सरकार भ्रम और मनोरोग की स्थिति में रही जिससे कोरोना संकट गहराया: अमर्त्य सेन

सरकार भ्रम और मनोरोग की स्थिति में रही जिससे कोरोना संकट गहराया: अमर्त्य सेन

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कोरोना की दूसरी लहर को लेकर केंद्र की मोदी सरकार को दोषी ठहराया है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने भ्रम में रहते हुए कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए काम नहीं किया। काम करने के बजाय सरकार ने कामों का क्रेडिट लेने पर अधिक ध्यान दिया। इससे ‘स्किजोफ्रेनिया’ की स्थिति बन गई जिसके चलते काफी दिक्कतें पैदा हुईं।

दरअसल, स्किजोफ्रेनिया एक गंभीर मनोरोग है जिसमें रोगी वास्तविक और काल्पनिक संसार में भेद नहीं कर पाता। अमर्त्य सेन ने शुक्रवार देर शाम को राष्ट्र सेवा दल ओर की आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि भारत अपने दवा निर्माण के कौशल और साथ ही उच्च रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण महामारी से लड़ने के लिए बेहतर स्थिति में था।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर सेन ने ये भी कहा कि सरकार में भ्रम के चलते कोरोना संकट के दौरान खराब तरीके से काम किया और महामारी से निपटने के लिए अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं किया।

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सरकार भ्रम और मनोरोग की स्थिति में रही जिससे कोरोना संकट गहराया: अमर्त्य सेन

उन्होंने कहा, ”सरकार ने जो किया उसका श्रेय लेने की इच्छुक दिखाई दी जबकि उसे यह सुनिश्चित करना था कि भारत में यह महामारी न फैले। इसका नतीजा काफी हद तक स्किजोफ्रेनिया जैसा था।”

प्रख्यात अर्थशास्त्री ने 1769 में एडम स्मिथ के लिखे एक लेख के हवाले से कहा कि अगर कोई अच्छा काम करता है तो उसे उसका श्रेय मिलता है और श्रेय कई बार एक संकेत होता है कि कोई व्यक्ति कितना अच्छा काम कर रहा है।

उन्होंने इसके बाद कहा, ”लेकिन श्रेय पाने की कोशिश करना और श्रेय पाने वाला अच्छा काम न करना बौद्धिक नादानी का एक स्तर दिखाता है जिससे बचना चाहिए। भारत ने यही करने की कोशिश की।”

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अमर्त्य सेन ने कहा कि सामाजिक असमानताओं, धीमे विकास और बेरोजगारी से भारत पहले से ही जूझ रहा है जो इस महामारी के दौरान बढ़ गया है। उन्होंने कहा, ”अर्थव्यवस्था की विफलता और सामाजिक एकजुटता की विफलता, महामारी से निपटने में नाकामी की भी वजह है।”

उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा संबंधी सीमाओं के चलते शुरुआती स्तर पर लक्षणों और इलाज के प्रोटोकॉल पता लगाने में मुश्किलें हुईं। उन्होंने स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के क्षेत्र के साथ ही अर्थव्यवस्था और सामाजिक नीतियों में भी बड़े सार्थक बदलाव की पैरवी किया।


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