आज छोटे से छोटे बच्चों को स्मार्टफोन चलाना आता है। महज सालभर के बच्चों को भी फोन पर कार्टून चला कर दे देते हैं। फिर बच्चे आदी हो जाते हैं। वे हर वक्त फोन पर वीडियोज देखते हैं। बच्चों के माता-पिता को लगता है कि चलो कम से कम बच्चा खेल रहा है। लेकिन इससे बच्चे को जो गंभीर नुकसान हो सकता है, उसका उन्हें अंदाज नहीं होता।
पैरेंट्स को बस लगता है कि बच्चा स्मार्टफोन पर चलने वाले वीडियो और गेम्स में उलझा है और पेरेन्ट्स को तंग नहीं करता। लेकिन बाद में उन्हें इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। वैसे तो स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल किसी को भी नहीं करना चाहिए। लेकिन जो भी पेरेन्ट्स 2 साल तक के बच्चों को स्मार्टफोन दे रहे हैं, वे बच्चे के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। आइए जानते हैं इसके होने वाले गंभीर नुकसान के बारे में-
आंखों पर प्रभाव

जब हम बड़े लोगों की आंखे स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल से कमजोर पड़ने लगती है तो इसी से अंदाजा लगा लीजिये कि इससे 2-3 साल के बच्चों की आंखों पर कितना बुरा असर पड़ेगा। ऐसे बच्चे जो 2 साल की उम्र में ही स्मार्टफोन या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल करने लगते हैं।
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ऐसे बच्चों को 5 साल की उम्र में ही चश्मा लग जाता है। इसके अलावा उनकी आंखों को गंभीर नुकसान भी हो सकता है। इसलिए बच्चों को फोन इस्तेमाल करने न दें। इसकी जगह उन्हें बाहर खेलने भेजा करें। आप खुद उनके साथ टाइम स्पेंड करें।
दिमाग पर असर

कम उम्र के बच्चे स्मार्टफोन और गैजेट्स का इस्तेमाल करने वाले मानसिक रूप से कमजोर भी हो सकते हैं। क्योंकि स्मार्टफोन से निकलने वाली तरंगों का दिमाग पर बेहद बुरा असर पड़ता है। जो बच्चे स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। वे बच्चे आगे चल कर दिमागी तौर पर कमजोर हो सकते हैं।
एडिक्शन के शिकार

कम उम्र में जब बच्चे स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने लगते हैं तो वे वीडियो देखने और गेम खेलने के एडिक्ट हो जाते हैं। यह एडिक्शन बच्चे के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह होता है। क्योंकि बच्चा अपना ज्यादा से ज्यादा समय स्मार्टफोन देखते हुए बिताना चाहता है। जिसके कारण दूसरी जरूरी गतिविधियों से वह दूर होता चला जाता है।
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डिप्रेशन के शिकार

जो बच्चे ज्यादा समय तक स्मार्टफोन यूज करते हैं वे अक्सर पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं। ऐसे बच्चें किताबें पढ़ना पसंद नहीं करते। उनकी दुनिया गूगल तक सिमट कर रह जाती है। वे सोचते हैं कि जब उनके पास स्मार्टफोन में गूगल है तो अब किताबें पढ़ने की जरूरत ही क्या है। नतीजा वे बच्चे पढ़ाई में बेहतर नहीं कर पाते। बाद में डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं।
रचनात्मकता में कमी

सही सुना,जो बच्चे अपना ज्यादातर समय स्मार्टफोन या दूसरे गैजेट्स को देखते हुए बिताते हैं, वे वास्तविकता से कट जाते हैं। उन्हें वर्चुअल वर्ल्ड ही सही लगने लगता है। यही नहीं वे आत्म केंद्रित हो जाते हैं। उन्हें दूसरे लोगों की ज्यादा परवाह नहीं रह जाती। वे बच्चे भावनात्मक रूप से लोगों से जुड़ नहीं पाते।
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सोशल एक्टिविटी नहीं करते जिसके कारण जब वास्तविक जीवन में समस्याएं और चुनौतियां उनके सामने आती हैं, तो वे उनका सामना नहीं कर पाते हैं। ऐसे बच्चे आगे चल कर समाज से तो कट ही जाते हैं, कई तरह की मनोविकृतियों के भी शिकार हो सकते हैं। इसलिए बच्चों को बाहर खेलने दें इससे बच्चों में रचनात्मकता बढ़ती है। उनकी समझ बढ़ती है।
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