन से जुड़ा मानने के साथ ही शास्त्रीय परम्परा का भी कवि माना है।...

कुमार मुकुल की कविता: मृत्यु सूक्त

कुमार मुकुल की कविता: मृत्यु सूक्त

[पेशे से पत्रकार और मूलत: कवि कुमार मुकुल के अब तक तीन कविता-संग्रह प्रकाशित हुए हैं। प्रभात प्रकाशन से ‘डाक्टर लोहिया और उनका जीवन-दर्शन’ (2012) नामक किताब प्रकाशित। ‘अंधेरे में कविता के रंग’ (2012) शीर्षक से एक आलोचना की पुस्‍तक और ‘सोनूबीती-एक ब्‍लड कैंसर सर्वाइवर की कहानी’ (2015) का प्रकाशन। विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर प्रचुर लेखन। कुछ...

आदिवासी दुनिया और रमणिका गुप्ता की कविताएं

आदिवासी दुनिया और रमणिका गुप्ता की कविताएं

आदिवासी साहित्य पर विचार करते वक्त एक नाम जो सबसे पहले जेहन में आता है वह नाम हैं रमणिका गुप्ता। उन्होंने आदिवासी साहित्य के उत्थान और प्रसार में अपना समूचा जीवन समर्पित कर दिया। हाशिए के समाज के लिए प्रतिबद्ध पत्रिका ‘युद्धरत आम आदमी’ के माध्यम से उन्होंने आदिवासी साहित्य को भरपूर स्पेस दिया। आज यह पत्रिका आदिवासी विमर्श के...

फहीम अहमद की दो कविताएं: मैं कहता था कि अनगिनत सदियाँ बंध आई थी हमारे बीच

फहीम अहमद की दो कविताएं: मैं कहता था कि अनगिनत सदियाँ बंध आई थी हमारे बीच

साहित्य से गहरा अनुराग रखने वाले बेहद प्रतिभाशाली फहीम अहमद ने अभी-अभी कविता लिखना प्रारंभ किया है। इनकी शुरुआती कविता में ही सुघड़ता है। इनकी कविताओं में भावना और विचार का गज़ब का संतुलन है। हमें आशा है, समूची दुनिया में गहन निराशा और डर से भरे माहौल के बीच फहीम की लेखनी एक उम्मीद की लौ जलाने का काम...

कोरोना ने हमसे एक और धरोहर छीन लिया, कवि और पत्रकार मनोज कुमार झा नहीं रहें

कोरोना ने हमसे एक और धरोहर छीन लिया, कवि और पत्रकार मनोज कुमार झा नहीं रहें

कवि लेखक और पत्रकार मनोज कुमार झा का आज रविवार दोपहर दिल्ली में कोरोना संक्रमण के बाद निधन हो गया। वे बहुत ही सरल स्वभाव के मालिक थे। कुछ भी कहा एक झटके में मान जाते थे। आज उनके यूं जाने से हमने ऐसे व्यक्ति को खोया है जो न केवल कवि लेखक और पत्रकार थे बल्कि बहुत ही अच्छा...

मशहूर शायर, आलोचक और नाटककार शमीम हनफी नहीं रहे

मशहूर शायर, आलोचक और नाटककार शमीम हनफी नहीं रहे

जाने-माने शायर, आलोचक और नाटककार शमीम हनफी का निधन हो गया है। वे 82 साल के थे। कुछ दिनों पहले उन्हें कोरोना संक्रमण होने के बाद दिल्ली के डीआरडीओ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 4 मई को एनडीटीवी के पत्रकार और एंकर रवीश कुमार ने हनफी के लिए प्लाज्मा डोनेट करने की अपील की थी। उन्होंने सोशल मीडिया पर...

मदर डे पर पढ़ें दिवंगत प्रेमरंजन भारती की कविता- माँ और मुक्ति

मदर डे पर पढ़ें दिवंगत प्रेमरंजन भारती की कविता- माँ और मुक्ति

दिवंगत प्रेमरंजन भारती विनोबा भावे विश्वविद्यालय में हिंदी विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर थे। बीते दिनों कोरोना के कारण अकाल मृत्यु के शिकार हो गए। हिंदी साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी। समकालीन युवा कविता के उभरते हुए हस्ताक्षर। मदर डे पर उनकी दो कविताएं यहां प्रस्तुत कर रहे हैं- माँ माँ हो तुम!माँ हो तुम यहीं आस-पाससहसा याद आ जाती...

हबीब-उर-रहमान की कहानी: चोर की माँ

हबीब-उर-रहमान की कहानी: चोर की माँ

जब तेइसवां रोजा बीत गया तब उसे लगा कि अब देर हो रही है। हालाँकि, वह नहीं चाहता था कि इस बार ईद पर घर जाए। घर जाओ तो पचास तरह के झंझट, खासकर ट्रेन का टिकट लेना सबसे बड़ी मुसीबत का काम है। पहले लंबी लाइन में लगो और उसके कुछ ही सेकंड में रिज़र्वेशन फुल हो जाता है।...

हरभजन सिंह मेहरोत्रा की कहानी: कुख्यात

हरभजन सिंह मेहरोत्रा की कहानी: कुख्यात

हरभजन सिंह मेहरोत्रा लेखक, कथाकार और प्रौद्योगिकविद् हैं। इन्होंने लेखन के साथ ‘रमतदीप’ पत्रिका का संपादन भी किया। उपन्यास ‘अनास जिन्दगी’ प्रकाशित, साहित्यकारों पर लिखे व्यक्ति चित्र ‘सफर के साथी’ का प्रकाशन 1988 में हुआ। तकनीकी अध्ययन से संबन्धित कई पुस्तकें प्रकाशित हुई। कई कहानियां प्रकाशित एवं पुरस्कृत। मेरे अन्दर दाखिल होते ही उसने उचटती नजरों से मुझे देखा था...

