गोपाल को जमानत देने से इनकार, कोर्ट ने कहा- ऐसे लोग महामारी से अधिक खतरनाक

गोपाल को जमानत देने से इनकार, कोर्ट ने कहा- ऐसे लोग महामारी से अधिक खतरनाक

जामिया गोलीकांड के आरोपी रामभक्त गोपाल को गुड़गांव की अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया है। गोपाल को हरियाणा में पटौदी महापंचायत के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। गोपाल की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने आदेश में न्यायिक मजिस्ट्रेट मोहम्मद सगीर ने कड़े शब्दों में कहा कि भड़काऊ भाषण देना आजकल फैशन बन गया है। इतना ही उन्होंने ये आगे कहा कि सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने वाले लोग देश को कोविड-19 महामारी से अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं।

अपने आदेश में न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कहा कि नफरती भाषण व्यथित करने से कहीं ज्यादा परेशान करते हैं। उन्होंने कहा, “इसका सामाजिक प्रभाव हो सकता है। भड़काऊ भाषण बाद समाज के कमजोर वर्गों के लिए खतरनाक हो सकते हैं। यह समाज के वंचित वर्ग पर हमले, भेदभाव, बहिष्कार, अलागव, निर्वासन, हिंसा और कई मामलों में नरसंहार तक का कारण बन सकते हैं।”

रामभक्त गोपाल के वकील के तर्क को खारिज करते हुए उन्होंने कहा, “अदालत के समक्ष आरोपी निर्दोष युवा लड़का नहीं है, जो कुछ नहीं जानता बल्कि वह यह दिखा रहा है कि जो उसने पूर्व में किया है, अब वह बिना किसी डर के अपनी उस नफरत को अंजाम देने में सक्षम हो गया है। वह अपनी इस नफरत में बड़ी तादाद में लोगों को शामिल कर सकता है।”

ये भी पढ़ें: दरोगा ने चूल्हे पर मारी लात और कुकर का खौलता दाल बच्चों पर जा गिरा

फैसले के दौरान कोर्ट ने इस तथ्य का भी उल्लेख किया कि जांचकर्ता अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी और याचिकाकर्ता के वकीलों द्वारा स्वीकार करने के अनुरूप यह वही शख्स है, जिसने अवैध हथियार हवा में लहराकर जामिया के छात्रों पर गोली बरसाई थी। जामिया घटना के समय आरोपी नाबालिग था और उस समय यह मामला दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पुलिस थाने में दर्ज था।

न्यायपालिका मजिस्ट्रेट ने आगे कहा, “अदालतों द्वारा आरोपी को उसके अल्पसंख्यक होने के कारण दी गई रियायत को उसने अच्छे अर्थों में नहीं लिया। बल्कि, ऐसा लगता है कि उसने इस रियायत को गलत परिप्रेक्ष्य में लिया कि वह कुछ भी कर सकता है, यहां तक कि संविधान की मूलभूत विशेषता को भी नष्ट कर सकता है, जिसे हम उसके भड़काऊ भाषण में धर्मनिरपेक्षता कहते हैं।”

अदालत ने कहा , “आरोपी ने अपने कृत्य से वास्तिवक खतरा पैदा किया है कि जो भी वह चाहे, वह करेगा। कानून-व्यवस्था और शांति बनाए रखने के लिए जिम्मेदार ताकतें क्या करेंगी? उन्होंने राज्य और अदालतों से भी सवाल किया कि क्या उसके पास कानून के शासन को बनाए रखने की शक्ति है?” फिर आदेश में आगे जोड़ा, “हर नागरिक के पास अपने विचारों को व्यक्त करने का अधिकार है। लेकिन वैमनस्य को बढ़ावा देते हुए किसी विशेष समुदाय को निशाना बनाने का नहीं।”

ये भी पढ़ें: कांग्रेस ने मानसून सत्र से पहले गठित किया संसदीय टीम, G-23 नेताओं को भी जगह

