भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता और पूर्व जम्मू-कश्मीर के उप-मुख्यमंत्री ने प्रदेश में रद्द हो चुके विवादित रोशनी अधिनियम के तहत जमीन के हस्तांतरण को ‘लैंड जिहाद’ का मामला बताया था। लेकिन अब सामने आया है कि कवींद्र गुप्ता भी अवैध रूप से राज्य की जमीन पर कब्जा कर चुके हैं।
हाल ही में आई एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। खबर है कि साल 2010 से लेकर 2017 की शुरुआत तक घइंक गांव में जमीन पर उनका कब्जा था। उनके अलावा इस जमीन की हिस्सेदारी में दो अन्य लोगों का भी नाम भी शामिल है।
खबरों के मुताबिक, एडवोकेट शेख शकील ने एक सूचना का अधिकार (RTI) आवेदन दाखिल किया गया था। इसके बाद तहसीलदार की ओर से जो जानकारी सामने आई है उसमें पाया गया है कि कवींद्र गुप्ता, सुभाष शर्मा और शिव रतन गुप्ता ने संयुक्त रूप से खसरा नंबर 1789 हासिल की थी।
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जिस जमीन पर इन तीनों ने कब्जा किया था उसका आकार 23 कनाल, 9 मरला है। 8 कनाल 1 एकड़ या 4.047 स्क्वॉयर मीटर के बराबर होता है, जबकि 1 मरला का मतलब 270 स्क्वॉयर फीट होता है।
तीनों की यह जमीन जम्मू जिले के भलवल तहसील के घइंक गांव में थी। जानीपुर की इंदिरा कॉलोनी के प्रतिनिधि शर्मा निर्दलीय पार्षद हैं। वहीं, शिव रतन गुप्ता इंदिरा कॉलोनी के निवासी हैं। हालांकि, जमीन पर कब्जे को लेकर कवींद्र गुप्ता समेत तीनों आरोपियों ने सरकारी जमीन पर कब्जे की बात से इनकार किया है।
इंडियन एक्सप्रेस एक रिपोर्ट मुताबिक, उन्होंने कहा, “मैं अपने माँ-बाप की कसम खाता हूं कि मैं यह नहीं जानता कि कैसे और कब राजस्व अधिकारियों ने घाइंक की 23 कनाल और 9 मरला राज्य भूमि मेरे नाम पर चढ़ा दी और कब और कैसे यह रद्द हो गई थी।”
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साल 2010 में इनके नाम से खसरा गिरदावरी तैयार की गई थी, तब जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार थी। उस दौरान कवींद्र गुप्ता जम्मू नगर निगम के मेयर थे। हालांकि, इसे 9 फरवरी 2017 को भलवल तहसीलदार की तरफ से जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के 2011 के आदेश के बाद रद्द कर दिया गया था।
हाई कोर्ट ने सरकार को निजी लोगों को मिली राज्य भूमि की सभी गिरदावरी कैंसिल करने के आदेश दिए थे। अदालत ने रिटायर्ड प्रोफेसर एस.के. भल्ला की तरफ से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिया था। शेख शकील के जरिए ही उस दौरान भी याचिका दी गई थी। उस दौरान कवींद्र गुप्ता जम्मू-कश्मीर विधानसभा के स्पीकर थे।
खबर के मुताबिक, भलवल तहसीलदार अमित उपाध्याय और घाइंक पटवारी मोहम्मद असलम ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि कैसे 2010 में उस जमीन की गिरदावरी कवींद्र गुप्ता और अन्य दो लोगों के नाम से दर्ज हो गई थी। हालांकि, तहसीलदार ने कहा है कि किसी राज्य भूमि की गिरदावरी तब तक किसी के नाम पर दर्ज नहीं की जा सकती, जब तक व्यक्ति खुद मौके पर पहुंचकर अपना कब्जा न दिखाए।
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