दिल्ली दंगा मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई की जिसमें पहली सजा सुनाई गई। कोर्ट ने इस दौरान दिनेश यादव नाम के एक व्यक्ति को पांच साल कैद की सजा सुनाई। 2020 की शुरुआत हुए दिल्ली दंगों के दौरान 53 लोग मारे गए थे।
पिछले महीने कड़कड़डूमा कोर्ट में अभियोजन पक्ष ने कहा था कि दिनेश यादव उन 150 से 200 बलवाइयों की भीड़ का हिस्सा था जिन्होंने मनोरी नाम की एक महिला के घर में तोड़फोड़ की और फिर उसे आग लगा दी।
बीबीसी हिंदी के मुताबिक, दिनेश की वकील शिखा गर्ग ने बताया कि जेल के अलावा उनके मुवक्किल को 12 हजार रुपये का जुर्माना भी भरना है। शिखा गर्ग ने कहा कि वे जज वीरेंद्र भट्ट के लिखित फैसले का अध्ययन करने के बाद ही अपने अगले कदम के बारे में कुछ कह पाएंगी।
शिखा गर्ग ने आगे बताया, “हम कड़कड़डूमा कोर्ट के निर्णय के खिलाफ ऊपरी अदालत में जाएंगे।” हालांकि, उन्होंने ये नहीं बताया कि वो इस फैसले के खिलाफ अपील कब दायर करेंगी। यह सजा कड़कड़डूमा कोर्ट के एडिशनल सेशन जज वीरेंद्र भट्ट ने सुनाई।
देखा जाए तो दिनेश फरवरी 2020 में हुए दंगों के लिए सजा पाने वाला पहला व्यक्ति है। दिनेश के पिछले महीने ही एक 73 वर्षीय महिला की घर में लूटपाट करने, उसे जलाने वाली दंगाइयों की भीड़ का हिस्सा होने का दोषी पाया गया था।
कोर्ट ने उन्हें 12 दिसंबर 2021 को आईपीसी की धारा 143 (अनलॉफुल असेंबली)। 147 (दंगा), 148 (हथियारों के साथ दंगा), 457 (किसी के घर में जबरदस्ती घुसना), 392 (चोरी), 436 (घर को नष्ट करने के इरादे से आग या विस्फोटक पदार्थ द्वारा शरारत) में दोषी पाया गया था।

दिनेश यादव को कोर्ट ने दोषी करार देते वक्त कहा था कि वो दिल्ली के भागीरथी विहार इलाके में 200-300 लोगों की गैर-कानूनी भीड़ का हिस्सा था जिसने वहां दंगों में हिस्सा लिया था। अदालत ने आगे कहा था कि गवाहों के बयानों से पता चला कि गैर-कानूनी सभा में शामिल दंगाई हिंदू समुदाय के थे और जिनके घरों और दुकानों में तोड़फोड़ की गई, लूटपाट की गई और जला दिया गया वे मुस्लिम समुदाय से थे।
जैसा कि मालूम है कि दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में 23 फरवरी 2020 को सीएए-एनआरसी प्रोटेस्ट के दौरान दंगे हुए थे जिसमें कुल 53 लोगों की मौत हुई थी जबकि सैकड़ों लोग जख्मी हुए थे। साथ ही कई लोगों के घरों और दुकानों को भी नुकसान पहुंचा था।
बीते सात दशक में ये दिल्ली में हुआ सबसे बड़ा हिंदू-मुस्लिम दंगा था। इस दौरान दिल्ली पुलिस पर भी आरोप लगे कि उसने दंगों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए। अदालतों में दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से जवाब मांगे गए।
एक मौका ऐसा भी हुआ जब दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस एस मुरलीधर को दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर से यह कहना पड़ा कि जब आपके पास भड़काऊ भाषणों के क्लिप मौजूद हैं तो FIR दर्ज करने के लिए आप किसका इंतजार कर रहे हैं? कोर्ट में यह भी कहा गया था कि शहर जल रहा है, तो कार्रवाई का उचित समय कब आएगा?
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