आदेश में इसके बाद कहा गया, “अपने भाषण के दौरान आरोपी को भीड़ को उकसाते देखा जा सकता है। वह गलत काम के लिए भीड़ को उकसा रह था, विशेष समुदाय की लड़कियों का अपहरण करने और उनका जबरन धर्मांतरण करने के लिए उकसा रहा था।”

न्यायिक मजिस्ट्रेट मोहम्मद सगीर ने कहा, “ऐसा लगता है कि आरोपी को अपने पूर्वजों पर बहुत गर्व है। यहां तक ​​कि उन्होंने एक विशेष समुदाय के लोगों को मारने और इस संबंध में नारे बदलने के लिए भी उकसाया। आरोपी के द्वारा इस्तेमाल किए गए नारे और भाषा स्पष्ट रूप से आपत्तिजनक हैं और इसका उद्देश्य एक विशेष समूह की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना और विभिन्न समूहों/धार्मिक समुदाय के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना है।”

गोपाल को जमानत देने से इनकार, कोर्ट ने कहा- ऐसे लोग महामारी से अधिक खतरनाक

उन्होंने इसके बाद कहा, “किसी भी सभ्य समाज में इस तरह की गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। धर्म या जाति के आधार पर भड़काऊ भाषण आजकल फैशन बन गया है। इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए पुलिस भी असहाय नजर आ रही है। इस तरह की गतिविधियां वास्तव में हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट कर रही और संविधान की भावना को मार रही है।”

ये भी पढ़ें: लखीमपुर पहुंचीं प्रियंका गांधी, बदसलूकी की शिकार महिला से किया मुलाकात

अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि समाज की शांति के लिए जो भी विशेष रूप से धार्मिक सद्भाव बिगाड़ने के लिए खतरा है, उसे स्वतंत्र रूप से घूमने की मंजूरी नहीं दी जा सकती। आदेश में कोर्ट ने कहा, “इस तरह के लोग वास्तव में हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को नष्ट कर रहे हैं और राष्ट्रनिर्माण में सबसे बड़ी बाधा हैं। धर्म, जाति आदि के नाम पर हिंसा का लगातार खतरा है।”

अदालत ने अपने आदेश में कहा, “इस घटना को सिर्फ एक युवा शख्स की धार्मिक असहिष्णुता के तौर पर नहीं देखा जा सकता है। क्योंकि इसके कहीं अधिक गंभीर और खतरनाक छिपे हुए परिणाम हो सकते हैं। अगर आरोपी को जमानत मिल जाती है तो सांप्रदायिक सद्भावना का अस्तित्व बाधित हो सकता है और समाज में इससे गलत संदेश जाएगा कि भड़काऊ भाषण समाज में स्वीकार्य हैं।”

न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कहा, “आम आदमी का विश्वास बहाल करना होगा कि देश का धर्मनिरपेक्ष चरित्र का है और वह ऐसे व्यक्तियों के समर्थन में नहीं है जो धर्म, जाति आदि के नाम पर नफरत और दुश्मनी को बढ़ावा दे रहे हैं। अब समय आ गया है कि धर्म आदि के आधार पर समाज में नफरत फैलाने वाले ऐसे असामाजिक तत्वों को कड़ा संदेश दें कि कानून का राज अब भी कायम है।”

ये भी पढ़ें: जामिया फायरिंग का आरोपी रामभक्त गोपाल बोला, मुस्लिम महिलाओं का अपहरण करके लाओ

अदालत आगे कहा गया, “आरोपी को सलाखों के पीछे रोकने से एक मजबूत संदेश जाएगा कि भारत एक समावेशी समाज है, जहां सभी धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं और उनमें परस्पर सम्मान की भावना है। अदालत यह भी सुनिश्चित करेगी कि कानून का राज सर्वोपरि हो।”

आदेश में फिर कोर्ट ने कहा, “हमारा संविधान देश के गैर नागरिक को भी सुरक्षा देता है तो यह राज्य के साथ-साथ न्यायपालिका का भी कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई भी धर्म या जाति के लोग असुरक्षित महसूस नहीं करें और नफरत फैलाने वाले ऐसे लोग बिना डर के खुलेआम नहीं घूम सकते।”