पुस्तक समीक्षा: विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की पुस्तक ‘जी साहेब जोहार’

पुस्तक समीक्षा: विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की पुस्तक ‘जी साहेब जोहार’

विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की पुस्तक ‘जी साहेब जोहार‘ रश्मि प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक आते ही खूब सुर्खियां बटोर रही है। ऐसे तो कइयों ने इस पुस्तक की समीक्षा की है। किंतु हम यहां झारखंड के जाने-माने कवि, लेखक विजय कुमार संदेश, शंभु बादल और भारत यायावर की समीक्षा प्रकाशित कर रहे हैं। अपने समय का...

विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की 3 कविताएं: भूख का इतिहास, आओ बचाएं और गांव की औरतें

विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की 3 कविताएं: भूख का इतिहास, आओ बचाएं और गांव की औरतें

भूख का इतिहास चलो-शिनाख्त करते हैंभूख कोकैसा होता है उसका रूपकैसा होता है उसका रंगकैसी होती है उसकी महककैसी होती है उसकी प्रतिबद्धताकैसी होती है उसकी वैचारिकताक्या वह दिखता है पिज्जा-बर्गर की तरहक्या वह दिखता है माड़-भात की तरहक्या वह दिखता है रोटी-साग की तरहकहां रहता है वहक्या भिखारियों के कटोरे मेंक्या झोपड़ियों के कोने मेंक्या हवेलियों के बड़े से...

पुस्तक समीक्षा  ▏  एक गोंड गांव में जीवन: वेरियर एल्विन

पुस्तक समीक्षा ▏ एक गोंड गांव में जीवन: वेरियर एल्विन

भारतीय जनजातियों पर शोध करने वाले मानवशास्त्रियों में वेरियर एल्विन (1902-64) का विशिष्ट स्थान है। वे काफी लोकप्रिय हुए और कई मामलों में विवादास्पद भी रहें। मुरिया जनजाति पर उनका शोध ‘मुरिया एंड देयर घोटुल’ विश्व स्तर पर चर्चित हुआ। उनकी पद्धति से कुछ लोगों को असहमति भी रही है, खासकर ‘काम’ सम्बन्धों के नियमन के उनके चित्रण को लेकर।...

भारतीय रेल: बिंब प्रतिबिंब

भारतीय रेल: बिंब प्रतिबिंब

अंग्रेजी की इस किताब का नाम है ‘द बॉय हू लव्ड ट्रेन’। दीपक सपरा ने रेलवे की मैकनिकल डिपार्टमेंट में एक अधिकारी के रूप में नौकरी शुरू की स्पेशल क्लास रेलवे अप्रेंटिस परीक्षा के तहत। आपको बता दें प्रतिवर्ष इस परीक्षा में मुश्किल से 20 बच्चे 12वीं के बाद संघ लोक सेवा आयोग द्वारा चुने जाते हैं। आईआईटी परीक्षा से...

भीष्म साहनी के कथाकर्म में साम्प्रदायिकता

भीष्म साहनी के कथाकर्म में साम्प्रदायिकता

किसी भी समाज को समझने में उस वक्त का साहित्य और उसका इतिहास मदद करते हैं। भीष्म साहनी के साहित्य की पड़ताल करने पर भी हमें समाज का एक चेहरा दिखाई पड़ता है। आज के पर्चे के विषय के बहाने, भीष्म जी के साहित्य के बहाने हम उनके वक्त के समाज की पड़ताल करेंगे, जिन जख्मों की लीपापोती हो चुकी...

विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की 3 कविता: भेड़िए, सवाल और मेरी कविताएं

विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की 3 कविता: भेड़िए, सवाल और मेरी कविताएं

भेड़िए भेड़िए-तुम फिर आनाबार-बार आनादबोच कर ले जानायहां का नूरयहां की महकयहां की नमींयहां की जन्नतपेड़, पहाड़, जंगल, झरनानदी, नाला, पनघट सब ले जानापसंद की पनिहारनियों को भी ले जाना। भेड़िए-तुम फिर आनाले जाना दबोच करयहां के लोकगीतयहां के लोकनृत्ययहां की संपदा, खान-खनिजधर्म, वेद, पुराण, शास्त्र, सब ले जानालोगों का मन, मस्तिष्क, ईमान सब ले जाना भेड़िए-तुम फिर आनाअबकी बारबदल...

डॉ. मुकुन्द रविदास की तीन कविताएं: विधवा की बेटी, लोग और उसी कमरे में

डॉ. मुकुन्द रविदास की तीन कविताएं: विधवा की बेटी, लोग और उसी कमरे में

विधवा की बेटी जीर्ण-शीर्ण वस्त्र सेलिपटी गुड़ियाबहुत सुंदर दिखती है। पड़ोसी घर खटती-पिटती ‘माँ’वह गुड्डा-गुड़िया खेलती हैरात को माँ से लिपट करखटिया में सोयी रहती है। दिन में खेत को जातीरात में शौच को निकलती हैउठवा लो एक दिनहवस का शिकारबना लोतन-मन कर दोजीर्ण-शीर्णबहुत सुंदर दिखती है। एक नहीं दो-चारबुला लोकोई हाथ पकड़ लोकोई पैर दबा लोचिखेगी-चिल्लाएगीमुँह में डाल दो...