दिल्ली के जामिया नगर स्थित एक मंदिर को बचाने के लिए लगाई गई याचिका के बाद मुसलमानों ने केस जीत ली है। जामिया नगर के नूर नगर स्थित एक मंदिर को संरक्षित कराने के लिए स्थानीय मुसलमान दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया था। इसके बाद कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया।
दरअसल, कुछ दिनों पहले जमीन पर कब्जा करने के नियत से मंदिर की देखरेख करने वाले ने बगल में स्थित धर्मशाला के एक हिस्से को तोड़ दिया था। इसके खिलाफ जामिया नगर वार्ड 206 कमेटी के अध्यक्ष सैयद फौजुल अजीम (अर्शी) ने कोर्ट में याचिका लगाई थी।
याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा पीठ ने कहा कि ले-आउट प्लान के हिसाब से उक्त स्थान पर मंदिर है और इस पर अतिक्रमण करने की अनुमति नहीं है।
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दिल्ली हाईकोर्ट ने इसके अलावा दिल्ली सरकार, पुलिस आयुक्त, साउथ एमसीडी और जामिया नगर के थाना प्रभारी को आदेश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि भविष्य में मंदिर परिसर में कोई अवैध अतिक्रमण नहीं होगा।
साथ ही कोर्ट ने प्रशासन से कहा कि कानून-व्यवस्था की भी कोई समस्या नहीं हो वे सुनिश्चित करें। वहीं, दिल्ली पुलिस और साउथ एमसीडी ने कोर्ट को मंदिर पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं होने देने का भरोसा दिलाया।
दूसरी तरफ, सैयद फौजुल अजीम (अर्शी) के वकील नितिन सलूजा ने कोर्ट को बताया कि मंदिर की धर्मशाला को रातों-रात गिरा कर जमीन को लेवल कर दिया गया, ताकि बिल्डरों द्वारा इस पर कब्जा किया जा सके।
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बता दें कि सैयद फौजुल अजीम (अर्शी) की ओर से लगाए गए याचिका में कहा गया था कि जामिया नगर के नूर नगर स्थित मंदिर की धर्मशाला की जमीन माखन लाल के पुत्र जौहरी लाल की थी। जबकि इस मंदिर को 1970 में माखन लाल ने बनवाया गया था।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, धर्मशाला को तोड़ने से जुड़ी तस्वीरें पेश की गई हैं। जबकि, दिल्ली सरकार के शहरी विकास की वेबसाइट पर उपलब्ध ले-आउट प्लान का भी हवाला दिया गया, जिसमें नूर नगर एक्सटेंशन जामिया नगर में उक्त स्थान पर मंदिर है।
याचिका नें आगे कहा गया था कि मुस्लिम बाहुल क्षेत्र होने के बावजूद भी यहां 50 साल से लोग पूजा करने आते थे। इस इलाके में सिर्फ 40 से 50 हिंदू परिवार ही अब रहते हैं। जबकि मंदिर की देख-रेख करने वाले ने पहले धर्मशाला और फिर मंदिर को भी गिराकर दिया, ताकि वह रिहायशी कॉम्प्लेक्स बना सके।
इसी साल 20 सितंबर को अर्शी ने पुलिस और साउथ एमसीडी को भी शिकायत भी दी थी, लेकिन जब वहां से कार्रवाई मदद नहीं मिली तो हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
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