मजिस्ट्रेट ने कहा, “आरोपी जैसे लोग कोरोना महामारी से अधिक खतरनाक है। कोरोना बिना धर्म या जाति के किसी भी शख्स की जान ले लेता है। जिस तरह का भड़काऊ भाषण आरोपी ने दिया, अगर उसके बाद सांप्रदायिक हिंसा होती है तो धर्म के आधार पर कई निर्दोष लोगों की जान जाएगी।”

ये भी पढ़ें: जामिया गोलीकांड का आरोपी रामभक्त गोपाल गिरफ्तार, दिया था भड़काऊ भाषण

उन्होंने अपने आदेश में कहा, “अदालत इस तथ्य से भी वाकिफ है कि अगर आरोपी को जमानत पर रिहा किया गया तो बेशक आरोपी एक बार फिर असंवैधानिक और अवैध गतिविधियों में लिप्त नहीं भी हो सकता है, लेकिन वह शिकायतकर्ता और अन्य गवाहों को धमकी देकर जांच को बाधित कर सकता है।”

हालांकि, रामभक्त गोपाल के वकीलों ने तर्क देते हुए कहा कि पटौदी महापंचायत में कई दूसरे लोग भी थे जिन्होंने भड़काऊ भाषण दिए थे पर सिर्फ याचिकाकर्ता को आरोपी बनाया गया और गिरफ्तार किया गया। क्योंकि वह बाहरी है और उसका कोई राजनीतिक कनेक्शन नहीं है।

याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी कहा कि अन्य वक्ताओं (जो शक्तिशाली शख्स हैं) ने भड़काऊ भाषण दिए, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई। इससे उनके मुवक्किल के प्रति हरियाणा पुलिस के पक्षपाती रवैये का पता चलता है।

हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने किसी भी शख्स का नाम नहीं लिया। वह शायद भाजपा के प्रवक्ता और करणी सेना के सदस्य सूरज पाल अमू का उल्लेख कर रहे थे, जिन्होंने पटौदी महापंचायत में मुस्लिमों के खिलाफ वहां के स्थानीय लोगों को उकसाया था और हत्या करने की धमकी दी थी।

ये भी पढ़ें: जामिया गोलीकांड का आरोपी रामभक्त गोपाल गिरफ्तार, दिया था भड़काऊ भाषण

न्यायिक मजिस्ट्रेट अपने आदेश में कहा कि अदालत को बताया गया कि पुलिस को मौजूदा आरोपी के खिलाफ ही शिकायत मिली। और अगर बाद में जांच के दौरान अन्य लोगों के खिलाफ किसी तरह के सबूत मिलते हैं तो उन्हें भी कानून के अनुरूप गिरफ्तार किया जाएगा।

दरअसल, आरोपी ने 4 जुलाई को हुई पटौदी महापंचायत में हिंदुओं से मुस्लिम महिलाओं को अगवा कर लव जिहाद का बदला लेने को कहा था। इतना ही नहीं वहां मौजूद लोगों को मुस्लिम विरोधी नारे लगाते हुए भी सुना गया था। आरोपी को ये कहते हुए भी सुना गया था कि जब मु** काटे जाएंगे, तब राम-राम चिलाएंगे।

उल्लेखनीय है कि बीते साल साल जनवरी 2020 में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) का विरोध कर रहे जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों पर गोली चलाने के आरोप में रामभक्त गोपाल को गिरफ्तार किया था। हालांकि, बाद में उसे जमानत मिल गई थी। लेकिन उसने हरियाणा के पटौदी महापंचायत में 4 जुलाई को भड़काऊ भाषण दिया जिसके बाद उसे 12 जुलाई को गिरफ्तार कर लिया गया था।


(प्रिय पाठक, पल-पल के न्यूज, संपादकीय, कविता-कहानी पढ़ने के लिए ‘न्यूज बताओ’ से जुड़ें। आप हमें फेसबुक, ट्विटर, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave a Reply

Your email address will not be published.