त्रिपुरा हिंसा की फैक्ट फाइंडिंग टीम के 2 वकीलों के खिलाफ UAPA तहत मुकदमा

त्रिपुरा हिंसा की फैक्ट फाइंडिंग टीम के 2 वकीलों के खिलाफ UAPA तहत मुकदमा

त्रिपुरा हिंसा में पीड़ित पक्ष की बात वाले दो वकीलों पर राज्य की पुलिस ने गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) लगा दिया है। वकीलों का दोष सिर्फ इतना है कि उन्होंने पिछले महीने राज्य में भड़की हिंसा में मुसलमानों को निशाना बनाए जाने की बात की। वकीलों ने अपराधकर्त्ताओं के तौर पर विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), हिंदू जागरण मंच (एचजेएम) और बजरंग दल समेत कई दक्षिणपंथी संगठनों का नाम लिया था।

ये वकील पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) से जुड़े हुए हैं। ये फैक्ट फाइंडिंग टीम सदस्य हैं। फैक्ट फाइंडिंग और कानूनी सहायता के मिशन को अंजाम देने वाले इन वकीलों का ये भी कहा कि त्रिपुरा सरकार और राज्य पुलिस ने हिंसा को रोकने के लिए समय पर कार्रवाई नहीं की; जो ‘हिंसा को प्रायोजित करने के बराबर है’।

त्रिपुरा पुलिस ने जिन दो वकीलों पर UAPA समेत अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है उनका नाम मुकेश और अंसार इंदौरी है। मुकेश दिल्ली हाईकोर्ट में वकालत करते हैं। वहीं, अंसार इंदौरी सुप्रीम कोर्ट के वकील हैं।

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ये दोनों विभिन्न मानवाधिकार समूहों की एक अम्ब्रेला बॉडी ‘नेशनल कंफेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशंस’ (NCHRO) के सदस्य हैं। इस फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्यों में सुप्रीम कोर्ट के वकील एहतेशाम हाशमी और अमित श्रीवास्तव भी थे।

त्रिपुरा हिंसा की फैक्ट फाइंडिंग टीम के 2 वकीलों के खिलाफ UAPA तहत मुकदमा

इस टीम ने त्रिपुरा हिंसा पर अपनी रिपोर्ट मंगलवार को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में जारी की गई। जैसा कि मालूम है कि त्रिपुरा हिंसा उस समय अंजाम दिया गया जब पिछले महीने पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा हुई।

बांग्लादेश हिंसा के खिलाफ 26 अक्टूबर को विश्व हिंदू परिषद को लोगों ने ‘हुंकार रैली’ निकाली और पानीसागर क़स्बे में एक मस्जिद में तोड़फोड़ की और कुछ दुकानों और घरों को आग के हवाले कर दिया गया।

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उसके बाद कई घटनाएं हुईं जिनमें मस्जिदों में तोड़-फोड़ की गई और अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ी संपत्तियों को निशाना बनाया गया। इस सिलसिले में अब तक 71 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। जिसमें 5 के खिलाफ सोशल मीडिया पर कथित तौर पर भड़काऊ पोस्ट डालने के आरोप में आपराधिक मामले दर्ज किए हैं।

त्रिपुरा हाईकोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया है और राज्य सरकार से हिंसा पर एक रिपोर्ट तलब की है। 30 अक्टूबर को PUCL ने प्रदेश का दौरा किया था। 10 नवंबर तक दोनों वकीलों को अगरतला पुलिस स्टेशन में पेश होने के लिए कहा गया है।

दिप्रिंट वेबसाइट के मुताबिक, दिल्ली हाईकोर्ट के वकील मुकेश ने इस मामले को ‘साफ तौर पर संदिग्ध व्यक्तियों की खोज और प्रतिशोध’ करार दिया। उन्होंने एक बयान में कहा, “हमने हिंसा के लिए कुछ धार्मिक संगठनों की भूमिका का पर्दाफाश किया। लेकिन त्रिपुरा पुलिस ने किसी से पूछताछ नहीं की और अब वो उन वकीलों के पीछे लग रहे हैं जो तथ्य खोजने वाली रिपोर्ट के लिए वहां गए थे।”

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वहीं, जब पश्चिम अगरतला पुलिस स्टेशन के ऑफिसर इंचार्ज जयंता करमाकर से संपर्क किया गया तो उनकी ओर से मैसेज और कॉल्स का कोई जवाब नहीं दिया। पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि उन्हें मीडिया से बात करने की अनुमति नहीं है, क्योंकि मामला अब कोर्ट में है।

दोनों वकीलों को पश्चिम अगरतला पुलिस ने बुधवार को नोटिस भेजा है। दोनों पर पर आईपीसी की धारा 153A (धर्म, मूलवंश, भाषा, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, इत्यादि के आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता बढ़ाने वाले, और सौहार्द्र बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कार्य करना) के तहत मामला दर्ज किया गया है।

साथ ही पुलिस ने दोनों पर 153 बी, 469 (ख्याति को नुक़सान पहुंचाने के उद्देश्य से जालसाजी), 471, 503 (आपराधिक रूप से धमकाना), 504, 120B (आपराधिक षड्यंत्र की सजा) और गैर-कानूनी गतिविधि को उकसाने या उसमें सहायता करने से संबंध रखने वाली, UAPA की धारा 13 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।

त्रिपुरा हिंसा की फैक्ट फाइंडिंग टीम के 2 वकीलों के खिलाफ UAPA तहत मुकदमा

वकीलों को भेजे गए नोटिस के मुताबिक, उन पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ऐसे बयानात और सोशल मीडिया पोस्ट किए जिससे शांति भंग की कोशिश शामिल थी। मुकेश ने मीडिया को बताया कि उन्होंने ऐसा कुछ शेयर नहीं किया जिससे दूर-दूर भी हिंसा भड़की हो या धार्मिक समूहों के बीच नफरत पैदा हुई हो।

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उन्होंने आगे कहा, “मैंने सिर्फ वो तथ्य सामने रखे, जो मुझे जमीन पर दिखाई दिए।” मुकेश ने त्रिपुरा हिंसा से जुड़ी एक पोस्ट शेयर की थी जिसमें उन्होंने अपनी प्रेस कॉनफ्रेंस की एक यूट्यूब वीडियो शेयर की थी। वीडियो में उन्होंने कहा कि वीएचपी और बजरंग दल ने पहले से ही अपने काडर्स को अल्पसंख्यकों के घरों में तोड़फोड़ और अल्पसंख्यक-विरोधी नारेबाजियों के लिए प्रशिक्षित कर दिया था।

मुकेश और अंसारी दोनों ने बताया कि उन्होंने अपने सोशल मीडिया से कोई पोस्ट नहीं हटाई है। अंसारी ने कहा, “अगर उन्हें कुछ जरा-सा भी राजद्रोही दिखता है तो अदालतें और सरकार चेक कर सकती हैं।”

वहीं, फैक्ट फाइंडिंग टीम की अगुवाई करने वाले हाशमी ने कहा कि वो अपनी रिपोर्ट पर कायम हैं। उन्होंने ये भी कहा कि मुझे कोई ताज्जुब नहीं होगा अगर हमारी फैक्ट फाइंडिंग टीम के दूसरे सदस्यों के खिलाफ भी एफआईआर दायर हो जाएं।


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