हिजाब पर रोक लेकिन लड़कियों के चूड़ी और क्रॉस पहनने पर क्यों नहीं?

हिजाब पर रोक लेकिन लड़कियों के चूड़ी और क्रॉस पहनने पर क्यों नहीं?

कर्नाटक से शुरू हुआ हिजाब विवाद पूरे देश में फैल गया है। सरकारी आदेश और कोर्ट के फैसलों ने समाज में उबाल ला दिया है। इसको लेकर विदेशों में भी आलोचना हो रही है। कर्नाटक हाई कोर्ट में बुधवार को भी सुनवाई हुई। छठे दिन सुनवाई के दौरान मुस्लिम छात्राओं का पक्ष रखने वाले वकील ने सरकार पर पक्षपात का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि आखिर सरकार अकेले हिजाब को ही क्यों मुद्दा बना रही है।

उन्होंने कहा कि स्कूल और कॉलेजों में हिंदू लड़कियां चूड़ी पहनती हैं, जबकि ईसाई लड़कियां क्रॉस पहनती हैं। आखिर उन्हें क्यों नहीं संस्थानों से बाहर भेजा जा रहा है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि सरकारी आदेश में किसी अन्य धार्मिक प्रतीक की बात नहीं की गई है। आखिर हिजाब ही क्यों? क्या यह उनके मजहब के चलते ही नहीं है। मुस्लिम लड़कियों से भेदभाव पूरी तरह मजहब पर ही आधारित है।

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हिजाब को अपना मौलिक अधिकार बताने वाली छात्राओं ने अपने वकील के जरिए अपना पक्ष रखते हुए कहा कि यदि बैन को लेकर कोई आदेश जारी किया गया है तो उस संबंध में छात्राओं के परिजनों को एक साल पहले ही इसकी जानकारी देनी थी। एजुकेशन एक्ट का हवाला देते हुए वकील रवि कुमार वर्मा ने ये बाते कहीं। उन्होंने कोर्ट के बताया कि किसी भी नियम के बारे में एक साल पहले बताने का प्रावधान है।

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इसके साथ ही उन्होंने हाई कोर्ट से कहा कि वह इस मामले की सुनवाई को लेकर टाइम लिमिट तय करे और जल्द-से-जल्दी हिजाब विवाद पर कोई फैसला करे। उन्होंने कहा कि कर्नाटक एजुकेशन एक्ट में हिजाब पर रोक जैसी किसी चीज का प्रस्ताव नहीं है। छात्राओं के वकील ने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि आखिर किन नियम और अथॉरिटी के तहत उसने हिजाब पर रोक लगाई है। ऐसा किसी भी कानून में नहीं है।

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शर्मा ने कहा कि प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में ड्रेस को लेकर कोई नियम नहीं है। उन्होंने कहा, “यह कानून नहीं है बल्कि एक नियमावलि है। इसमें कहा गया है कि प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में कोई यूनिफॉर्म नहीं है।” उन्होंने आगे कहा कि कॉलेज डिवेलपमेंट काउंसिल इस संबंध में कोई नियम तय करने की अथॉरिटी नहीं है।

रवि कुमार वर्मा ने उडुपी के भाजपा विधायक के कॉलेज कमिटी के प्रेसिडेंट होने पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि एक विधायक जो एक राजनीतिक दल और विचारधारा का प्रतिनिधि है। क्या ऐसे किसी व्यक्ति की छात्रों के हित में काम करने की मंशा पर भरोसा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस तरह की समिति का गठन किया जाना लोकतंत्र के लिए बड़ी चिंता की बात है।


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