भारत के न्यायाधीश एन.वी. रमना संसदीय बहस में गिरते मानकों और विधायिका द्वारा बिना किसी बहस के बनाए जा रहे कानूनों को लेकर अफसोस जताया है। उन्होंने संसद की कार्यवाही पर अपनी नाराजगी जताई है।
उन्होंने संसद में हुए हंगामों का जिक्र करते हुए कहा कि संसद में अब बहस नहीं होती। संसद से ऐसे कई कानून पास हुए हैं, जिनमें काफी कमियां थीं। चीफ जस्टिस ने पहले के समय से इसकी तुलना करते हुए कहा कि जब संसद के दोनों सदन वकीलों से भरे हुए थे, मगर अब मौजूदा स्थिति अलग है।
रमना ने कानूनी बिरादरी के लोगों से भी सार्वजनिक सेवा के लिए अपना समय देने का आग्रह किया। सीजेआई आगे कहा, “अब बिना उचित बहस के कानून पास हो रहे हैं। अगर आप उन दिनों सदनों में होने वाली बहसों को देखें, तो वे बहुत बौद्धिक, रचनात्मक हुआ करते थे और वे जो भी कानून बनाया करते थे, उस पर बहस करते थे…मगर अब खेदजनक स्थिति है। हम कानून देखते हैं तो पता चलता है कि कानून बनाने में कई खामियां हैं और बहुत अस्पष्टता है।”
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मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा, “अभी के कानूनों में कोई स्पष्टता नहीं है। हम नहीं जानते कि कानून किस उद्देश्य से बनाए गए हैं। इससे बहुत सारी मुकदमेबाजी हो रही है, साथ ही जनता को भी असुविधा और नुकसान हो रहा है। अगर सदनों में बुद्धिजीवी और वकील जैसे पेशेवर न हों तो ऐसा ही होता है।”
दरअसल, सीजेआई रमना सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की ओर से आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती वर्षों में भारत के अधिकांश स्वतंत्रता सेनानी और सांसद वकील थे। हमारे स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व वकीलों ने किया था। महात्मा गांधी, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू, बाबू राजेंद्र प्रसाद सभी वकील थे। उन्होंने न केवल अपने पेशे बल्कि अपने परिवारों और संपत्तियों का भी त्याग कर दिया था। इसलिए उन्होंने वकीलों को सामाजिक और सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
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इसके बाद उन्होंने कहा कि खुद को पैसा कमाने और आराम से जीने तक सीमित न रखें। मुझे उम्मीद है कि आप देश के लिए अपने ज्ञान और अनुभव का योगदान देंगे। उल्लेखनीय है कि संसद में पेगासस जासूसी कांड कृषि कानून जैसे मुद्दों को लेकर मॉनसून सत्र एक दिन भी ठीक से नहीं चल पाया। दूसरी तरफ सरकार ने कई कानून को पिछली बार की तरह बिना बहस कानून बनाने की कोशिश की।
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